सोमवार, 11 अप्रैल 2022

साक्षात्कार: साहित्य के बिना संस्कार असंभव: डा. बालकिशन शर्मा

अब तक 183 हरियाणवी लोक कवियों और उनकी रचनाओं को तलाशा 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. बालकिशन शर्मा 
जन्म: 5-6-1958 
जन्म स्थान: गांव अलीपुर खालसा, करनाल (हरियाणा) 
शिक्षा: एम.ए. (संस्कृत),एम.ए.(हिन्दी), एम.फिल्. (हिन्दी), पी.एच.डी. (हिन्दी) 
संप्रत्ति: पूर्व अध्यक्ष, हिंदी-विभाग, एस.डी. कॉलेज, पानीपत
-ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में डा. बालकिशन शर्मा उन मूर्धन्य साहित्यकारों और लेखकों में शामिल है, जिन्होंने हिंदी के साथ संस्कृत और हरियाणवी साहित्य को भी बढ़ावा दिया है। यही नहीं हरियाणा के गुमनाम लोक कवियों और उनकी रचनाओं को साहित्यिक पहचान दिलाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। भारतीय संस्कृति और हिन्दी को बढ़ावा देने के साथ हरियाणवी भाषा, लोक संस्कृति एवं सभ्यता को प्रोत्साहन देते हुए उन्होंने हरियाणवी लोक कवियों और उनकी रचनाओं को तलाशने के मिशन को अपने साहित्यिक जीवन का हिस्सा बना लिया है, ताकि समाज खासकर नई पीढ़ी हरियाणवी साहित्य के इतिहास को जान सके। शायद यही कारण है कि साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखी गई उनकी रचनाएं कड़वा सच यानि हकीकत को उजागर करती हैं। उच्च शिक्षा में गोल्ड मेडेलिस्ट रहे सामाजिक परिवेश पर रचनाओं को लिखने में विश्वास रखने वाले डा. बालकिशन शर्मा ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से विस्तार से बातचीत की और अनुछुए पहलुओं तथा अनुभवों को साझा किया है। हरियाणा के मूर्धन्य साहित्यकार डा. बालकिशन शर्मा का भारतीय संस्कृति और हिंदी प्रेम और खासकर लुप्त होती हरियाणवी साहित्य एवं संस्कृति को पुनर्जीवित करने का यह मिशन बेहद सराहा जा रहा है, कि वे अब तक 183 हरियाणवी लोक कवियों और उनकी रचनाओं को संजोकर उन पर शोध तक करा रहे हैं। हरियाणवी साहित्य को पहचान दिलाने के मकसद से जब वे अध्यापन के क्षेत्र में आए ता उन्होंने गांव दर गांव जाकर लोक कवियों और उनकी पांडुलिपी में रचानाओं को एकत्र किया। वे मानते हैं कि यदि लोक कवियों की रचानाएं इतनी महत्वपूर्ण हैं कि यदि सामने न आ पाती तो समाज के समाज गुमनाम कवियों और हरियाणवी साहित्य के बारे में कोई जानकारी कभी न जान पाता। इस आधुनिकता और भौतिकवाद के युग में साहित्य की स्थिति के बारे में उनका कहना है कि इस वैज्ञानिक युग ने साहित्य का इतना हास हुआ है कि लिपी और भाषा के मिश्रण से विकृत रुप लेते हिंदी शब्दों का विकृत होता रुप भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। खासकर युवा पीढ़ी का सामाजिक परिवेश प्रभावित हो रहा है, क्योंकि समाज से ही साहित्य का जन्म होता और साहित्य से संस्कार पैदा होते हैं। ऐसे में अच्छा इंसान बनने के लिए संस्कार या तो परिवार से मिल सकते हैं या फिर ऐसे साहित्य की आवश्यकता है जिसमें गंभीरता और शब्दावली नजर आए। क्योंकि जो संस्कार गुरु से मिल सकते हैं वे उपकरणों से कदापि नहीं मिलेंगे। इसके बावजूद समय के साथ साहित्य में बदलाव तो संभव है, लेकिन अच्छा साहित्य कभी समाप्त नहीं हो सकता, क्योंकि समाज का प्रतिबिंब कहे जाने वाला एक ऐसी संजीवनी है, जो अपना रास्ता खुद तय कर लेता है। 
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प्रदेश में एस.डी. कालेज पानीपत में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे डा.