सोमवार, 4 जुलाई 2022

साक्षात्कार: साहित्य में समाज का सर्वहित निहित : कमलेश

आधुनिक और इंटरनेट युग से सामने आई चुनौतियां -ओ.पी. पाल
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: कमलेश चौधरी 
जन्म स्थान: गांव नाहरी जिला सोनीपत(हरियाणा)। शिक्षा: मैट्रिक, प्रभाकर,ओ.टी.। 
संप्रत्ति: हरियाणा शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त शिक्षिका, स्वतंत्र लेखन,पौधारोपण, पर्यटन, सामाजिक कार्य। 
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रियाणा की लोक संस्कृति, सभ्यता और कला को जीवंत रखते हुए समाज को नई दिशा में साहित्यकारों और लेखकों का योगदान भी अहम है। ऐसे ही साहित्यकारों में शुमार महिला साहित्यकार, लेखिका एवं कथाकार श्रीमती कमलेश चौधरी ने गांव व देहात और खेती-बाड़ी को फोकस में रखते हुए अपने रचना संसार को दिशा दी है। यही नहीं वे साहित्य लेखन के अलावा समाजसेवा, पर्यावरण और पर्यटन जैसे कार्यो से भी समाज का जागृत करने में जुटी हुई हैं। हरियाणा शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त शिक्षिका कमलेश चौधरी ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें बदलते परिवेश में प्रभावित होते मानव मूल्यों को सामाजिक विचारधारा के साथ जीवंत करना संभव है। प्रसिद्ध महिला साहित्यकार कमलेश चौधरी का साहित्य सामाजिक सरोकार से जुड़ा है, जो समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य को सर्वहित मानती हैं। लेकिन उनका कहना है कि साहित्य क्षेत्र के सामने आज के आधुनिक और इंटरनेट युग ने बडी चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिसमें मानव मूल्यों के साथ हमारी संस्कृति भी प्रभावित हो रही है। खासतौर से युवा पीढ़ी की रुचि साहित्य से दूर होती जा रही है या यूं कहे कि पुस्तकें पढ़ने की परंपरा लुप्तप्राय होती जा रही हैं। ऐसे में बच्चों का ज्ञानवर्धन करने वाला बाल साहित्य भी पूरी तरह प्रभावित हो चुका है, जब बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा दिया हो। ऐसे में लेखकों और साहित्यकारों को युग के साथ परिवर्तित होती अच्छी रचनाओं को नया आयाम देना होगा। वहीं साहित्य में बदलाव लाने के लिए नयी पीढी में साहित्य के प्रति रुचि जगाने के प्रयास करने के लिए विद्यालय, कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में पुस्तकालय और पुस्तकालय से कुछ पुस्तकें पढ़ना अनिवार्य करने से साहित्य की प्रासांगिकता बनाए रखी जा सकती है। वहीं शिक्षण संस्थानों में साहित्य पर कार्यशाला आयोजित करके प्रतिभागी छात्रों को पुरस्कार जैसी परंपरा से प्रोत्साहित करना चाहिए। हरियाणा में सोनीपत जिले के नाहरी गांव में 13 जुलाई 1954 को एक बेहद साधारण कृषक परिवार में जन्मी कमलेश चौधरी का बचपन खेतों और पशुओं के साथ व्यतीत हुआ। उस रूढीवादी जमाने और वह भी सामंती मूल्यों वाले परिवार में बेटियों को पढ़ाने में समाज की ज्यादा दिलचस्पी नहीं होती थी। फिर भी उनकी माता इस परिवार की बेटियों के लिए मसीहा बनकर सामने आई। जिन्होंने बेटियों को एक जीवन जीने और कुछ बनने की प्रेरणा दी,जिसमें सुख और आराम को भूलने की सीख विद्यमान थी। ऐसे संस्कारों के बीच कमलेश समेत चारो बहनों ने खेतीबाड़ी के काम के साथ अपनी पढ़ाई भी पूरी की। बकौल कमलेश चौधरी उनकी आरंभिक शिक्षा गांव के सरकारी विद्यालय में हुई और गांव के ही स्कूल से दसवीं पास करके सोनीपत और रोहतक से उच्च शिक्षा तक की पढ़ाई को आगे बढ़ाया। कालेज की पढाई पूरी करते करते ही उन्होंने अनेक लेखकों की रचनाओं और देशी और विदेशी साहित्य तक पढ़ डाला। पढने का बुहत शौक तो उन्हें बचपन से ही था, जिसे वह ईश्वरीय वरदान स्वरूप भी मानती हैं। बचपन में चंदामामा और अखबार और फिर धर्मयुग और साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाओं ने उन्हें साहित्यक प्रेरणा प्रदान की। इसके बावजूद उन्होंने लिखने के बारे में कभी सोचा नहीं था। मसलन उम्र के साथ-साथ साहित्य मे रुचि बढ़ती चली गई और शादी के बाद उनके सैनिक पति ने भी उनके साहित्यिक गतिविधियों को कभी भी बाधित करने का प्रयास नहीं किया, बल्कि वे अपने पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर पढने को देते थे। उन्होंने कहा कि साहित्य पढने की आदत ने उनकी सोच को विस्तार दिया, जिससे उन्हें समाज, देश-दुनिया को समझने का एक मौलिक नजरिया मिला, जो उनके लेखन का आधार बना। यही कारण है कि उनके लेखन का कार्य 48 साल की उम्र में आरंभ हुआ और उनकी पहली रचना हंस में छपी, तो लेखन में रुचि का बीजारोपण स्वभाविक ही था। हालांकि पहले उनका छिटपुट लेखन शुरू हुआ, बाल कमानिया और पुस्तक समीक्षाएं लिखी। हरिगंधा जैसी पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित उनकी रचनाओं ने उनके लेखन को एक नई दिशा दी और उनके लेखन की धार ऐसी बढ़ी, कि उपन्यास, बाल कथा संग्रह, लोककथा संग्रह और कहानी संग्रह जैसी सत पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। जहां उपन्यास और बाल कथा को पुरस्कृत किया गया, वहीं उनक रचाना संसार पर दो पीएचडी और एक एमफिल भी हो चुकी है, जिन्हें भोपाल मध्य प्रदेश ने रत्नावली सम्मान प्रदान किया। हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग में हिंदी अध्यापिका की नौकरी मिली, तो हिंदी साहित्य लेखन को भी धार मिली। सेवानिवृति के बाद वह सामाजिक कार्य में लगी हुई हैं। वृक्षारोपण और पर्यावरण इनके पसंदीदा क्षेत्र हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
कथाकार कमलेश चौधरी के रचना संसार में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित बाल कथा एक सीप बारह मोती और उपन्यास खोया हुआ गांव के अलावा पर्णेता साहित्य संस्थान और विष्णु प्रभाकर ट्रस्ट द्वारा सम्मानित उपन्यास तेरा मन दर्पण कहलाए, कहानी संग्रह नत्थो मरी नहीं, हरियाणवी लोक साहित्य म्हारी कहाणियां जैसी कृतियां सुर्खियों में हैं। जबकि अन्य रचानाओं में अजब गजब नारियां और कहानी संग्रह एक और टोबाटेक सिंह भी उन्होंने पाठकों के समक्ष प्रस्तुत की हैं। 
सम्मान/पुरस्कार 
साहित्यकार कमलेश चौधरी को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2020 के लिए श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान से नवाजा गया है। इससे पहले अकादमी उन्हें उपन्यास और बाल कथा पुस्तकों के लिए लगातार दो बार श्रेष्ठ कृति पुरस्कार का सम्मान दे चुकी है। पंजाब बाल साहित्य अकादमी का बाल साहित्यकार पुरस्कार, पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग कका श्रीमहाराज कृष्ण जैन स्मृति पुरस्कार, साहित्यनाथ राजस्थान के हिंदी भाषा भूषण की मानद उपाधि, साहित्य समर्था जयपुर के श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार, निबंध प्रतियोगिता में राज्य स्तर पर तृतीय पुरस्कार का सम्मान भी उन्हें मिल चुका है। इसके अलावा कलमकार फाउंडेशन द्वारा कहानी प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर का सांत्वना पुरस्कार भी हासिल कर चुकी हैं। इसके अलावा विभिन्न संस्थाओं और मंचों से अनेक सम्मान भी उन्हें मिले हैं।
संपर्क- गांव व पोस्ट बाबैन, जिला कुरुक्षेत्र हरियाणा
फोन: 01744-280463, मोबा.: 9416746370, 9813446310 
04July-2022

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