सोमवार, 23 जनवरी 2023

चौपाल: भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाती है लोक कला एवं संस्कृति

शिक्षा, साहित्य और संस्कृति को समर्पित दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ व्यक्तिगत परिचय 
नाम: दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ 
जन्मतिथि: एक मार्च 1982 
जन्म स्थान: गांव फरल, जिला कैथल (हरियाणा)। 
शिक्षा: शास्त्री की स्नातक उपाधि, स्नातकोत्तर(हिंदी व संस्कृत), बी.एड.। 
संप्रत्ति: दिल्ली सरकार के विद्यालय में संस्कृत अध्यापक, साहित्यिक लेखन व काव्यपाठ। 
By----ओ.पी. पाल 
भ्यता और संस्कृति के क्षेत्र में हरियाणा और हरियाणवी के योगदान को लेकर एक साधक के रूप में शोध करने वाले दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ इस बात से चिंतित हैं, कि लोक कलाओं से समृद्ध हरियाणा अब इस सांस्कृतिक समृद्धि से दूर होता प्रतीत हो रहा है। एक युवा शिक्षाविद्, साहित्यकार एवं संस्कृतिकर्मी के रूप में वह शिक्षा, साहित्य, लोक कला व संस्कृति के संवर्धन करने के प्रति समर्पित होकर समाजिक चेतना जगाने में जुटे हैं। आज वह हिंदी के अलावा हरियाणवी बोली में काव्य लेखन एवं गद्य लेखन के साथ एक कुशल मंच संचालक, कवि एवं रेडियो कलाकार के रूप में पहचाने जा रहे हैं। विभिन्न आकाशवाणी केंद्रों से हिंदी एवं हरियाणवी काव्यपाठ के जरिए भी वह साहित्य, लोक संस्कृति और सामाजिक उत्कर्ष करने के अलावा निरंतर सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। शिक्षा, साहित्य और संस्कृति को लेकर संवेदनशील एवं बहुआयामी प्रतिभा के धनी दिनेश शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक एवं लोक सांस्कृतिक सफर के बारे में जिन पहलुओं को उजागर किया है, उसमें मातृभूमि और मातृभाषा के प्रति उनकी समर्पण भावना स्पष्ट झलकती है। 
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रियाणा के कैथल जिले के गांव फरल में एक मार्च 1982 को एक शिक्षित एवं सनातन धर्म के संस्कारों से समृद्ध परिवार में जन्मे दिनेश शर्मा ने बताया कि बचपन से ही परिवार से आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक परिवेश मिला। मसलन उनके व्यक्तित्व में आध्यात्मिक संस्कार, शिक्षा, साहित्य, संस्कृति और सभ्यता के प्रति कर्तव्य बोध जागृत करने का श्रेय सुप्रसिद्ध फल्गु तीर्थ फरल के प्राचीन फल्गु मंदिर के उपासक रहे दादाजी और अध्यापक रहे पिता को जाता है। माता जी से व्यवहार में शालीनता और कार्य के प्रति ईमानदारी के गुण मिले। उन्होंने बताया कि बिरला संस्कृत महाविद्यालय कुरुक्षेत्र से शास्त्री की स्नातक उपाधि प्राप्त की है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र से बी.एड. करने के बाद उन्होंने संस्कृत और हिन्दी में स्नातकोत्तर की शिक्षा हासिल की। वर्तमान में दिल्ली के शिक्षा विभाग में संस्कृत अध्यापक के रूप में कार्यरत दिनेश शर्मा मातृभाषा और मातृभूमि के प्रति समर्पित रुप से भारतीय संस्कृति के संवर्धन में जुटे हुए हैं। बकौल दिनेश शर्मा घर में अखबार आता था तो उससे लेखन करने और प्रकाशित होने की इच्छा बलवती हुई और समय-समय पर विद्वानों के मिले मार्गदर्शन के अलावा उनके पिता ने विद्यालय में विभिन्न गतिविधियों में प्रतिभागिता के लिए प्रेरित किया। जब वह तीसरी-चौथी कक्षा में थे तो उन्हें बाल सभा में कुछ लिखों या पढ़ो के लिए कहा जाता था। उन्होंने आठवीं से लेखन कार्य शुरू किया और महज 17 वर्ष की आयु में पहली बार एक अखबार में प्रकाशित हुई बाल कविता से उनका आत्मविश्वास बढ़ा। इसी का नतीजा रहा कि उन्होंने शिक्षा काल से ही विद्यालय और महाविद्यालय के मंचों पर अपनी सांस्कृतिक और साहित्यिक कला का ऐसा प्रदर्शन किया कि उन्हें साहित्य जगत में दिनेश शर्मा ‘दिनेश’ के नाम से पहचाना जाने लगा। उन्होंने बताया कि 2001 में आकाशवाणी कुरुक्षेत्र से पहली बार काव्यपाठ किया, जिसके बाद वर्ष 2002 से लगभग 10 साल तक आकाशवाणी कुरुक्षेत्र के कार्यक्रम ‘किसानवाणी’ के लिए बतौर प्रस्तुतकर्ता जुड़े रहे। आकाशवाणी केंद्रों और टीवी चैनलों से हिंदी और हरियाणवी भाषा में काव्य प्रस्तुति दे चुके दिनेश पिछले 13 वर्षों से हरियाणा साहित्य अकादमी एवं हरियाणा कला परिषद् जैसी संस्थाओं के साथ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों का संयोजन कर रहे हैं। विभिन्न गरिमामयी साहित्यिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक मंचों का संचालन करने के साथ उनके साहित्य लेखन में एक विशेष बात देखने को मिलती है। उनकी अब तक प्रकाशित पुस्तकों व साहित्यिक कार्यो में भारतीय संस्कृति और वर्तमान की परिस्थितियों का समावेश रहा है। फिर चाहे गद्य लेखन हो अथवा पद्य लेखन। मेरे कविताओं में, लघुकथाओं में अथवा आलेखों में आपको भारत का ही कोई न कोई रूप नजर आता है। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अपनी विशेष पहचान बना चुके दिनेश शर्मा बेहद शालीन, विनम्र और व्यवहार कुशल हैं। हरियाणवी लोक संस्कृति के बारे में उनका कहना है कि हरियाणा की लोक कला एवं प्राचीन सभ्यता के अवशेष जो बाणावली (फतेहाबाद), राखीगढ़ी (हिसार), बालू (कैथल) और मिताथल (भिवानी) जैसे स्थानों से प्राप्त हुए हैं, जो इसकी 5000 साल पुरानी सभ्यता की सम्पूर्ण कहानी बयान करते हैं। 
समाज से दूर होती संस्कृति 
इस आधुनिक युग में साहित्य एवं लोक कला व संस्कृति के प्रति रुझान कम होने के सवाल पर दिनेश शर्मा ने कहा कि इस आधुनिकता और व्यावसायिकता के दौर में लोक कलाओं और संस्कृति समाज से दूर हो रही है। इसकी वजह कला के वास्तविक स्वरुप को त्यागकर आज के कलाकार व्यावसायिक दृष्टिकोण से लेखन, गायन, नृत्य अथवा प्रस्तुति दे रहे हैं, जिससे मूल संस्कृति का स्वरूप बिगड़ रहा है। ऐसे में खासकर युवाओं को अपनी संस्कृति अथवा अतीत से प्रेरित करके उनका चारित्रिक निर्माण करने से ही लोक कलाओं व संस्कृति को पुनर्जीवित किया जा सकता है। जहां तक साहित्य के पाठकों में कमी का सवाल है उसके लिए उनका कहना है कि अच्छा साहित्य आज भी बड़े उत्साह से पढ़ा जाता है। अब साहित्य पहले से ज्यादा समाज तक पहुँच बना रहा है और अब उसे केवल पाठक ही नहीं वरन श्रोता और दर्शक भी मिल रहे हैं। दरअसल साहित्य के पारंपरिक स्वरूप को वर्तमान के अनुरूप बदलना होगा। आज सोशल मीडिया अथवा इलेक्ट्रिक मीडिया के दौर में साहित्य भी बदले स्वरूप में पाठकों तक पहुँच रहा है। अब पाठक तक अपनी बात पहुंचाने के लिए साहित्य का प्रारूप पुस्तक से बदलकर ई-पुस्तक या उससे भी बेहतर पॉडकास्ट के रूप में रखा जाएगा तो निसंदेह साहित्य अपेक्षित वर्ग तक पहुंचेगा। 
मंच संचालन के महारथी 
