लोस में 35 घंटे व रास में 83 घंटे का समय बर्बाद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र में विपक्ष के दबाव में सरकार भले ही नहीं झुकी, लेकिन हर दिन दोनों सदनों में ललितगेट और व्यापम घोटाले के मुद्दे पर बरपते रहे विपक्ष के हंगामे ने सरकार के महत्वपूर्ण कामकाज को भी अंजाम तक नहीं जाने दिया। संसद में सत्र के दौरान हर दिन इस हंगामे के कारण बर्बाद हुए समय के साथ जिस जनता के पैसे के हुए नुकसान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 17 दिन की कार्यवाही के नाम पर करीब 255 करोड़ रुपये की रकम फूंकी जा चुकी है।
संसद के सत्र के दौरान हर मिनट और घंटे खर्च होने वाली रकम की आहुति इस लोकतंत्र के हवन में डाली ही जाती है, भले ही कार्यवाही चले या हंगामे में समय की बर्बादी हो। मसलन संसद की कार्यवाही न चलने का नुकसान होने वाली रकम देश की जनता की होती है जो सरकार के विभिन्न करो के रूप में अदा करती है। संसदीय सूत्रों के अनुसार औसतन दोनों सदनों में एक दिन की कार्यवाही पर 15 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। संसद के मानसून सत्र में 17 दिनों की बैठके हुई, भले ही उस दौरान कामकाज हुआ या हंगामा इसका नियत खर्च पर कोई फर्क नहीं पड़ता यानि इन दिनों में एक दिन की दोनों सदनों में कार्यवाही पर 15 करोड़ के हिसाब से 255 करोड़ रुपये का खर्च बैठता है। संसद में ललितगेट और व्यापम घोटाले पर सरकार के प्रयास के बावजूद अंतिम दिन तक भी गतिरोध नहीं टूट सका, जिसका नतीजा सरकार जीएसटी, भूमि अधिग्रहण और अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में नाकाम साबित हुई।
लोकसभा में हुआ ज्यादा काम
मानसून सत्र के दौरान दोनों सदनों की 17 बैठकों में औसतन छह-छह घंटे की कार्यवाही चलाई जानी थी। राज्यसभा सचिवालय के अनुसार राज्यसभा में पहले दिन से कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष का हंगामे के साथ सदन की कार्यवाही होती आ रही थी, जिसके कारण 82 घंटे से ज्यादा समय बर्बाद हुआ। सदन में केवल नौ घंटे से कुछ ज्यादा की बैठक हो सकी, जिसमें तीन विधेयक वापस हुए और दो पेश हुए, जबकि छह निजी विधेयक भी पेश किये गये। सदन में प्रश्नकाल पटरी पर न होने के कारण 3150 सवालों में से केवल छह सवाल ही पूरे हो पाए। हालांकि हंगामे में ही संसदीय रिपोर्ट समेत 37 आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखे जा सके। इसके विपरीत लोकसभा में हंगामा करने वाले कांग्रेस के 25 सांसदों के निलंबन के दौरान ज्यादा कामकाज हुआ। लोकसभा सचिवालय के अनुसार लोकसभा में पेश किये गये दस में से छह विधेयकों को पारित किया गया है, जहां 34 घंटे चार मिनट का समय बर्बाद हुआ, जिसकी पूर्ति करने के लिए सदन की 5.27 घंटे अतिरिक्त समय चलाया गया।
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र में विपक्ष के दबाव में सरकार भले ही नहीं झुकी, लेकिन हर दिन दोनों सदनों में ललितगेट और व्यापम घोटाले के मुद्दे पर बरपते रहे विपक्ष के हंगामे ने सरकार के महत्वपूर्ण कामकाज को भी अंजाम तक नहीं जाने दिया। संसद में सत्र के दौरान हर दिन इस हंगामे के कारण बर्बाद हुए समय के साथ जिस जनता के पैसे के हुए नुकसान का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 17 दिन की कार्यवाही के नाम पर करीब 255 करोड़ रुपये की रकम फूंकी जा चुकी है।
संसद के सत्र के दौरान हर मिनट और घंटे खर्च होने वाली रकम की आहुति इस लोकतंत्र के हवन में डाली ही जाती है, भले ही कार्यवाही चले या हंगामे में समय की बर्बादी हो। मसलन संसद की कार्यवाही न चलने का नुकसान होने वाली रकम देश की जनता की होती है जो सरकार के विभिन्न करो के रूप में अदा करती है। संसदीय सूत्रों के अनुसार औसतन दोनों सदनों में एक दिन की कार्यवाही पर 15 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। संसद के मानसून सत्र में 17 दिनों की बैठके हुई, भले ही उस दौरान कामकाज हुआ या हंगामा इसका नियत खर्च पर कोई फर्क नहीं पड़ता यानि इन दिनों में एक दिन की दोनों सदनों में कार्यवाही पर 15 करोड़ के हिसाब से 255 करोड़ रुपये का खर्च बैठता है। संसद में ललितगेट और व्यापम घोटाले पर सरकार के प्रयास के बावजूद अंतिम दिन तक भी गतिरोध नहीं टूट सका, जिसका नतीजा सरकार जीएसटी, भूमि अधिग्रहण और अन्य महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने में नाकाम साबित हुई।
