रविवार, 1 मई 2016

ऐसे बना विश्व धरोहर कालका-शिमला टॉय ट्रेन का सफर!

बाबा भल्कू न होते तो कभी न पहुंचती शिमला तक ट्रेन
शिमला से लौटकर ओ.पी. पाल
नई दिल्ली।
देश में दुर्गम पहाड़ की वादियों में भले ही कालका-शिमला के ऐतिहासिक रेल खंड अंग्रेजी हुकूमत की देन रहा हो, लेकिन अंग्रेजो को भी रेल टेÑक बिछाने का रास्ता हिमाचल के बाबा भलकु ने ही दिखाया था। यदि बाबा भलकु नहीं होते तो शायद इस रेल खंड का निर्माण की कल्पना अभी सपनो के पन्नों में सिमटी रह जाती। मसलन इस रेल ट्रेक पर देश-विदेश के पर्यटकों के लिए कालका से शिमला तक चलाई जा रही टॉय टेÑन का सफर नौ साल पहले ही यूनेस्को की विश्व धरोहर की सूची में शामिल हो गया था।
हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला तक रेलपथ की इस कल्पना को खुद रेलवे स्वीकार करता है कि इसके लिए एक छोटे से सोलन जिले के एक छोटे से गांव झाझा निवासी बाबा भलकु के योगदान को कभी नहीं भूल पाएगा, जिसकी स्मृति में रेलवे ने शिमला में बाबा भलकु रेल संग्रहालय की स्थापना करके अंग्रेजी काल की रेलवे से जुडी हरेक सामान को प्रदर्शित किया है। कहा जाता है कि बाबा भलकू के पास ऐसा दिव्य ज्ञान था, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के इंजीनियरों के इस खंड पर रेलवे लाइन निर्माण का सर्वे शुरू किया, तो उन्हें कोई उपाय नहीं सूझा तो किसी ने अंग्रेज इंजीनियरों को बाबा भलकु की जानकारी दी और उन्होंने अंग्रेजो की भरपूर मदद की। इसके लिए कालका से शिमला तक पूरी 102 सुरंगे और 850 पुल बनाये गये, जिसमें सबसे बड़ी सुरंग 143.61 मीटर लंबी बडोग रेलवे स्टेशन के पास बनानी पड़ी। अंग्रेजी हकूमत वाले इस रेल ट्रेक की लंबाई कालका से तारादेवी तक सड़क मार्ग से एक चौथाई है। भारतीयों के लिए इस रेल ट्रेक की लंबाई को सड़क मार्ग से ए जिसके बाद बड़ोग की सुरंग बन सकी।
हैरतअंगेज है कन्नौह ब्रिज
कालका-शिमला रेलखंड से गुजरने वाली टॉय ट्रेन का सफर उस समय ज्यादा सुहाना हो जाता है, जब वह ऐसे हैरतअंगेज पुल से गुजरती है, जो चार मंजिला है और यात्रियों व पर्यटकों के लिए एक पल मनोरंजन और डर दोनों से भरा हो जाता है। 1898 में बनकर तैयार हुए इस चार मंजिला पुल की खूबसूरती के ढांचे में 34 आर्च बने हैं, जिसकी सतह से ऊंचाई 23 मीटर और लंबाई 25.90 मीटर है। कालका से शिमला तक के सफर को को पूरा करने के लिए यह कन्नौह ब्रिज बिना किसी नुकसान के आज भी मजबूती से खड़ा है, जो हर रोज ढ़ाई हजार से भी ज्यादा यात्री एवं पर्यटकों के लिए इस रेल ट्रेक से एक सुहाना सफर तय करने में अहम पड़ाव माना जा रहा है। पत्थर और चिनाय से बना यह ब्रिज भारतीय रेल की प्रमुख आर्च गैलरी है। रेलवे के अनुसार इस ब्रिज में 118 घन मीटर के पत्थरों का उपयोग किया गया है। ब्रिज से जब ट्रेन गुजरती है तो उसकी स्पीड 15-20 किलोमीटर प्रतिघंटे की रखी जाती है। सबसे खासबात है जब इस पुल से ट्रेन गुजरती है तो पर्यटकों के आग्रह पर यहां ट्रेन थोड़ी देर के लिए कई बार रोकी जाती है, ताकि लोग अच्छे सफर का आनंद ले सके।
बड़ा ही सुहाना ह टॉय ट्रेन का सफर