दिनेश शर्मा वर्ष 2009 से निरंतर सामाजिक, साहित्यिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंच-संचालन करते आ रहे हैं, जिन्हें शिक्षा विभाग दिल्ली के जिला स्तरीय तथा प्रदेश स्तरीय शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावा वर्ष 2016 से निरंतर हरियाणा सरकार की स्वायत्त संस्था हरियाणा कला परिषद् और वर्ष 2021 से हरियाणा साहित्य अकादमी के लिए अनेक सांस्कृतिक और साहित्यिक कार्यक्रमों के मंच संचालन का अनुभव प्राप्त है। हरियाणवी सांस्कृतिक कार्यक्रम तैयार करके फल्गु तीर्थ फरल (कैथल) के फल्गु लोककला उत्सव में प्रस्तुति के साथ ही वह कुरूक्षेत्र के तीर्थों के सांस्कृतिक महत्व के समाज तक पहुंचाने की दिशा में एक वेबसाइट का निर्माण कर उसका संचालन भी कर रहे हैं। उनके लिखे अनेक हरियाणवी रागनी और गीत लोकगायकों द्वारा गाए गये हैं। इसके अलावा साहित्य, संस्कृति, सामाजिकता, अध्यापन और शिक्षण आदि जैसी गतिविधियों में सक्रीय दिनेश के जिम्मे फल्गु मंदिर का प्रबंधन भी है। ऐसे में उनकी सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां उनकी पत्नी और अनुज को संभालनी पड़ती है। संस्कृत के शिक्षक होने के नाते वह संस्कृत के ज्ञान से बच्चों को संस्कार देने का कर्तव्य भी निर्वहन कर रहे हैं। 
रेडियो कलाकार की भूमिका 
संस्कृति को समर्पित दिनेश शर्मा वर्ष 2002 से आकाशवाणी कुरुक्षेत्र से करीब 10 वर्ष तक 'किसानवाणी’ कार्यक्रम की प्रस्तुति दे चुके हैं। वहीं आकाशवाणी कुरुक्षेत्र के लिए कृषि विशेषज्ञों एवं किसानों बातचीत के अलावा आकाशवाणी केंद्रों से हिंदी और हरियाणवी काव्य-पाठ भी करते आ रहे हैं। यही नहीं उन्होंने ‘जयतु भारतम्’ यूट्यूब चैनल के लिए दो दर्जन से अधिक कवि सम्मेलनों का संयोजन व संचालन करने के अतिरिक्त 60 से अधिक साहित्यकारों, लोक कलाकारों व गायकों के साक्षात्कार भी किये हैं। 
विभिन्न विधाओं में पुस्तक लेखन 
लोक संस्कृति के अलावा साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में सात पुस्तक लिख चुके दिनेश शर्मा की दो पुस्तकें हरियाणा साहित्य अकादमी तथा एक हरियाणा ग्रंथ अकादमी से प्रकाशित हुई हैं। जबकि एक पुस्तक हरियाणा लोक संपर्क विभाग के पुस्तकालयों के लिए अनुमोदित है। उनकी प्रकाशित कृतियों में सामान्य ज्ञान के हजारों तथ्यों का संकलन के रूप में ‘सक्सेस की’, विरासतः उज्ज्वल संस्कृति पर एक नजर’, ‘फल्गु तीर्थ का सांस्कृतिक महात्म्य’, ‘अभिनंदन’ (साक्षात्कार संकलन), हरियाणवी काव्य-संग्रह ‘घर गाम की बात’, हिंदी काव्य संग्रह ‘आ अब लौट चलें’ साक्षात्कार संकलन ‘कुछ कही, कुछ अनकही’, प्रमुख रुप से शामिल हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
दिनेश शर्मा को शैक्षणिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक योगदान के लिए अनेक साहित्यिक,सामाजिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं सम्मानित किया गया है। हाल ही में उन्हें ‘साहित्य सभा कैथल’ द्वारा 'श्री धीरज त्रिखा स्मृति डिजिटल पत्रकारिता सम्मान 2022’ से अलंकृत किया गया है। वहीं ‘मानवाधिकार संरक्षण संघ सोनीपत’ ने शिक्षा और सामाजिक क्षेत्र में योगदान पर ‘मानव शांति अवार्ड-2022’ से नवाजा है। इससे पहले साहित्य सभा कैथल द्वारा 'फल्गु तीर्थ का सांस्कृतिक महात्म्य’ को डॉ. भगवान दास निर्मोही स्मृति पुस्तक सम्मानित की जा चुकी है। 
23Jan-2023

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