शनिवार, 1 अगस्त 2015

दशकों बाद मिलेगा 51 हजार लोगों को देश का नाम!

आज से लागू  भारत-बांग्लादेश सीमा समझौता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत और बांग्लादेश की सीमावर्ती इलाकों में बिना किसी देश की नागरिकता के पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से जीवन व्यवतीत कर रहे करीब 51 हजार लोगों को किसी देश का नाम मिल रहा है। मसलन दोनों देशों की विवादित जमीन की अदला-बदली का ऐतिहासिक समझौता शुक्रवार की मध्यरात्रि यानि एक अगस्त से लागू हो रहा है।
भारत-बांग्लादेश की सीमा पर पिछले चार दशकों से ज्यादा समय से खानाबदोशी की हालत में जिंदगी जीते आ रहे 51 हजार से ज्यादा लोगों को आखिरकार उनकी इच्छा के अनुसार भारत या बांग्लादेशी नागरिकता के रूप में पहचान मिली ही गई है। दोनों देशों की सीमाओं पर इन बस्तियों के निर्धारण को अंतिम रूप देने के बाद इस समझौते को एक अगस्त से लागू किया जा रहा है। विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि बांग्लादेशी सीमा से घिरी 100 से ज्यादा भारतीय बस्तियों और भारतीय जमीं से घिरी 50 से ज्यादा बांग्लादेशी बस्तियों का लेन-देन हो रहा है। भारत और बांग्लादेश ने ऐतिहासिक भू-सीमा समझौते के तहत अपने-अपने क्षेत्राधिकार में आने वाले भू-भाग के एकीकरण के तहत एक दूसरे के सीमा क्षेत्र में स्थित 162 बस्तियों में रहने वाले करीब 51, 584 लोगों की राष्ट्रीयता की पसंद को दर्ज करने के लिए पिछले सप्ताह ही दोनों देशों ने इन लोगों को भारत या बांग्लादेश चुनने का विकल्प को एक संयुक्त सर्वेक्षण के तहत पूरा कर लिया है। इस सर्वेक्षण के तहत चुने गये विकल्प के साथ इन नागरिकों की भारत व बांग्लादेश की नागरिकता के रूप में सूचियां तैयार कर ली गई है। नागरिकों की इन सूचियों को दोनों देशों के संबंधित प्रशासन को रिपोर्ट सौंप दी गई है, जो अपने अपने देश में रहने वालों को नागकरता देने का काम कर रहे हैं।
बांग्लादेशियों को रास आया भारत
सूत्रों के अनुसार इस दोनों देशों को नागरिकता के लिए देश चुनने के लिए किये गये सर्वेक्षण और उनकी सूचियां बनाने में एक दिलचस्प पहलू यह भी सामने आया है कि बांग्लादेश की सीमा में रह रहे लोगों के सामने जब देश चुनने को कहा गया तो अपने आपको बांग्लादेशी मानने वाले नागरिकों ने भारत की सीमा में रहने की इच्छा जाहिर की। एक आंकड़े के अनुसार बांग्लादेश के भीतर 111 भारतीय बस्तियों में कुल 37,369 लोग हैं, जबकि भारतीय क्षेत्र में 51 बांग्लादेशी बस्तियों में 14, 215 लोग रहते हैं। इस सर्वेक्षण के दौरान यह भी तथ्य सामने आए हैं कि भारत के भीतर 51 बांग्लादेशी बस्तियों में रहने वाले लोग भारतीय नागरिकता के लिए और बांग्लादेश के भीतर 111 भारतीय बस्तियों में 37 हजार लोगों में से 99 बस्तियों के 223 परिवारों के 1057 लोगों ने भारत की नागरिकता लेने की इच्छा प्रकट की है, जिनमें 163 मुस्लिम हैं। जबकि भारतीय सीमा में मौजूद 51 बांग्लादेशी एनक्लेव के लोगों ने यहीं रहने का फैसला किया। ये एनक्लेव बांग्लादेश के 3 जिलों में 17,000 एकड़ में फैले हैं।
ऐसे बना ऐतिहासिक फैसला
दोनों देशों की इन बस्तियों का यह आदान-प्रदान इसी साल 6 जून को ढाका में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी बांग्लादेशी समकक्ष शेख हसीना की मौजूदगी में दस्तखत किए करार के तहत दोनों देश सीमा से लगी बस्तियों का आदान-प्रदान कर रहे हैं। इन बस्तियों के लोग जन सुविधाओं से वंचित थे और खराब हालत में रह रहे थे। भारत और बांग्लादेश के बीच एक करार पर दस्तखत के बाद हो रहा है। हालांकि इससे पहले मूल रुप से यह भूमि समझौता 1974 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीब-उर-रहमान के बीच हुआ था। 1975 में मुजीब की हत्या के बाद लंबे अरसे तक करार पर प्रगति रुकी रही। बाद की सरकारें बस्तियों के आदान प्रदान पर सहमत नहीं हो पाईं। पीएम मोदी के साथ हुए समझौते के बाद संसद में इस समझौते संबन्धी एक विधेयक बजट सत्र में पारित करने के बाद इस ऐतिहासिक फैसले की राह को आसान बनाया गया।
01Aug-2015


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