मंगलवार, 10 मार्च 2015

राग दरबार

मोदी का जायका या जायजा
संसद की कैंटिन में एक आम सांसद की तरह दोपहर का भोजन करके प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मीडिया की सुर्खियां बना और तरह- तरह की दलीलें भी सोसल मीडिया पर देखने को मिली, जिसमें मोदी ने कैंटिन के कर्मचारियों को अचानक वहां पहुंचकर चौंकाया, वहीं दूसरी सादगी किसी विशेष भोजन की ही नहीं बल्कि जो कैंटिन के भोजन की सूची में शामिल था उसी के तहत वेज थाली का आर्डर देकर सादगी से भोजन किया और उसकी कीमत भी चुकायी। किसी प्रधानमंत्री के संसद की कैंटिन में भोजन करना संसद की ऐतिहासिक घटना तो कही जा सकती है, लेकिन दूसरा पहलू कहें या सवा यह भी है कि संसद की सांसदों के लिए स्थापित कैंटिन में मोदी भोजन क्यों नहीं करना चाहते? आखिर वह भी एक सांसद होने के नाते कैंटिन में आ सकते हैं। राजनीति गलियारों में चर्चा तो यह है कि प्रधानमंत्री ने संसद की कैंटिन का भोजन चखकर जायका ही नहीं लिया, बल्कि कैंटिन में भोजन की गुणवत्ता और माहौल का जायजा ज्यादा लिया है। इसका कारण माना जा रहा है कि पिछले करीब तीन साल से संसद की कैंटिन में सुरक्षा कारणों से भोजन बनाने पर प्रतिबंध लगा हुआ है और भोजन बाहर से बनकर आता है, जो ओवन में रखने के बाद परोसा जाता है। खासकर रोटी की गुणवत्ता में गिरावट की शिकायतें आती रही है। चर्चा है कि कैंटिन में मोदी ने भोजन के बहाने जायका कम, बल्कि भोजन की गुणवत्ता का जायजा अधिक लिया होगा?
राज सत्ता का नशा
राज्यसभा में जाने वालों के पत्ते खुलने से पहले आम आदमी पार्टी में अंतर्कलह और घमासान उसी तरह सामने आ गया है, जैसा की भारत की सियासत में अन्य दलों में देखा जाता रहा है। शायद इस घमासान से आप के संयोजक एवं दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अपनों को पहचानने की भी आदत बन जाए। इस एपीसोड से तो केजरीवाल की सोच निश्चित रूप से बदली ही होगी, जिसका फायदा उन्हें अब इस बात का मिलेगा कि दिल्ली विधानसभा कोटे से राज्यसभा पहुंचने की उम्मीद के चलते अरविंद केजरीवाल निश्चित रूप से भारी पडेंगे। चर्चा है कि यह तो केजरील के लिए अच्छा ही हुआ कि आगे चलकर राज्यसभा के पत्ते खुलने के बाद एक बार फिर तू-तू-मैं-मैं पर विराम लग सकता है। मसलन अब राज्यसभा के लिए शायद उनके खिलाफ साजिश के लिए कथित रूप से सामने आए है, उनका पत्ता तो राज्यसभा से कटना तय ही हो गया होगा। हालांकि एक नजरिए से देखें तो यह केसरीवाल को आहत करने वाली घटना ही है। चर्चा है कि केजरीवाल की पिछली कैबिनेट के जिन लोगों को इस बार मंत्री नहीं बनाया गया है, वह भी देर-सबेर मुंह खोल सकते हैं। यह राजनीति है जिसमें कुछ भी संभव है यानि जैसे कांग्रेस में आम आदमी पार्टी सोनिया गांधी के खिलाफ बोल कर एक पल नहीं रह सकते, उसी तरह आप में केजरीवाल के प्रतिकूल राय रखकर आप टिके नहीं रह सकते। विरोधी दलों की नजर में तो केजरीवाल अहंकारी, नाटकीय व तानाशाही प्रवृत्ति के हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह भी मानी जा रही है कि केजरीवाल की ब्रांड वैल्यू है, लेकिन अब उन्हें दूसरे दलों में आतंरिक लोकतंत्र न होने का आरोप लगाने का कोई नैतिक आधार नहीं बचा है। बहरहाल आप अब कोई नया राजनीतिक अजूबा नहीं, पारंपरिक राजनीति की राह पर चलने वाली महज एक जमात भर है।
08Mar-2015

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