मंगलवार, 25 अगस्त 2015

आरटीआई के दायरे में नहीं आना चाहते सियासी दल!

एकजुट राजनीतिक दलों के बचाव में उतरी केंद्र सरकार
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्रीय सूचना आयोग के निर्देश के बाद सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बावजूद कोई भी राजनीतिक दल आरटीआई के दायरे में आने को तैयार नहीं है और इस मुद्दे पर एकजुट राजनीतिक दलों के बचाव में अब केंद्र सरकार भी सामने आ गई है, जिसने सुप्रीम कोर्ट में एक शपथ पत्र देकर राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर ही रखने की वकालत की है।
देश में आरटीआई आंदोलन के साथ ही तमाम सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों के बारे में जानकारी हासिल करने का अधिकार आम लोगों को मिल गया था, जिसमें सभी राजनीतिक दलों को भी आरटीआई के दायरे में शामिल करने की मुहिम में केंद्रीय सूचना आयोग ने एक आदेश के तहत सभी राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में शामिल कर लिया था, लेकिन इस आदेश के खिलाफ तमाम राजनीतिक दल एकजुट होते नजर आए थे। जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो शीर्ष अदालत ने सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत गत 13 सितंबर 2013 को एक आदेश में स्पष्ट किया था कि उम्मीदवारों के शपथपत्र का कोई भी हिस्सा खाली नहीं रहना चाहिए, इसी तर्ज पर फार्म 24-ए जो राजनीतिक दलों द्वारा बीस हजार रुपये से ज्यादा दान देने वाले लोगों के लिए प्रस्तुत किया जाता है। चुनाव सुधार के लिए चुनाव आयोग के साथ मिलकर काम कर रहे गैर राजनीतिक संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म यानि एडीआर राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में लाने के लिए निरंतर आवाज बुलंद की। वहीं प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने भी राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे में शामिल करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रखी है। इसी याचिका की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सोमवार को केंद्र सरकार ने हलफनामा दायर करके राजनीतिक दलों को आरटीआई के दायरे से बाहर रखने की मांग की है।
बसपा व सीपीएम ने दिया समय से ब्यौरा
केंद्रीय सूचना आयोग के आदेश के तहत सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार केंद्रीय चुनाव आयोग भी राजनीतिक दलोें से वार्षिक वित्तीय आय और व्यय के ब्यौरा हासिल कर रहा है, लेकिन वर्ष 2013-14 के वित्तीय ब्यौरा चुनाव आयोग में प्रस्तुत करने की 30 नवंबर 2014 की अंतिम तिथि के बावजूद छह राष्टÑीय दलों में भाजपा एक मात्र ऐसी अकेली पार्टी रही जिसने एक माह का समय मांगने के बावजूद आज तक वित्तीय रिपोर्ट चुनाव आयोग को नहीं सौंपी है। जबकि बसपा व सीपीएम ने निर्धारित तिथि से पहले अपना वित्तीय ब्यौरा चुनाव आयोग को सौंप दिया था, जबकि कांग्रेस, राकांपा व सीपीआई अपना यह वित्तीय ब्यौरा चुनाव आयोग को बाद में सौंपा। हालांकि कांग्रेस ने आरपीएक्ट 1951 में संशोधन के बिना चुनाव आयोग के ऐसी रिपोर्ट मांगने पर आपत्ति जताई है।
इसलिए जरूरी है आरटीआई
चुनाव आयोग के अनुसार भारतीय आयकर अधिनियम के अनुच्छेद 13ए का उद्देश्य राजनीतिक दलों के कामकाज में वित्तीय कामकाज मेें पारदर्शिता लाने के लिए चुनाव आयोग में पंजीकृत तमाम पार्टियों को अपनी आय व व्यय को सार्वजनिक करना जरूरी है। राजनीतिक दलोें का आयकर माफ होता है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि दलों को अपना आडिटिड एकाउंट रखना जरूरी है। मसलन सभी राजनीतिक दलों को आयकर अधिनियमों के सभी प्रावधानों का अनुपालन करना अनिवार्य है। इसीलिए नियमानुसार चुनाव आयोग में राजनीतिक दलों को वित्तीय ब्यौरा जमा करने के निर्देश हैं।

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