मंगलवार, 31 मई 2016

राज्यसभा चुनाव: फिर टूटे चौधरी अजित सिंह का मंसूबे!

यूपी विधानसभा चुनाव में गठबंधन की संभावनाएं बरकरार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश के अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जारी सियासी दलों की रणनीतियों के बीच समाजवादी पार्टी की रालोद से गठबंधन की संभावनाएं अभी नफे-नुकसान के आकलन के साथ बरकरार हैं, लेकिन इस गठबंधन में सपा के सहारे राज्यसभा में जाने पर संशय के बादल छा गये है, जिससे अजित सिंह के राज्यसभा पहुंचने के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
राज्यसभा की 58 सीटो के लिए 11 जून को होने वाले द्विवर्षीय चुनाव के लिए पिछले दो दिन से यूपी की राजनीति में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी ने यूपी में विधानसभा चुनाव की रणनीति साधते हुए राष्ट्रीय लोकदल से नजदीकियां बढ़ाई। सूत्रों के अनसुार सपा-रालोद गठबंधन को लेकर एक दिन पहले सपा नेता शिवपाल यादव व रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह के बीच लंबी चर्चा हुई,जिसमें रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को राज्यसभा तक पहुंचने की राह लगभग तय कर चुकी थी, जिसके नामांकन दाखिल कर चुके सपा के सातों प्रत्याशियों में से बिशंबर निषाद का टिकट वापस करने तक भी मामला पहुंचा। सूत्रों के अनुसार इस सियासी खबर से सपा में असंतुष्ट की लहर दौड़ने स सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने राज्यसभा के नामांकन दाखिल कर चुके किसी भी प्रत्याशी का टिकट वापस न करने का फैसला सुनाया और रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह के मंसूबे पानी में बह गये। हालांकि सपा और रोलोद की दोस्ती में गठबंधन की संभावनाओं को अगले साल यूपी विधानसभा चुनाव बरकरार रखा गया है। सपा के रणनीतिकार भी मान रहे हैं कि रालोद सहित कई दूसरी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर अगले साल विधानसभा चुनाव में सरकार विरोधी माहौल से होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
यूपी मिशन: गठबंधन के होंगे ये फायदे
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी पश्चिमी यूपी में वर्चस्व ररखने वाले राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन कर सकती है। अगर सपा का मुस्लिम और रालोद के जाट वोटरों का गठजोड़ बनता है, तो पश्चिम उत्तर प्रदेश की 145 विधानसभा सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन भाजपा और बसपा के लिए तगड़ी चुनौती बन सकता है। मसलन यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा को रालोद का साथ मिलता है तो वह इस क्षेत्र में एक मजबूत ताकत बन सकती है। हालांकि इससे पहले रालोद की जदयू के साथ विलय और भाजपा तथा कांग्रेस के साथ भी गठबंधन पर बातचीत हुई थी, लेकिन वहां उनकी दाल नहीं गल पायी। लिहाजा ऐसे में रालोद बहुत फूंक-फूंक कर आगे बढ़ रहा है।
लोकसभा में टूटा था वर्चस्व
गौरतलब है कि पिछले लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मोदी मैजिक के सामने रालोद का वर्चस्व धाराशायी हो गया था, जिसमें खुद रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह अपनी व बेटे जयंत चौधरी की सीट भी नहीं बचा पाये थे। यही कारण है कि पिछले दो साल से रालोद संसद में दाखिल होने की जुगत में कभी भाजपा, कांग्रेस व जदयू के दरवाजे जा रहे हैं तो निराशा मिलने पर सपा से नजदीकी बढ़ाना शुरू किया। सपा से गठजोड़ की उम्मीद बढ़ी, लेकिन राज्यसभा में जाने की बात पटरी पर चढ़ने से पहले ही उतर गई। इस गठबंधन की सपा और रालोद की समय की मांग है, जो अगले साल विधानसभा चुनाव में सियासी जमीन को मजबूत बनाने की राह आसान हो सकती है।
31May-2016


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