रविवार, 2 अगस्त 2015

राग दरबार: सियासत में दाग-ए-मुकाबला

मेरी कमीज से ज्‍यादा .....
सफेदी की चमकार..मेरी कमीज से ज्यादा उसकी कमीज ज्यादा सफेद कैसे! इस तरह के विज्ञापन का स्लोगन आजकल देश की राजनीति में साफ दिख रहा है। मसलन संसद के मानसून सत्र में दो सप्ताह की संसदीय कार्यवाही में हंगामा इसी स्पर्धा के ईर्दगिर्द घूम रहा है। संसद में ललित मोदी प्रकरण और व्यापम घोटाले को लेकर एक केंद्रीय मंत्री और दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे की मांग को लेकर केंद्र सरकार को घेरे हुए कांग्रेस को सत्ताधारी भाजपा ने इन लगे दागो का जवाब कांग्रेस पर लगे दागो से देने की रणनीति बनाई, जिसका नतीजा संसद की दो सप्ताह की कार्यवाही दाग-ए-मुकाबला की भेंट चढ़ गई। राजनीतिकारों का मानना है कि संसद के दोनों सदनों में कांग्रेस इन मुद्दों पर चर्चा की मांग करने के बावजूद इसलिए चर्चा से भाग रही है कि यदि चर्चा के बाद प्रस्ताव पारित होने पर यदि भाजपा शासित राज्यों के दो मुख्यमंत्रियों का इस्तीफा होता है तो उसी तर्ज पर कांग्रेसशासित राज्यों के दागों पर चर्चा होने पर कांगे्रस के आधा दर्जन मुख्यमंत्रियों का इस्तीफा देना पडेगा। संसद में सरकार और विपक्ष के बीच यही गतिरोध दाग-ए-मुकाबला का सबब बना हुआ है।
मुलायम की उलझन
उत्तर प्रदेश को लेकर मुलायम सिंह यादव चिंता में डूबे हैं। नेताजी को आभास हो चला है कि मुस्लिमों का समाजवादी पार्टी से मोहभंग हो रहा है। 2012 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान सपा को मुसलमानों के वोट खूब मिले थे। नेताजी को उम्मीद थी कि मुस्लिमों में उनका रूतबा बरकरार रहेगा और अगले विधानसभा चुनाव में भी यादव-मुस्लिम गठजोड़ जीत दिलाने में कामयाब रहेगा। अब सुनने में आ रहा है कि मजलिस-ए-इतहादउल मुस्लिम (एमआईएम) के चीफ और लोकसभा के सांसद असुदुद्दीन औवेसी 2017 के यूपी चुनाव में पूरी ताकत के साथ मैदान में होंगे। कहा जा रहा है कि अगर ऐसा हुआ तो मुस्लिम वोट मुलायम का साथ छोड़ सकते हैं। कयास यह भी है कि औवेसी और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच गठबंधन को लेकर चर्चा चल रही है। देखना यह है कि मुलायम सिंह इस दुविधा से कैसे निकलते हैं।
मंत्री जी की हसरत
एक खास तबके के कल्याण का जिम्मा संभाल रहे एक जूनियर मंत्री उस दिन की राह देख रहे हैं जब वह बड़े मंत्री की जगह बैठ सके। वह अपनी इस भावना को कभी भी चेहरे ओर शब्दों के जरिए झलकने नहीं देते। किंतु, जब वह दिल खोलकर बात करते हैं तो साफ पता चल जाता है। बानगी के तौर पर, एक दिन जूनियर मंत्री अपने कार्यालय में बैठे थे कि कुछ पत्रकार मिलने पहुंच गए। कुछ देर गप ठहाका के बाद एक पत्रकार ने पूछ लिया कि आप के पास नई योजना क्या है? मंत्रीजी, हंस पड़े। कहा कि, योजना तो बहुत सी हैं दिमाग में मगर मेरी कुर्सी का कद आपको पता है। अब बड़ी कुर्सी पर होता तो... कुछ और बात होती। इतना कहने के साथ ही मंत्री और पत्रकार हठाका लगा कर हंस पड़े।
अब फिर क्यों गुस्साई ईरानी
पीएम नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में एक हाईप्रोफाइल मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाल रही केंद्रीय एचआरडी मंत्री चाहे-न चाहे विवाद उनका पीछा छोड़ने का नाम ही नहीं लेते। कभी मंत्री द्वारा अपने विभाग के अधिकारियों पर खींजने का मामला सुनाई पड़ता है तो कभी मंत्रालय के बाहर विवाद उनका पीछा करने लगते हैं। अब ताजा चर्चा यानि विवाद एचआरडी मंत्री द्वारा डीओपीटी विभाग की पीएमओ से शिकायत करने के रूप में सामने आ रहा है। दरअसल डीओपीटी विभाग की ओर से एचआरडी मंत्रालय की एक सूचना पर मीडिया में खबर आने के बाद से ईरानी बेहद खफा हैं और अब उन्होंने पीएमओ को भेजी अपनी शिकायत में डीओपीटी विभाग को किसी अन्य मंत्रालय के मामले को लेकर अंतिम निर्णय न हो जाने तक मीडिया में जानकारी प्रकाशित न होेने का तर्क चस्पा कर दिया है। पीएमओ का मामले को लेकर फैसला जो भी हो लेकिन मंत्री जी के नाम एक और विवाद तो जरूर चस्पा हो ही गया।
--ओ.पी. पाल, आनंद राणा, अजीत पाठक, कविता जोशी
02Aug-2015

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