मंगलवार, 31 जनवरी 2023

साक्षात्कार: समाज को नई दिशा देता है साहित्य: अमरजीत ‘अमर’

हिंदी गजल के सशक्त हस्ताक्षर ने पंजाबी गजल संग्रह की भी की रचना 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: अमरजीत ‘अमर’ 
जन्म: 25 अप्रैल 1948 
जन्म स्थान: आदमपुर दोआबा, जालंधर(पंजाब) 
शिक्षा: कला स्नातक 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त सहायक लेखा अधिकारी, महा लेखाकार (लेखा व हकदारी) हरियाणा, चण्डीगढ़। 
BY--ओ.पी. पाल 
हिंदी साहित्य जगत में साहित्यकार, कवि एवं कथाकार अमरजीत 'अमर' हिंदी ग़ज़ल के एक ऐसे सशक्त हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने हर किसी विषय को छूते हुए साहित्य सृजन को समृद्ध बनाने में अपना अहम योगदान दिया है। सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों का सत्य उजागकर कर उन्होंने समाज को नई दिशा में अपने रचना संसार का विस्तार किया है। उनकी रचनाओं में हिंदी व पंजाबी गजलों के अलावा कहानियां और कविताएं, दोहे, टप्पे और संस्मरण जैसी विधाएं शामिल हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कवि सम्मेलनों, मुशायरों तथा साहित्य-चेतना यात्राओं में प्रतिनिधित्व करते रहे अमर ने साहित्य क्षेत्र में ऐसी उपलब्धियां हासिल की हैं, जो साहित्यिक और सामाजिक दृष्टि से भी आज के नए लेखकों के लिए किसी सबब से कम नहीं हो सकती। हरियाणा सरकार के महालेखाकार में सहायक लेखा अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त अमरजीत ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनझुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें सकारात्मक दिशा में की गई रचना स्वत: ही किसी भी लेखक या साहित्यकार को लोकप्रिय बना सकती है। 
सुपरिचित कवि एवं कथाकार अमरजीत अमर का जन्म 25 अप्रैल 1948 एक निर्धन परिवार में हुआ। एक तरह से उनका बचपन से ही ग़रीबी और भुखमरी से संघर्ष में गुजरा और आमजन की कठिनाईयों के इर्द-गिर्द उनकी ग़ज़ल विचरती रही है। उनका मानना है यदि आप पूरी लगन एवं ईमानदारी से सत्य को उजागर करने वाली रचनाओं को लोगों के दिल तक पहुँचाते हैं तो फिर उसमें किसी बदलाव की ज़रूरत ही नहीं। बचपन में उनका कोई संगी साथी नहीं रहा और एकान्त में मन में कुछ विचार कुलबुलाते रहते थे, जिनके बारे में यह भी स्पष्ट नहीं था कि वे कविता है अथवा कहानी। उनकी संगत अधिकतर गाँव के डेरे के संत बाबा जगत राम के साथ रहती थी। उनके आध्यात्मिक कवि होने का शायद यही कारण रहा। बचपन से जब उनको कुछ बड़े लडके या लड़कियां फिल्मी गीत सुनाते, तो वे उसी धुन पर वह कोई न कोई धार्मिक रचना लिख देते थे। घर में इकलौता पुत्र के कारण रूठना उनके अधिकार में था। लेकिन एक बार वह इतना उदास हुए कि उन दिनों एक प्रचलित गीत ‘यह अपना दिल है आवारा ना जाने किस पे आएगा’ गुनगुनाने लगा और कब एक पंजाबी गीत की रचना ने जन्म ले लिया, उन्हें भी इसका पता नहीं चला। मसलन यहीं से उनकी पहली रचना ‘असां कुझ लै नहीं जाणा जिवें आए उवें जाणा’ का उदय हुआ, जिसे सुनकर हर किसी ने उसे शाबासी देते हुए हौंसला बढ़ाने का काम किया। एक तरह से चौथी कक्षा से ही उनका साहित्यिक सफर शुरू हो गया था। अमर का कहना है कि जब वह दोआबा कालेज जालन्धर में ग्यारहवीं कक्षा में थे, तो उन्होंने कवि और कहानीकार के जुनून में हर रोज एक नई कविता लिखी, जिन्हें वह उस जमाने के मशहूर लेखकों को भेजने लगा। हालांकि ज्यादातर ने जवाब नहीं दिया, लेकिन साल 1965 में उपेंद्रनाथ अश्क की ओर से उनकी कविताओं की तारीफ में जवाबी खत आने शुरू हुए, तो उनका हौंसला बढ़ना स्वाभाविक था। अश्क के कहने से ही उनके नाम के साथ उपनाम अमर जोड़ा गया। 
