सोमवार, 1 अप्रैल 2024

चौपाल: युवाओं को अभिनय के गुरु सीखाकर पहचान दिलाते कलाकार डा. हरिकेश पंघाल

साहित्य एवं कला के बेजोड़ लेखक व कलाकार के रुप में बनाई बड़ी पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. हरिकेश पंघाल 
जन्मतिथि: 03 जुलाई 1974 
जन्म स्थान: गांव खरखड़ी माखवान तहसील तोशाम जिला भिवानी 
शिक्षा: मनोविज्ञान, हिन्दी एवं जनसंचार में एम.ए, एल.एल.बी. पीएच.डी 
संप्रत्ति: सहायक प्रोफेसर (मनोविज्ञान) वैश्य कॉलेज,भिवानी, रंगमंचकार, कवि एवं लेखक 
सम्पर्क : मो> 9253592534 
--ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोककला एवं संस्कृति के क्षेत्र एक से बढ़कर एक कलाकार दिये हैं। ऐसे ही कलाकारों में डा. हरिकेश पंघाल ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने नाटक, कविता और लघु फिल्मों की पटकथा लिखने के साथ ही अभिनय के क्षेत्र में भी एक अभिनेता और रंगकर्मी में अपनी कला का प्रदर्शन किया है। वहीं उन्होंने कला के क्षेत्र में अनेक प्रतिभाशाली कलाकारों को प्रशिक्षण देकर उन्हें मंच पर अभिनेता जैसे कलाकारों की पहचान दिलाई है। थिएटर डांस और साहित्यिक क्षेत्र में पिछले तीन दशक से संस्कृति का संवर्धन करते आ रहे पंघाल अभी तक 50 से अधिक नाटकों का निर्देशन कर चुके हैं। प्रसिद्ध रंगकर्मी, अभिनेता, कवि एवं लेखक डा. हरिकेश पंघाल ने अपने साहित्यिक एवं कला के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को साझा किया है, जिससे कहा जा सकता है कि वह अपनी कला के माध्यम से समाज को सकारात्मक विचारधारा से जोड़कर संस्कृति और युवाओं को संस्कार की राह दिखाने में जुटे हैं। 
रियाणा के भिवानी जिले के गांव खरखड़ी माखवान में चौधरी जगबीर सिंह व श्रीमती वीना रानी के घर में 03 जुलाई 1974 को जन्में कलाकार हरिकेश पंघाल के परिवार की पृष्ठभूमि राजनीतिक रही है। उनके पिता चौधरी जंगबीर सिंह भिवानी संसदीय क्षेत्र से 1991 से 1996 तक सांसद रहे। उन्होंने हरियाणा निर्माण के बाद हुए पहले चुनाव में तोशाम विधानसभा से चौ. बंसीलाल के खिलाफ चार बार चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई। उनके बड़े भाई कमल सिंह प्रधान भी राजनीति में सक्रिय रहे। इसके बावजूद हरिकेश पंघाल का रुझान बचपन से ही कला क्षेत्र में रहा। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा के दौरान भिवानी पब्लिक स्कूल में विद्यालय के कार्यक्रमों में लघु नाटिका कविताएं और भाषण में हिस्सा लिया। इसके वे वैश्य महाविद्यालय भिवानी से स्नातक करने के दौरान रंगमंच की कला से जुड़ गये, जिसका नतीजा ये रहा कि वे युवा समारोहों में 6 बार सर्वोत्तम अभिनेता चुने गये। उनकी इस कला का आरंभ में परिजनों का विरोध भी झेलना पड़ा, लेकिन उनकी अभिरुचि परिवारिक माहौल से अलग पहचान बनाती गई, तो परिवार ने भी उन्हें प्रोत्साहन देना शुरु कर दिया। बकौल डा. हरिकेश पंघाल उनकी पत्नी भी उनकी कला के प्रसार में उनकी प्रेरणा साबित हुई। उन्होंने मनोविज्ञान और हिन्दी एवं जनसंचार में एमए, एलएलबी के अलावा पीएच.डी की उच्च शिक्षा हासिल की है। वर्तमान में वैश्य महाविद्यालय में मनोविज्ञान प्राध्यापक के रुप में कार्यरत डा. हरिकेश पंघाल ने बताया कि 1997 में जब हरियाणवी कविता को भी युवा समारोह में शामिल किया गया तो उन्होंने भी स्वरचित कविता सुनाई, जिसे प्रथम स्थान मिला। इससे उनका आत्मविश्वास ऐसा बढ़ा कि कई सालों तक उनकी वह कविता युवा समारोह में अव्वल रही। इसके बाद उन्होंने कविताएं लिखना शुरु कर दिया, जिसमें कई ऐसी कविताएं रही जो बड़े बड़े मंच पर प्रसिद्ध हुई। कला जगत में शुरुआती दौर में दर्शकों को उनकी रचनाएं बहुत पसंद आई, लेकिन उन्होंने ऐसी रचनाओं को अश्लीता की परिधि में महसूस किया तो उसके बाद उन्होंने संकल्प लिया किया कि वे ऐसी रचना और नाटकों की प्रस्तुति करेंगे, जिन्हें परिवार के लोग एक साथ देख या सुन सकें। कई बार ओटीटी एप के कार्यक्रमों और हरियाणवी एल्बम और फिल्मों के लिए भी गाने लिखने का ऑफर मिला, लेकिन हरबार उन्होंने वह सबकुछ लिखने से इंकार कर दिया, जो उसके संकल्प के बाहर था। इसलिए उन्होंने अपनी कला के फोकस में हमेशा सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों और समाज में फैली कुरीतियों को उजागर किया है, जिसमें नाटक लेखन व मंचन में प्रमुख रुप से कन्या भ्रूण हत्या, जल संरक्षण, लिंग समानता, नशाखोरी और दहेज प्रथा, भाई भतीजावाद, भ्रष्टाचार, धर्म और राजनीति के कुरूप चेहरे जैसे अनेक ज्वलंत मुद्दों पर चोट करके समाज को सकारात्मक विचारधारा से जोड़ने का प्रयास किया है। डा. हरिकेश दो भक्ति शब्दों पुस्तके भी लिखी और उन्होंने 15 हरियाणवी नाटकों के अलावा हरियाणवी और हिंदी में 100 से अधिक कविताओं के लेखन किया, जिनमें उनकी कई हरियाणवी कविताओं को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहचान मिली है। हिसार दूरदर्शन द्वारा प्रसारित सबरंग कार्यक्रम के सूत्रधार रहे डा. हरिकेश ने हरियाणवी फिल्म जनेती में भी काम किया और दूरदर्शन ज्ञान केंद्र द्वारा प्रसारित धारावाहिक में भी अभिनय की भूमिका भी निभाई है। वे अपनी सफलता का सम्पूर्ण श्रेय माता पिता, परिवार, आध्यात्मिक गुरु परमसंत कंवर साहब तथा रंगमंच के गुरु कौशल भारद्वाज तथा फिल्म अभिनेता राजू पंडित को दिया है। 
गुरु मंत्र से अनेक युवा बने कलाकार 
प्रसिद्ध कलाकार डा. हरिकेश पंघाल का ध्येय कभी फिल्म जगत के परदे पर आना या प्रसिद्ध अभिनेता कभी नहीं रहा। इसका मकसद यही था कि वह अपनी कला में कविताओं और साहित्य लेखन के माध्यम से हमेशा पथभ्रष्ट होते समाज खासकर युवा पीढ़ी को सही राह की और आकर्षित किया जाए। यही नहीं उन्होंने कला के क्षेत्र में अभिरुचि रखने वाले युवाओं को जोड़कर गुरु-शिष्य परंपरा को भी गति देने पर बल दिया। इसका सकारात्मक परिणाम ये है कि आज उनसे जुड़े अनेक युवा एक कलाकार के रुप मंचों पर बेहतरीन कला का प्रदर्शन करके सामाजिक उत्थान में अपना योगदान देकर अपने परिवार, राज्य व देश का नाम रोशन कर रहे हैं। इनमें कमल आनंद, नवीन कुमार, अनूप कुमार, शीतल, राज सिंह, जनार्धन, सोनल शर्मा, दिशिका, राजेश राठौर, साहिल अपूर्व और अमिता आदि ऐसे शिष्य कलाकार हैं, जिन्होंने कई दर्जन सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के खिताब हासिल कर लिये हैं। जबकि डा. हरिकेश से अभिनय के गुर सीखकर एकता जागड़ा, उमा शैखावत, भावना, निशा, सुनीता, प्रदीप कुमार, प्रशांत, पवन कुमार, अमित कुमार आदि ने कला के क्षेत्र में नाम कमा रहे हैं। इसके अलावा उनके निर्देशित नाटकों में अब तक 80 विद्यार्थी सर्वोत्तम अभिनेता या अभिनेत्री का खिताब जीत चुके हैं। 
कला के क्षेत्र में गुणवत्ता जरुरी 
इस आधुनिक युग में आज कला के क्षेत्र में इतना बहुत ज्यादा काम हो रहा है, कि यदि थोड़ी भी प्रतिभा किसी में है तो वह घर बैठकर कला या अभिनय के माध्यम से जीवन यापन कर सकता है, लेकिन गुणवत्ता के दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस इंटरनेट व सोशल मीडिया के युग में जिस प्रकार के ओटीटी जैसे प्लेटफार्म पर अश्लीलता के मंच समाज को दिशाहीन करने का काम कर रहे हैं। साहित्य व लोककला को समाज का दर्पण माना गया है, जिसकी मर्यादाओं व परंपरा को जीवंत रखने के लिए खासकर युवाओं को साहित्य, लोक कला, संगीत व संस्कृति के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। अगर कला को सकारात्मक दृष्टिकोण पर कायम रखा जाए तो निसंदेह संस्कृति अपने चरमोत्कर्ष को अवश्य छूने लगेगी। इसके लिए रंगमंच में गिरावट का कारण बन रहे द्विअर्थी रचनाओं व नाटकों को प्रस्तुत करने वालों को सर्वहित सुखाय की धारणा से सकारात्मक लेखन, मंचन और प्रस्तुति करने पर बल देना होगा। 
सम्मान व पुरस्कार 
सुप्रसिद्ध कलाकार, कवि व लेखक डा. हरिकेश पंघाल को साहित्य, कला और अभिनय के क्षेत्र में दिये गये योगदान के लिए हिमाचल के राज्यपाल, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, त्रिवेणी, नटराज कला मंच सहित कई संस्थाओं व मंचो द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा हिंदी और संस्कृत एकांकी नाटकों में 80 शिष्यों को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिल चुका है। उनके कई छात्र बॉलीवुड और ओटीटी प्लेटफॉर्म की विभिन्न फिल्मों में काम कर रहे हैं, जो उनके लिए किसी सम्मान से कम नहीं है। 
01Apr-2024

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