लोकसभा में हुआ ज्यादा काम
मानसून सत्र के दौरान दोनों सदनों की 17 बैठकों में औसतन छह-छह घंटे की कार्यवाही चलाई जानी थी। राज्यसभा सचिवालय के अनुसार राज्यसभा में पहले दिन से कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष का हंगामे के साथ सदन की कार्यवाही होती आ रही थी, जिसके कारण 82 घंटे से ज्यादा समय बर्बाद हुआ। सदन में केवल नौ घंटे से कुछ ज्यादा की बैठक हो सकी, जिसमें तीन विधेयक वापस हुए और दो पेश हुए, जबकि छह निजी विधेयक भी पेश किये गये। सदन में प्रश्नकाल पटरी पर न होने के कारण 3150 सवालों में से केवल छह सवाल ही पूरे हो पाए। हालांकि हंगामे में ही संसदीय रिपोर्ट समेत 37 आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखे जा सके। इसके विपरीत लोकसभा में हंगामा करने वाले कांग्रेस के 25 सांसदों के निलंबन के दौरान ज्यादा कामकाज हुआ। लोकसभा सचिवालय के अनुसार लोकसभा में पेश किये गये दस में से छह विधेयकों को पारित किया गया है, जहां 34 घंटे चार मिनट का समय बर्बाद हुआ, जिसकी पूर्ति करने के लिए सदन की 5.27 घंटे अतिरिक्त समय चलाया गया।
यूपीए नहीं तोड़ पाई राजग का रिकार्ड
कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष ने राजग सरकार के खिलाफ भले ही लगभग पूरे मानसून सत्र को अपने हंगामे की भेंट चढ़ाकर कार्यवाही बाधित की हो, लेकिन संसद में हंगामे का रिकार्ड अभी भी राजग के नाम बरकरार है। मसलन 15वीं लोकसभा में जब कांग्रेस सत्ता में थी तो वर्ष 2010 में संसद का शीतकालीन सत्र 2जी स्पेक्ट्रम मुद्दे पर लगभग पूरा ही उस समय विपक्षी दल राजग के हंगामे की भेंट चढ़ गया था, जिसमें लोकसभा में 124 घंटे 40 मिनट की समय की बर्बादी अभी भी रिकार्ड पर है। हालांकि इस दौरान सरकार को विपक्ष के सामने झुककर 2जी की जांच के लिए जेपीसी का गठन भी कर दिया था, जबकि इस मानसून सत्र में मोदी सरकार विपक्ष के किसी दबाव में तनिक भी नहीं झुकी।
पिछले मानसून सत्र में ज्यादा काम
मोदी सरकार के शासन काल में इस मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में लोकसभा में हंगामे के बावजूद 41 प्रतिशत और राज्यसभा में मात्र आठ प्रतिशत ही काम हो सका, जबकि पिछले साल के मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में 122 प्रतिशत और राज्यसभा में 102 कामकाज हुआ था, जिसमें लोकसभा में लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधित) अधिनियम, रेलवे (संशोधित), जलमार्ग, जीएसटी विधेयक और भूमि अधिग्रहण विधेयक, संशोधित प्रतिपूरक वनीकरण फंड और बेनामी लेनदेन (निषेध) विधेयक-2015 पारित किये गये थे।
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लोकतंत्र की परंपरा का सवाल
संसद भारतीय लोकतंत्र में वाद-विवाद और देश को व्यवस्थित करने की नीतियां बनाने का स्थान है, लेकिन जिस तरह संसदीय गरिमा को तार-तार किया जा रहा है उससे भारतीय संविधान की प्रस्तावना का औचित्य ही समाप्त हो जाता है। भारत के संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र होने की बात कही गयी है। संसद एक राजनीतिक संस्था है और राजनीतिक विमर्श के लिए राजनीतिक हितों की विभिन्नताओं को समझना बहुत जरूरी है। राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर संसद की गरिमा और मर्यादा को कायम रखते हुए लोकतंत्र की परंपरा को व्यवस्थित करना जरूरी है अन्यथा इसके दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।
-योगेन्द्र नारायण (राज्यसभा के पूर्व महासचिव)
14Aug-2015
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