मंगलवार, 10 जनवरी 2023

चौपाल: साहित्य व लोक संस्कृति के बिना समाज की कल्पना बेमाने: फूल

साहित्य में हरियाणवी लोक संस्कृति के बेजोड़ स्तंभ हैं दलबीर
 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक गीत, रागनी और भजन लिखने व गायकी में महारथी लोक कवि दलबीर सिंह ‘फूल’ साहित्य सृजन में भी अपनी रचनाओं से समाज को नई दिशा देने का प्रयास कर रहे हैं। आज रेडियो लोक गायक के रुप में पहचाने जा रहे दलबीर के लोक काव्य और गायकी में हास्य व्यंग्य और चुटकलों के रस का भी मिश्रण मिलता है। साहित्य, लोक गीत और कविताएं लिखने के अलावा उन्हें हारमोनियम, ढोलक, तबला और खुड़ताल वादक जैसी विधाओं में पूर्ण निपुणता हासिल है। ये सब विधाएं उन्हें अपने परिवार के बुजुर्गो से विरासत में मिली, जिन्हें वे लुप्त होती जा रही हरियाणवी लोक कला, संस्कृति एवं सभ्यता को पुनर्जीवित करने के मकसद से आगे बढ़ा रहे हैं, जिन्हें साहित्य में हरियाणवी लोक संस्कृति के बेजोड़ स्तंभ के रुप में जाना जाता है। हरियाणा लोक संस्कृति और लोक गीतों का विभिन्न विधाओं में संवर्धन करने वाले लोक गायक दलबीर ‘फूल’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में लोक गीत से लेकर साहित्यिक सफर तक को विस्तार से वर्णित किया। उनका मानना है कि साहित्य व लोक संस्कृति के बिना समाज की कल्पना करना बेमाने है। 
 ---- 
रियाणा के रेवाड़ी जिले में लिसान गांव में 8 जून 1969 को फूल सिंह सैन फौजी के परिवार में जन्मे दलबीर सिंह ‘फूल’ के दादा स्व. घीसा राम सैन हरियाणवीं रागनी गायक थे, जो एक कुशल ढोलक वादक भी थे। वह बचपन में अपने दादा के साथ गांव में रामलीला की रिहलसल या गाँव में हरि कीर्तन सुनने जाता था। यही नहीं उनके पिता फूल सिंह सैन एक सेवानिवृत्त फौजी होने के साथ हारमोनियम, ढोलक, तबला और खुड़ताल वादक के माहिर थे और वे लोक कवि रेडियो गायक आशु कवि महाशय भीम सिंह के शिष्य थे, तो अपनी अच्छी सुरीली आवाज में हरियाणवीं रागनी गाते थे। दलबीर फूल ने बताया कि परिवार में लोक गायकी और संस्कृति के इस माहौल के बीच उन्हें भी बचपन में संगीत की देवी माँ सरस्वती की कृपा से गीत, रागनी और भजन सुनने, गाणे बजाणे का शोक रहा है। यही कारण है कि वे तीसरी पीढ़ी के रूप में विरासत में मिली इस विरासत को विस्तार देकर समाज में हरियाणवी लोक सृस्कृति और लोक गायकी को जीवंत करने का प्रयास कर रहे हैं। 
लोक संस्कृति की विधाओं में निपुण 
रेडिया गायक दलबीर ‘फूल’ मंच पर अपने काव्य पाठ में अपने स्वर के जादू से हरियाणवी संस्कृति का रसपान कराने में ज्यादा माहिर है, जिनकी लोक कविताओं में हास्य और चुटकलों का समायोजन भी नजर आता है। वे किसी भी मंच से श्रोताओं को हारमोनियम जैसे वाद यंत्रों के सुरों के साथ अपने लोक गीतों से आकर्षित कराने में महारथ हासिल है। उन्हें हारमोनियम से सुर ताल मिलाने की शिक्षा अपने पिता से ही विरासत में मिली। यही कारण रहा कि बचपन में ही स्कूल की बाल सभा में शिक्षक ज्यादातर