रविवार, 23 अगस्त 2015

फिर खटाई में पड़ी चाबहार बंदरगाह परियोजना!

हफ्तेभर में प्रतिबद्धता से पलटे ईरान ने दिया झटका
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भारत की महत्वकांक्षी चाबहार बंदरगाह परियोजना पर समझौते के बावजूद ईरान के बदले रवैये ने भारत की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मसलन पिछले हफ्ते ही दोनों देशोें के बीच इस परियोजना पर प्रतिबद्धता दोहराई गई थी, लेकिन ईरान के बदले सुरो ने भारत की उस परियोजना को फिर से खटाई में ड़ाल दिया है, जिसके जरिए भारतीय पोतों को पाकिस्तान को नजरअंदाज करके ईरान व अफगानिस्तान तक जाने का रास्ता मिल सकता था।दरअसल गत 14 अगस्त को भारत के दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री जव्वाद जरीफ के साथ दोनों देशों के बीच संबन्धों को और मजबूत करने के लिए द्विपक्षीय वार्ताएं भी हुई। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी के साथ भी ईरानी विदेश मंत्री ने विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की और दोनों देशों के संबन्धों को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई गई। जहाजरानी मंत्रालय के सूत्रों की माने तो भारत ने पाकिस्तान को ठेंगा दिखाते हुए चाबहार बंदरगाह परियोजना पर ईरान के साथ मिलकर अंजाम तक पहुंचाने की कूटनीतिक योजना बनाई थी। इस परियोजना तीन महीने पहले यानि मई माह में ईरान के दौरे पर तेहरान में केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने भारत और ईरान के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किय। भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह पर दो टर्मिनल विकसित करने के लिए दूसरे चरण के विकास और परिचालन हेतु दोनों सरकारों के संगठनों के बीच समझौता यानि अनुबंध को गति देने पर बातचीत लगभग अंतिम चरणों में थी। यही नहीं दोनों देशों ने चाबहार बंदरगाह की क्षमता के दोहन की दिशा में जल्द से जल्द भारत-ईरान-अफगानिस्तान ट्रांजिट समझौता करने पर भी सहमति बना ली थी। एक सप्ताह पहले इस परियोजना को विकसित करने के लिए बढ़ी भारत की उम्मीदों को उस समय झटका लगा, जब इस करार के लिए भारतीय जहाजरानी मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमंडल दोनों देशों के बीच हुए समझौते की प्रगति का जायजा लेने ईरान पहुंचा। ईरानी पोर्ट डिपार्टमेंट ने भारतीय प्रतिनिधिमंडल को बताया कि इस बंदरगाह को बनाने का ठेका पहले ही ईरानी कंपनी अरिया बादेनर को दे दिया जा चुका है, जिसके साथ ईरान के मार्च में ही एक अनुबंध पर हस्ताक्षर भी हो चुके हैं। मसलन भारत का समझौता इस अनुबंध के दो माह बाद हुआ है। भारतीय जहाजरानी प्रतिनिधिमंडल ने ईरान के इस बदले रूख पर कड़ा ऐतराज भी जताया है।

क्या था परियोजना का मकसद
जहाजरानी मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार भारत का इस परियोजना को ईरान के साथ विकसित करने का मकसद था कि भारत को पाकिस्तान को अलग करते हुए अफगानिस्तान का वैकल्पिक रूट मिल जाएगा, जिसके लिए ईरान भी सहमति जता चुका था। वहीं इस बंदरगाह को रेलवे लाइन के जरिए ईरान-अफगानिस्तान सीमा के पास मौजूद जहेदान से जोड़ने की योजना पर भी बातचीत चल रही थी। मंत्रालय का कहना है कि इस परियोजना के पूरा होने से भारत और ईरान को ही नहीं, बल्कि अफगानिस्तान और समूचे मध्य एशियाई क्षेत्र के लिहाज से भी दूरगामी फायदे होने वाले थे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस मुद्दे पर रूस के ऊफा में ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ भी बातचीत की थी। सूत्रों के अनुसार भारत को उम्मीद थी कि लीज पर दो बर्थ लेने और कार्गो टर्मिनल व कंटेनर बनाने में तैयार योजनाओं को पूरा किया जा सकेगा, इसके लिए भारत ईरानी कंपनी को 8.5 करोड़ डालर की निवेश राशि देने की भी तैयारी कर चुका था, लेकिन इस योजना पर ईरान के बदले रवैये ने भारत की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

20Aug-2015

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