बुधवार, 18 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण पर मुश्किल सरकार की राह!


फिर से लेना पड़ सकता है अध्यादेश का सहारा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के लिए राज्यसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने की राहें विपक्ष की एकजुटता ने और मुश्किल कर दी है। यदि इन तीन दिनों में सरकार इस विधेयक को संसद की मंजूरी न दिला सकी तो सरकार को फिर से इसके लिए अध्यादेश लाने का सहारा लेना पड़ सकता है।
संसद के बजट सत्र में पहले चरण के तीन दिन बाकी बचे हैं, जिनमें केंद्र सरकार के पास छह में से अभी तीन अध्यादेशों को बदलने की चुनौती है। इनमें सबसे ज्यादा विपक्ष का रोड़ा भूमि अधिग्रहण विधेयक के खिलाफ सामने आ रहा है। सोमवार को दिल्ली में कांग्रेस के प्रदर्शन और फिर मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में विपक्षी दलों की एकजुटता का शक्ति प्रदर्शन में संसद से राष्टÑपति भवन तक का मार्च कर राष्टÑपति को अपनी मांगों का ज्ञापना केंद्र सरकार की रणनीतिक पहल को झटका देता नजर आ रहा है। ऐसे में सरकार की बेचैनी और बढ़ती नजर आ रही है। लोकसभा में सभी अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में मंजूरी दिलाने के बाद सरकार राज्यसभा में तीन अध्यादेशों में सबसे महत्वपूर्ण भूमि अधिग्रहण विधेयक में फंसती नजर आ रही है। दरअसल राज्यसभा में सरकार को इस विधेयक में दोहरी मशक्कत करनी है। मसलन सरकार के पास राज्यसभा में फिलहाल दो बिल हैं, जिसमें एक पहले से ही राज्यसभा में एक बिल अभी लंबित है और सरकार को नए विधेयक को पेश करने से पहले पुराने विधेयक को वापस लेने की चुनौती सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। इस विधेयक को वापस लेने के बाद ही सरकार लोकसभा में पारित किये गये दूसरे भूमि अधिग्रहण विधेयक को पेश कर सकेगी। मंगलवार को विपक्ष की एकजुटता के साथ राष्टÑपति को सौंपे गये ज्ञापन में विपक्ष ने अन्य मांगों के साथ भूमि विधेयक को उच्च सदन की प्रवर समिति को सौंपे जाने की मांग को प्राथमिकता दी है। इसके लिए सरकार के सामने एक ही विकल्प है कि बजट सत्र के पहले चरण की अवधि को बढ़ाए और आम राय बनाकर इस विधेयक को पारित कराने पर विचार करे। यदि सरकार ऐसा नहीं कर पाती तो सरकार को बजट सत्र को यहीं समाप्त कराकर फिर इस भूमि अधिग्रहण पर अध्यादेश लाने के अलावा दूसरा चारा नहीं बचता। सृत्रों के अनुसार सरकार इन सभी विकल्पों पर गंभीरता से विचार भी कर रही है,लेकिन उसके सामने प्रतिष्ठा बचाने का सवाल भी खड़ा हुआ है।
भूमि बिल पर जोखिम?
भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के तल्ख तेवरों के बीच सरकार उच्च सदन में बुधवार को इस दिशा में जोखिम ले सकती है। सूत्रों के अनुसार विपक्ष इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने के पक्ष में नजर आ रहा है तो सरकार पहले से ही लंबित विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का प्रयास करे और समिति की रिपोर्ट आने तक अध्यादेश के जरिए भूमि कानूनों के सहारे काम करे। यह भी तय है कि यदि प्रवर समिति की रिपोर्ट आने के बाद यदि राज्यसभा में यह विधेयक पारित होता है तो उसे फिर से लोकसभा की मंजूरी लेनी होगी।
अहम होंगे ये तीन दिन
बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम तीन दिन सरकार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जिसमें उसके सामने भूमि बिल समेत तीन अध्यादेशों की जंग जीतने की भी चुनौती है। जैसा कि खबरे आ रही है सरकार इस सत्र को यहीं समाप्त कर सकती है। यदि सरकार ऐसा विचार कर रही है तो यह तय माना जा रहा है कि सरकार बुधवार को ही भूमि अधिग्रहण बिल को पेश करने का प्रयास करेगी। भले ही प्रवर समिति को भेजने के लिए मजबूर होना पड़े। हालांकि संसद से राष्टÑपति भवन तक विपक्ष के मार्च से अलग नजर आए बसपा, बीजद और राकांपा का सरकार को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से साथ मिलने की संभावना है, लेकिन सरकार को इतने से काम चलने वाला नहीं है। सूत्र तो यह भी बता रहे हैं इन दलों के अलावा सपा और अन्य दल सरकार को मतविभाजन के दौरान सदन से वाकआउट करके मदद भी कर सकते हैं, लेकिन अभी ये समीकरण अटकलों पर ही हैं।
18Mar-2015

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