उन्हीं से हारमोनियम के सुरों के लोक गीत सुनाने को कहते थे। साल 1987 में जब उन्होंने दसवीं कक्षा पास की, तो तभी उन एक महान संत सतगुरु प्यारे साहेब की ऐसी अध्यात्म कृपा हुई, कि उनके सानिध्य में उन्होंने इकतारे पर शब्द वाणी गाई। काव्य लेखन व शास्त्र ज्ञान में उनके दादा की अथाह कृपा रही और गाँव में रिटायर्ड हैडमास्टर स्व. मदन लाल शर्मा अपने कीर्तन मण्डल में उन्हें हारमोनियम वादक और गायकी का ज्याद मौका देते थे। 
जब फूल पर पड़े दुख के कांटे 
समाज में उतार चढ़ाव और दुख सुख जीवन की सतत प्रक्रिया है। इससे उनके परिवार को भी गुजरना पड़ा। उन्होंने बताया कि अचानक उनके हँसते खेलते परिवार में भाग्य ने ऐसा पलटा मारा, कि उनके छोटे भाई धर्मबीर को बोन कैंसर जैसी असाध्य बिमारी के चोला छोड़ गये। इसी कारण वह इतना टूट चुके थे कि चार-पांच साल तक उनकी लेखनी खामोश रही। कलम नही चली। समय से समझोता कर मैं कुछ संभला तत्प़श्च़ात भाई के सदमें में माता जी का स्वर्गवास हो गया इस प्रकार मैं काफी टूट चुका था। उनका कहना है कि कभी फूल, कभी कांटे और दुख के बाद सुख के जीवन चक्र में काली अंधेरी रात के बाद एक नया सवेरा आया। उन्होंने एक पुरानी मिसाल देते हुए कहा कि पहलवान और महाशय गाँव बणाता है, इसलिए सर्वप्रथम अपने गाँव लिसान की पावन भूमि को नतमस्तक हो प्रणाम कर सभी ग्राम वासियों का आभार अभिनंदन करना उनका कर्तव्य है। 
यहां से मिला साहित्य मंच 
लोक गायक एवं कवि दलबीर ने बताया कि उनके साहित्य गुरु बिकानेर गाँव के प्रख्यात हास्य कवि हलचल हरियाणवी से मिली कविताओं, मुक्तक, कुण्डलिया और हास्य के विभिन्न छंदो की शिक्षा ने उन्हें साहित्य के मंच तक पहुंचाया। हलचल से मिलने का सुझाव उन्हें मार्च 2010 में भारत भ्रमण साईकिल यात्रा पर निकले सैन समाज के एक भगत ने उनकी रचनाओं को पढने के बाद दिया था। उन्होंने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी, कि वह दूरदर्शन और आकाशवाणी रेडियों के लोक गायक के रूप में पहचान बना लेंगे और समाचार पत्र पत्रिकाओं में उन्हें स्थान मिलेगा। इसी आत्मविश्वास का नतीजा रहा कि उनकी साल 2012 में पहली पुस्तक 'श्री नारायणी जी' प्रकाशित हुई। इसके बाद हरियाणवी भाषा में 'आथूणा की हवा चालग्यी', सांग सरोवर और वो दिन बचपन के नामक तीन पुस्तक अकादमी से अनुदान में छपी और अब तक उनपकी पाठकों के बीच ग्यारह पुस्तकें आ चुकी हैं और गेड़ा नेपाल का, मुक्तक से घनाक्षरी छंद तक, हरयाणवी धमाल जैसी चार पुस्तकों पर काम चल रहा है। यही नहीं उनके हरियाणवी हास्य कहाणी संग्रह में संपादन ज्ञान गूदडी़, हरियाणवी बारामासी कुण्डलिया, झंकार भी टंकार भी, ताऊ बुदधा के अलावा हरियाणवी काव्य खण्ड़ लोक संस्कृति के साधक और ‘विदुर न्यूँ बोल्या’ जैसी कृतियां बेहद लोकप्रियता हासिल कर रही हैं। 
टीवी व रेडियो पर लोक काव्य 