कालका से शिमला के सफर के लिए टॉय ट्रेन ही एक प्रमुख साधन है, जिसके लिए रेलवे ने इन ट्रेनों के डिजाइन को उसी तरह से किया है। टॉय ट्रेनों के ये डिजाइन अपने आप में इतिहास तो बन ही रहे हैं, वहीं इनकी खूबसूरती भी देखते ही बनती है। यही कारण है कि शिमला तक का सफर करने के लिए टॉय ट्रेन आकर्षण का केंद्र बनी हुई है। भारीय रेलवे के इतिहास के पन्ने ऐसे में और भी ज्यादा ऐतिहासिक हो गये जब संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को ने इसे और इस रेल ट्रेक पर बने पुलों व सुरंगों को वर्ष 2008 में विश्व धरोहर की सूची में शामिल कर लिया। कालका से शिमला तक रेलमार्ग का सफर कुल 96.57 किलोमीटर लंबा है और इस रेलखंड में अंगे्रजी हकूमत के 18 स्टेशन भी अपने इतिहास और खूबसूरती की गवाही देते हैं। पर्यटकों के लिए खास आकर्षण का केंद्र कालका-शिमला रेलखंड को प्रोत्साहित करने के लिये उत्तर रेलवे के अम्बाला जोन ने एक वेबसाइट तैयार किया है। भारतीय रेल के वेबसाइट पर जाकर आप इस रेलखंड वाले विकल्प पर क्लिक कर पूरी जानकारी ले सकते हैं।
हरेक सुरंग व घुमाव का आकर्षण
इस रेलखंड पर पड़ने वाले 102 सुरंग और 919 घुमाव भी किसी आकर्षण की खासियत से कम नहीं है। यानि हरेक सुरंग को बनाना किसी चुनौती से कम नहीं रहा होगा। बताते हैं कि एक वक़्त ऐसा भी आया जब अंग्रेजी हकूमत ने मुश्किलों का सामना करते हुए इस रेल खंड पर काम को बीच में रोकने का मन बना लिया था। बताया जाता है कि वर्ष 1896 में जब इस अपने मिशन में रेलखंड की तैयारी करने में जुटे अंग्रेजी हकूमत के चीफ इंजीनियर एचएस हैरिंगटन के साथ एक और इंजीनियर बड़ोग ने उसे रोकने की चर्चा मात्र से दुखी होकर उसने अत्महत्या कर ली थी। कालका-शिमला रेलखंड के मध्य में पड़ने वाला बड़ोग रेलवे स्टेशन इसका साक्षात उदहारण है। इसके बावजूद बाबा भलकू ने अंग्रेज इंजीनियरों के काम को आसान बनाया, जो आज कालका से शिमला तक जाने के लिए हरेक भारतीय की सुगममता का सबब बना हुआ है।
अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी शिमला
इस रेलखंड का निर्माण अंग्रेजी हुकूमत ने 1903 में तैयार किया, उस समय तब शिमला भारत में राज कर रहे अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी हुआ करती थी। देश की आजादी के बाद इसे धरोहर और पर्यटन के रूप में विकसित किया गया। लोग कालका रेलवे स्टेशन से उतर कर टॉय ट्रेन से शिमला पहुंचते हैं।
टॉय ट्रेन की ये हैं विशेषताएं
पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस रेलखंड पर चलने वाली ट्रेनों में कई सुविधाएं दी गई हैं। मसलन ट्रेनों में सेल्फ प्रोपल्लड, शिवालिक पैलेस, झरोखा, कम्पोजिट कोच की सुविधाएं शामिल हैं। दिलचस्प बात है कि ऐसी सभी ट्रेन कोई भी अपनी सुविधा और साथियों की संख्या के हिसाब से ट्रेन और कोच की बुकिंग कर सकता है, जिसके कोच यात्रियों को फाइव स्टार होटल और राजमहल का आनंद भी देते हैं।
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पहले से ज्यादा सुविधाजनक
‘‘कालका से शिमला तक इस रेलवे लाइन के हैरिटेज के दायरे में आने के बाद रेलवे ने इस ट्रेक पर यात्रियों की सुविधा के लिये सुविधाएं बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और लगातार प्रयास जारी हैं। उनका कहना है कि हैरिटेज लाइन होने के कारण रेलवे इसकी मूल संरचना में बदलाव भी नहीं कर सकता, लेकिन अन्य मूलभूत सुविधाएं देने की योजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है।’’
- एके पुठिया, महाप्रबंधक(उत्तर रेलवे)
01May-2016

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