रविवार, 30 अगस्त 2015

पाक: ऐसे नहीं सुधरेंगे हम!

राग दरबार
आतंकवाद का खामियाजा भुगतेगा पाक
एक पुरानी कहावत-’कुत्ते की पूंछ सौ साल बाद भी जमीन से निकालों को टेढ़ी की टेढ़ी रहती है’ पाकिस्तान के लिए सटीक बैठती है, जो आतंकवाद पर दुनिया के दबाव के बावजूद सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। भारत के खिलाफ आतंकवाद को हथियार बनाते आ रहे पाकिस्तान को दुनिया के दबाव का भी असर नहीं है। भारत लगातार पाकिस्तान से संबन्ध सुधारने के मकसद से बातचीत करने के लिए तत्पर है, लेकिन उफा समझौते से पीछे हटते हुए आतंकवाद पर एनएसए स्तर की वार्ता से अपनी पोल खुलने के डर से उल्टा चोर कोतवाल को डांटे जैसी कहावत को जन्म देता नजर आया। उसका डर भी स्वाभाविक है वो भारत पर आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाने के फेर में था, लेकिन भारत के पास तो जिंदा आतंकवादी था और अब तो भारत के पास पाकिस्तान के दो जिंदा आतंकवादी हैं, जिन्हें लेकर भारत के पास पाकिस्तान को दुनिया में बेनकाब करने का भारत के पास और भी ज्यादा पुख्ता सबूत है। अब तो पाकिस्तान की दाउद इब्राहिम जैसे आतंकी को शरण देने की पोल भी खुलने लगी है, जिसके पाक में होने से हमेशा वह इंकार करता रहा है। ऐसे में सुधरने का नाम नहीं ले रहे पाकिस्तान को लेकर विदेश मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के सकारात्मक कदमों के बावजूद भी पाकिस्तान अपने रवैये में सुधार नहीं करता तो उसे आतंकवाद की जमीन बोने का खामियाजा आने वाले दिनों में भुगतना ही पड़ेगा। इसका कारण साफ है कि भारत को आतंकवाद को लेकर लगातार वैश्विक समर्थन हासिल कर रहा है। ऐसे में चाहिए कि पाकिस्तान को धमकियां देने के बजाए आतंकवाद पर लगे आरोपों को स्वीकार कर लेना चाहिए इसी में उसका भला है?
युवराज का टपोरी अंदाज
कहते हैं जैसा खाओगे अन्न ऐसा होगा मन..वाकई कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी की बोली से यही लगने लगा है। मोदी डर कर भाग गया, पीएम में नहीं है दम, जैसे जुमले राहुल की जुबान से फिसल नहीं रहे, बल्कि अपनी पार्टी को ऊर्जा देने के लिए उसके जब सभी जादू फेल हो गये तो वह संसद के बजट सत्र से एक माह के अज्ञातवास में आक्रमकता का सबक सीखकर सियासत करने के नए अंदाज में उतरे। संसद के मानसून सत्र में जिस प्रकार की आक्रमकता राहुल ने पेश की उसे देखकर नहीं लगता कि अपने पिता से तो उन्हें शायद संस्कार मिल नहीं पाए और मां वो संस्कार नहीं दे पाए जो उसके पिता विरासत में छोड़कर गये थे। राहुल के शिष्टाचार के विपरीत बोल पर सोशल मीडिया पर जिस प्रकार टिप्पणी हो रही है उसमें राहुल के बोल को टपोरी अंदाज करार दिया जा रहा है। राहुल के मोदी को निशाना बनाकर जिस प्रकार की भाषा इस्तेमाल की जा रही है उस पर यह टिप्पणी भी सामने आई कि शायद परिवारिक संस्कार से महरुम रहे राहुल गांधी दिग्विजय की संगत में बिगडैल हो गये हैं, जो प्रधानमंत्री और उनकी उम्र का लिहाज भी भूल गये है। राहुल के टपोरी अंजाद में एक टिप्पणी तो ऐसी आई जिसमें रोमन में लिखी सुलेख पढ़ने वाले युवराज कम से कम शिष्ट भाषा तो सीख लें और जिस भाषा को वह आजकल बोल रहे है उसका उनके परिवार की सभ्यता संस्कृति से दूर-दूर का भी वासता नहीं है।
मानदंडों के फेर में बिहार
‘सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे’ वाली कहावत को मोदी सरकार ने बिहार के सियासी घमासान में जाने से पहले चरितार्थ कर दिया। मसलन लंबे समय से बिहार को विशेष दर्जा देने की मांग को चुनाव में मुद्दा बनाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाजपा के खिलाफ हथियार के रूप में सामने करने के प्रयास मेें थे, लेकिन बिहार में सियासी मुकाबला मोदी बनाम नीतिश के बीच ही होने के आसार हैं, इसलिए केंद्र सरकार ने राज्य को विशेष दर्जा देने वाली गेंद को मानदंडों के फेर में डाल दिया यानि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए या नहीं इसका ठींकरा सीधे पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के सिर फोड़ दिया है। केंद्र सरकार भी इस मुद्दे का सेहरा नीतीश के सिर बांधने के कतई पक्ष में नहीं थी, इसलिए केंद्र सरकार ने अब पूर्ववर्ती संप्रग सरकार की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए साफ कर दिया कि राष्ट्रीय विकास परिषद के मानदंडों के आधार पर बिहार को विशेष श्रेणी का दर्जा प्रदान नहीं किया जा सकता और यह रिपोर्ट यूपीए सरकार की अंतर-मंत्रालयी समूह ने 30 मार्च 2012 को जारी की थी। ऐसे में इस मुद्दे पर जदयू-राजग गठबंधन का चुनावी मैदान में भाजपा के खिलाफ फेंकने का मौका ही नहीं मिल सकेगा। यही राजनीतिक दावं-पेंच का तकाजा है।
सांसद जी की खुशफहमी
पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले भाजपा के एक सांसद इन दिनों खासा उत्साहित हैं। कारण, उनको इस बात की खुशफहमी हो गई है कि सदन में उनकी उपस्थिति और उनकी सक्रियता का जल्द ही उचित पुरस्कार मिलेगा। मंत्रिमंडल विस्तार में उनको मंत्री पद मिल सकता है। अब वो सीधे-सीधे तो यह नहीं कह पा रहे। लेकिन, जब भी कोई उनसे मिलता है तो हल्की-फुल्की बातचीत के बाद वे ये बताने लगते हैं कि उन्होंने कितने सवाल पूछे हैं। किन समितियों की कितनी बैठक में उनकी उपस्थिति रही है। इसके अलावा कौन कौैन वरिष्ठ मंत्री उनकी सक्रियता के लिए शाबाशी दे चुके हैं। लगे हाथ वे ये बताना नहीं भूलते कि भाई, प्रधानमंत्री जी के पास सबकी परफार्मेंस रिपोर्ट है। उसके आधार पर ही संगठन और सरकार में नई भूमिका तय होगी।
30Aug-2015

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