बालकिशन शर्मा का जन्म पांच जून 1958 को करनाल के गांव अलीपुर खालसा में एक साधारण परिवार में हुआ। माता पिता के मार्गदर्शन में परिवार के सनातन धर्मी संस्कारों मेहनत और ईमानदारी तथा सभ्यता के बीच बचपन में उन्होंने आजीविका के लिए खेती किसानी और पशु पालन के काम में भी हाथ बंटाया। पढ़ाई में उनकी बेदह रुचि का परिणाम था के कक्षा दस में 60 में से 6 विद्यार्थी ही पास हुए, जिनमें वह सबसे अव्व्ल रहे। परिवार की कोई साहित्यिक पृष्ठभूमि नहीं थी, फिर भी उनका साहित्य के प्रति बेहद लगाव रहा। उनका कहना है कि जब वे ग्यारवीं कक्षा में थे तो नेता जी सुभाषचंद्र बोस की जयंती पर उन्होने पहली कविता लिखी। अध्यापकों के प्रोत्साहन ने उन्हें साहित्य के प्रति मजबूत बनाना शुरू किया। अध्यापन के क्षेत्र में आने के बाद उन्होंने विभिन्न विधाओं में कविता लिखना शुरू किया तो उनकी लेखनी चलती ही रही। ग्रामीण परिवेश से शहरी परिवेश में जाने का मर्म को उन्होंने अपने पहले काव्य संग्रह से दस अध्यायों में लिखा है। यही नहीं बल्कि काव्य मंच पर भी उनके इस संग्रह की कविताओं की चौतरफर सराहना मिली। गरीब और ग्रामीण परिवेश में बचपन व्यतीत करने वाले डा. शर्मा परिवार के सहयोग व प्रोत्साहन की बदौलत हिंदी व संस्कृत में डबल एमए और हिंदी में एमफिल की और स्वर्ण पदक विजेता रहे। पीएचडी भी उनकी हिंदी विषय पर ही रही। एमफिल (हिंदी) के बीस तथा पीएचडी के चार शोधार्थी भी उनके निर्देशन में शोध कार्य संपन्न कर चुके हैं। वे भारत सरकार की हिन्दी सलाहकार समिति, उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय एवं दूरभाष सलाहकार समिति के सदस्य भी रहे हैं। पानीपत निवासी डा.बालकिशन शर्मा की पत्नी श्रीमति ऊषा भी सेवानिवृत्त अध्यापिका हैं। परिवारिक संस्कार में साहित्य का समावेश ही माना जा सकता है कि उनकी दो बेटियां सुमेधा और सुचेता शर्मा दिल्ली के राजकीय स्कूल में अंग्रेजी व विज्ञान की शिक्षक हैं। 
लेखन व प्रकाशन: 
साहित्यकार एवं लेखक डा.बालकिशन शर्मा की पांच प्रकाशित पुस्तकों में दो काव्य संग्रह ‘गाँव की छाँव’ और ‘हरया भरया हरियाणा’ तथा नाटक ‘ढलती फिरती छाया’ सुर्खियों में हैं। वहीं उनके प्रकाशित शोध-ग्रंथों में मतिराम सतसई:काव्यशास्त्रीय अध्ययन तथा पद्माकर-काव्य का काव्य शास्त्रीय अध्ययन भी शामिल हैं। जबकि उनके लेखन में प्रो. जयभगवान गोयल: व्यक्तित्व और कृतित्व नामक पुस्तक भी शामिल है। उन्होंने 'आठवाँ वचन' नामक हरियाणवी फिल्म के गीत भी लिखे हैं। जहां उनकी अनेक कविताएं, कहानियां और शोधपत्र राष्ट्रीय स्तर के पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं, वहीं अनेक विषयों पर आकशवाणी से वार्ताएं और दिल्ली दूरदर्शन पर परिचर्चाएं भी प्रसारित हुई हैं। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
हरियाणा सरकार ने साहित्यकार डा. बालकिशन शर्मा को गत फरवरी माह में ही वर्ष 2019 के लिए दो लाख रुपये के हरियाणा साहित्य अकादमी के जनकवि मेहर सिंह सम्मान से अलंकृत किया है। इससे पहले उन्हें भारतीय संस्कृति के प्रचार एवं प्रसार में विशेष योगदान हेतु जगदगुरू शंकराचार्य द्वारा पुरस्कृत सम्मान, हिन्दी साहित्य प्ररेक संस्था'(जीन्द) के हरियाणवी लोकसाहित्य-रत्न सम्मान, नवजागरण साहित्स संस्था (नारनौंद) के साहित्य श्री सम्माति सम्मान, पं. लखमीचन्द सांग-सेवा सम्मान व हरियाणवी लोककवि पं. जगदीश चन्द्र वत्स' स्मृति सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा श्रेष्ठ परीक्षा-परिणाम' का प्रशंसा पत्र प्राप्त कर चुके हैं। दादा लखमीचन्द कला-विकास मंच हरियाणा, अखिल भारतीय ब्राहामण महासभा दिल्ली, ब्राहामण जागृति मंच हरियाणा, रत्नावली युवा सांग-महोत्सव' कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, केन्द्रीय संस्थान 'पानीपत रिफाइनरी तथा एनएफएल पानीपत, पानीपत की सामाजिक संस्था रोटरी क्लब, मीडिया क्लब, नागरिक मंच' रेडकास सोसायटी, व अंकन साहित्यिक मंच से विशेष सम्मान मिल चुका है। डा. शर्मा हरियाणा साहित्य अकादमी' की हरियाणवी श्रेष्ठ कृति पुरस्कार-योजना के निर्णायक-मण्डल का सम्मानित सदस्य, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय तथा 'यूएमसी कमेटी का सदस्य तथा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के परीक्षा संचालन में नकल-विरोधी उडन दस्ते' का संयोजक भी है। 
सम्पर्क: 8 ब्लॉक डी-1, विला नं. 5822 अंसल, सुशांत सिटी, पानीपतध/ मोबाइल नं. 94164 05605

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