सरकारी सेवा में भी रहा जुनून
गजलों के फनकार अमरजीत ने बताया कि साल 1967 में वह आदमपुर नगरपालिका में बतौर टैक्स कलेक्टर नौकरी करने लगे। वहीं स्टाफ में कविता लिखने की जानकारी फैली। तो ऐसे में किसी ने उन्हें अख़्तर रिजवानी जैसे लेखक व गायक की शागिर्दी को उनके लिए बेहतर रास्ता सुझाया। उसके बाद वह उनसे मुलाकात के लिए बैचेन थे, लेकिन तब तक वह अपने मन में उनकी काल्पनिक तस्वीर बनाकर लिखने लगे। आखिर उनसे मिलने का रास्ता 26 जनवरी 1969 को उस समय मिला, जब एक गांव का लड़का मंच पर अख्तर साब का शेर पढ़ रहा था। उन्होंने उससे पूछ ही लिया कि उसे उनका शेर उसे कहां से मिला। उसने बताया कि अख़्तर रिजवानी अस्पताल में हैं और दवाई व देख भाल का कोई सही इंतज़ाम नहीं है। तब जाकर वह तुरंत उनसे मिले। उनसे मिलने के बाद ही वह जान पाए कि कोई किसी को नहीं सिखा सकता, बल्कि स्वयं ही सीखना होता है। इसी अनुभव का नतीजा है कि उनकी कई कहानियां आकाशवाणी केंद्र जालन्धर से प्रसारित हो चुकी हैं। वहीं दूरदर्शन जालन्धर और चण्डीगढ़ के सौजन्य से प्रसारित कवि-सम्मेलनों में अनेक बार भागीदारी करने का मौका मिला। उनकी उपलब्धियों में आकाशवाणी केंद्र चण्डीगढ़ से ही प्रसारित अंदाजे बयां एवं सुहानी शाम कार्यक्रमों में भी उनकी हिस्सेदारी रहना भी शामिल है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमरजीत ‘अमर’ अब तक हिंदी ग़ज़ल के आठ और पंजाबी ग़ज़ल के दो संग्रह के अलावा के अलावा एक पुस्तक कहानियों और एक कविता व काव्य संग्रह लिख चुके हैं। उनकी इन कृतियों में गजल संग्रह वक्त के अंदाज, आवाजों के इस जंगल में, अम्बर तक जाते सपनों में, वंदनवार उजालों के, क्षितिज के पार शायद, तसवीरों के पीछे, आईना है जिन्दगी, भोर की आस पर’ सुर्खियों में हैं। जबकि उनके पंजाबी गजल संग्रह में रिश्मां दा बूहा तथा कदी तां पुकारदा शामिल हैं। वहीं उनके कविता संग्रह ‘बिना पत्तों वाला पेड़’ काव्यसग्रह ‘पीते हैं जो हलाहल, और कहानी संग्रह आकाश बेल भी बहुर्चित कृतियों में गिना जाता है। वहीं लेखन में नपिन्दर रतन की पुस्तक जो हलाहल पींवदे का का हिन्दी अनुवाद भी शामिल है। इससे पहले अकादमी द्वारा गजल संग्रह ‘अम्बर तक जाते सपनों में’ तथा कविता संग्रह बिना पत्तों वाला पेड़' के प्रकाशनार्य सहायतानुदान दिया गया। जबकि महालेखाकार (लेखा एवं कारी) हरियाणा के सौजन्य से भी उनके गजल संग्रह 'वंदनवार उजालों के’ का प्रकाशन हुआ। अमरजीत अमर कार्यालय हिन्दी पत्रिका ‘नवकिरण’ के संस्थापक संपादक हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी ने अमरजीत अमर को साल 2020 के लिए बालमुकंद गुप्त सम्मान से अलंकृत किया है। इससे पहले उनके कहानी संग्रह ‘आकाश बेल’ को भी वर्ष 2013 हेतु सर्वश्रेष्ठ पुस्तक का पुरस्कार दिया जा चुका है। साहित्य अकादमी उनके गजल संग्रह ‘भोर की आस पर’ को भी बेस्ट बुक ऑफ दा ईयर अवार्ड से नवाज चुका है। वहीं उनके नाम अवार्ड ऑफ रैगनीशन-2016 भी उनकी साहित्यिक उपलब्धियों में शामिल है। इसके अलावा विभिन्न साहित्यिक एवं स्वयं सेवी संस्थाओं के मंच पर उन्हें अनेक पुरस्कारों से नवाजती रही हैं। वहीं अकादमी द्वारा भारत की आजादी के 75 साल के उपलक्ष्य में मनाए जा रहे आजादी महोत्सव के तहत आयोजित 75 एकल काव्यपाठ के लिए जिन 75 कवियों को स्थान दिया है, उसमें 22वें कवि के रूप में प्र्रसिद्ध साहित्यकार अमरजीत अमर का नाम भी शामिल है। 
30Jan-2023

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