गुरुवार, 13 अगस्त 2015

कसौटी पर खरा नहीं उतरा जीएसटी विधेयक!

संसद का मानसून सत्र हंगामे की बारिश में धुला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र का कल गुरुवार को अंतिम दिन है और देश की अर्थव्यवस्था के मद्देनजर उच्च सदन में संविधान (122वां संशोधन) विधेयक यानि जीएसटी को पारित करवाने की सरकार के सामने कड़ी चुनौती होगी। मसलन इस विधेयक पर देश ही नहीं बल्कि दुनिया की नजरें भी टिकी हुई हैं। हालांकि सरकार के सामने इस विधेयक को पारित कराने के लिए विशेष संयुक्त सत्र का एक संवैधानिक विकल्प भी बचा हुआ है।
देश की अर्थव्यवस्था की तराजू पर सरकार की कसौटी पर फंसे जीएसटी विधेयक को पारित कराने के लिए मौजूदा मानसून सत्र मेें मात्र एक दिन बाकी बचा हुआ है यानि गुरुवार को यदि सरकार जिस तरह से इसे पारित कराने की रणनीति बना रही है वह ऐतिहासिक दिन भी साबित हो सकता है। यह बात इसलिए कही जा सकती है कि बुधवार को कांग्रेस ने बकायदा प्रेस कान्फ्रेंस करके कहा है कि वह वह जीएसटी के विरोध में नहीं है, बल्कि इसके मौजूदा स्वरूप का विरोध कर रहे हैं, जिसमें कांग्रेस ने कई संशोधन की मांग उठाई है। ऐसे में गुरुवार को इस विधेयक पर सरकार और विपक्ष के बीच सहमति बनाने के जारी प्रयास सफल हुए तो राज्यसभा में इस विधेयक को मानसून सत्र के अंतिम दिन पारित किया जा सकता है। वहीं विपक्ष की मांग पर ही यह उच्च सदन की प्रवर समिति की नजरों से भी गुजरकर सदन में आया है। इस महत्वपूर्ण विधेयक पर पूरे देश की नजरे टिकी हुई है, बल्कि अर्थव्यवस्था में कर प्रणाली का निर्धारण करने वाले इस कानून को लेकर दुनिया भी भारत की तरफ टकटकी नजरों से देख रहा है।
संयुक्त सत्र होगा अंतिम विकल्प
संसद में जारी गतिरोध को देखते हुए पहले ही केंद्रीय वित्त मंत्री संकेत दे चुके हैं कि यदि कांग्रेस का देश की प्रगति की गति रोकने की यही नियत रही तो सरकार के पास और भी संवैधानिक विकल्प है। राजनीतिकारों की माने तो कांग्रेस भी नहीं चाहेगी कि सरकार जीएसटी पर विशेष संयुक्त सत्र के रास्ते पर जाए, क्योकि विशेष संयुक्त सत्र में कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल केवल वोटिंग कर सकेगा, लेकिन व्यापम या ललितगेट का मुद्दा नहीं उठा सकता और सरकार विधेयक को पारित कराने में कामयाब हो जाएगी। सरकार की इस रणनीति को भांपते हुए ऐसी संभावना है कि इस सत्र के अंतिम दिन कांग्रेस जीएसटी पर अपनी रणनीति बदल ले और जीएसटी को पारित कराने का सरकार को मौका दे। इसका कारण यह भी है कि जिन बिंदुओं पर कांग्रेस को ऐतराज है उन पर सरकार के साथ सहमति बना ले ऐसी संभावनाओं से भी इंकार नहीं किया जा सकता। हालांकि संविधान विशेषज्ञ मान रहे हैं कि संविधान विधेयक होने के कारण इसे संयुक्त सत्र में पारित नहीं कराया जा सकता।
क्या है दलगत गणित
जीएसटी बिल एक संविधान संशोधन बिल है। इसलिए संसदीय नियम के अनुसार संविधान संशोधन बिल को पारित कराने के लिए दोनों सदनों में न्यूनतम 50 प्रतिशत सांसद उपस्थित रहने चाहिए और उन उपस्थित सांसदों में उनका दो तिहाई समर्थन मिलना चाहिए। लोकसभा संख्या बल मोदी सरकार के पक्ष में है। जहां 542 सदस्यीय लोकसभा में इस बिल को पारित करवाने के लिए 361 सांसदों की जरूरत पडेगी, राजग के पास वर्तमान में अपने ही 337 सांसद हैं। बाकी सांसदों की कमी इस मुद्दे पर बिल के समर्थन में खडे तृणमूल कांग्रेस के 34 सांसद, समाजवादी पार्टी के पांच सांसद और इसके अलावा भी कई दल बिल के समर्थन में खड़े हैं। जबकि राज्यसभा का दलगत गणित सरकार के पक्ष में नहीं है। 245 सदस्यीय सदन में पूर्ण सदन में इस विधेयक को पारित करवाने के लिए भाजपा सरकार को 164 सांसदों के समर्थन की जरूरत है। इसमें भाजपा के 48 सहित राजग के पास कुल 62 सांसद हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस के 12 और समाजवादी पार्टी के 15 सांसदों के साथ यह संख्या 89 तक पहुंचती है। इसलिए कांग्रेस के 70 सांसदो का समर्थन भी सरकार को चाहिए अन्यथा अन्नाद्रमुके के 12 सदस्यों के अलावा बसपा व अन्य क्षेत्रीय दलों का भी सरकार को समर्थन लेकर इसे अंजाम तक पहुंचाने की दरकार होगी। इसके अलावा जीएसटी पर भाजपा-कांग्रेस के बीच कोई गोपनीय समझौता या अघोषित सहमति ही संसद के मानसून सत्र के अंतिम दिन को ऐतिहासिक रूप दे सकता है।
13Aug-2015

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