उन्होंने बताया कि साल 2015 में उन्हें ‘बेटी बचाओ, बेटी पढाओ’ पर कविता पाठ के लिए हिसार दूरदर्शन में बुलाया गया। इसके बाद से जनता टीवी, एनडीटीवी, आज तक, और हरियाणा न्यूज दूरदर्शन से हरियाणवी कविता पाठ प्रसारण भी हुआ। उन्होंने बताया कि आकाशवाणी में पहली बार कविता पाठ के लिए उनकी स्वर परिक्षा हुई और उन्हें विश्वास भी नहीं हुआ कि उन्हें हरियाणवी रागनी कलाकारों परीक्षा में पास हो गया। साल 2018 में उनकी हरियाणवी काव्य पाठ की पहली रिकार्डिंग हुई। लोक गायकी में उनके स्वर को इतना पसंद किया गया कि कला एंव सांस्कृतिक विभाग की टीम के प्रभारी हृदय कौशल द्वारा लिये ओडिशन में वह हरियाणा के बहुत शहरों में आयोजित 'धमाल' कार्यक्रमों के लिए चयनित होकर उनके लोक गीत और काव्य लोकप्रिय हो गये। इस मुकाम तक पहुंचे दलबीर फूल का कहना है कि उनकी हरियाणावी लोक काव्य की इस यात्रा में बाबू बालमुकुंद गुप्त संस्था के महासचिव एवं हरियाणवी बोली के सतंभकार सत्यवीर नाहडिया, साहित्य एवं लोक नाट्य कला संरक्षण परिषद रेवाड़ी के अध्यक्ष डा. शिवताज सिंह , हास्य कवि एंव पत्रकार आलोक भाण्डोरिया, डा. त्रिलोकचंद फतेहपुरी, राजकिशन नैन, डा. महावीर निर्दोष, नेकीराम मुकुट अग्रवाल,गो पाल कृष्ण विद्यार्थी,रामफल चहल, संगीत प्रवक्ता प्रदीप महरोलिया, अशोक कुमार ढोरिया, रौनक हरियाणवी, देशराम देशप्रेमी, राजेश कुमार चिल्हड़, रोताश कुमार लाला के प्रोत्साहन के लिए वह जीवन पर्यन्त आभारी रहेंगे। 
सम्मान व पुरस्कार 
प्रसिद्ध लोक कवि दलबीर फूल को लोक गायकी, हारमोनियम जैसी विभिन्न लोक विधाओं के अलावा साहित्य लेखन के लिए हरियाणा के अलावा दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब में अनेको मंचो से सम्मानित किया गया। यही नहीं जून 2022 में काव्य पाठ के लिए उन्हें नेपाल की राजधानी काठमांडू में भारत नेपाल काव्य महोत्सव में काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। दक्षिणी हरियाणा सांस्कृतिक मंच नारनौल से धमाल गायन, भोपाल के गांधी भवन में राम धारी सिंह पुरस्कार, कानपुर में महाबीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार, रेवाड़ी से बाबू बालमुकुन्द गुप्त पुरस्कार, कैथल से बाबूराम एडवोकेट स्तृति सम्मान, आवाज फाऊंडेशन हरियाणा संस्था से आवाज गौरव सम्मान मिल चुके हैं। 
हाशिए पर लोक संस्कृति 
आधुनिक में हाशिए पर जाते साहित्य, संस्कृति, लोक कला व लोकगीत को बचाने के लिए उनका कहना है कि समाज और राष्ट्र की रीढ़ यानी युवाओं को कला, साहित्य, संगीत आदि से जोड़ना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य भी है। इसका कारण है कि वर्तमान युग में इन विधाओं पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है, जिस वजह से अपनी संस्कृति से विमुख होते सामाजिक अवमूल्यन तेजी से हो रहा है। आजकल लेखन एवं मंचन में अश्लीलता घर कर गई है जो बेहद चिंतनीय है। साहित्य कला एवं संस्कृति को भौंडापन व अश्लीलता से बचाने से ही लोक कला व संस्कृति को जीवंत किया जा सकता है। 
09Jan-2023

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें