सोमवार, 18 जुलाई 2022

साक्षात्कार: मानवता के मूल्यों को जीवंत करता है साहित्य: रमाकांत शर्मा

समाज को समन्वित को मजबूत करने वाले लेखन की जरुरत 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. रमाकांत शर्मा 
जन्म: एक अप्रैल 1964 
जन्म स्थान: मैनपुरी (उत्तर प्रदेश) 
शिक्षा: एमए, नेट, जेआरएफ, यूजीसी, पीएचडी, बीएड सम्प्रति: सेवानिवृत्वत रिष्ठ प्रवक्ता (पूर्व कार्यकारी प्राचार्य), हलवासिया विद्या विहार, भिवानी (हरियाणा) 127021 
--ओ.पी. पाल 
साहित्यकार को राष्ट्र व समाज का निर्मता कहा जाता है, इसलिए साहित्य को समाज माना गया है। लेकिन इस आधुनिक युग में बदलते स्वरुप और प्रभावित होते साहित्य के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति और सभ्यता को जीवंत रखने की दिशा में साहित्यकारों और लेखकों के सामने भावात्मक और संवेदनशील लेखन की चुनौती ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे साहित्यकारों में हरियाणा के भिवानी के हलवासिया विद्या विहार में वरिष्ठ शिक्षक डा. रमाकांत शर्मा भी अपनी साहित्यक साधना के जरिए इस बदलते परिवेश में हाशिए पर जाते राष्ट्र, समाज व मानवता के मूल्यों को सामाजिक विचारधारा में जीवंत करने के मकसद से अपने भावात्मक लेखन में जुटे हुए हैं। साहित्य के क्षेत्र में खासतौर से हरियाणा में हिंदी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देते आ रहे संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार एवं कवि डा. रमाकांत शर्मा ने हरिभूमि से हुई विशेष बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर को लेकर विस्तार से अनेक ऐसे पहलुओं को साझा किया, जिसमें साहित्य के जिरए समाज को समन्वित करने वाले पक्ष को मजबूती प्रदान की जा सकती है। 
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हिंदी सेवा के लिए समर्पित साहित्यकार एवं कवि डा. रमाकांत शर्मा इस आधुनिक युग में संवाद से दूर होते साहित्य को लेकर चिंतित हैं। उनका मानना है कि जब तक साहित्यकार का व्यक्तित्व प्रामाणिक नहीं होगा, तब तक रचना प्रभावशाली नहीं होगी। इसलिए प्रभावशाली लेखन के लिए साहित्यिक चरित्र मजबूत होना जरुरी है। जब वंदे मातरम् बलिदानी वीरों की प्रेरणा बन जाता है, तो रामचरित मानस पूरे समाज के साँस्कृतिक मूल्यों का रक्षक बनता है। इसलिए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कविता क्रांति भी करती है। आज के युग में साहित्य की स्थिति को लेकर डा. शर्मा मानते हैं कि कालजयी साहित्य के मुख्य तत्व साधना और तपस्या आज के साहित्य में नहीं हैं, इसलिए साहित्यिक चरित्र से विहीन लेखन राष्ट्र, समाज व मानवता को हाशिए पर धकेलता नजर आ रहा है। साहित्य के अर्थ की वजह से सतही शोध से जुड़े शोधार्थी भी साधक साहित्यकारों तक पहुंचने का प्रयास नहीं करते। डा. शर्मा कहते हैं कि आज के युग में उपभोक्तावादी, बाजारवादी संस्कृति के कारण भी लेखकों का आचरण इतना बौना होता जा रहा है और साहित्यकार प्रभावशाली लेखन से दूर होते जा रहे हैं। जहां तक युवा पीढ़ी की साहित्य के प्रति कम होती रुचि का सवाल है, उसका कारण सोशल मीडिया व मोबाइल युग में नायकवाद व अधिनायकवाद का बढ़ना है, जिसमें शिक्षा संस्कृति पर भी फेसबुक जैसी सोशल मीडया हावी हैं। ऐसे में अनेक तकनीकी शिक्षाएं आने से समाज का बौद्धिक पक्ष भले ही गति पकड़ रहा हो, लेकिन समाज को समन्वित करने वाला भावात्मक पक्ष बेहद कमजोर होता जा रहा है। इसलिए भावात्मक और नैतिक शिक्षा की अलख साहित्य के माध्यम से ही संभव है। युवाओं को ऐसी शिक्षा देना जरुरी है जहां वे पवित्र भावनाओं के रूप में राष्ट राष्ट्र निर्माण में योगदान कर सकें, जिसमें शिक्षण संस्थाओं की अहम भूमिका बेहद जरुरी है। उन्होंने साहित्य के गिरते स्तर पर तर्क देते हुए कहा कि हिंदी साहित्य भारती के एक अधिवेशन में हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डा. चन्द्र त्रिखा का यह कथन भी इस बात की गवाही देता है कि हरियाणा में प्रतिवर्ष औसतन 1200 पुस्तकें छपती हैं, जिनका विमोचन भी होता है लेकिन ये पुस्तकें कहां चली जाती है इसका पता नहीं चलता। इसके विपरीत तुलसी और प्रेमचंद आज भी इसलिए पढ़े जाते हैं कि उनका स्वयं का आचरण अनुकरणीय था। 
रियाणा के भिवानी स्थित हलवासिया विद्या विहार में वरिष्ठ शिक्षक के रूप में सेवा करते आ रहे साहित्यकार और कवि का जन्म एक अप्रैल 1964 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी के गांव चिताइन (ननिहाल) में हुआ। हालांकि इसी जिले के गाँव ईसई खास निवासी डा. रमाकांत के पिता पंडित चंद किशोर शर्मा एक वैद्य के रूप में निशुल्क चिकित्सा कार्य करते थे, लेकिन उनका बचपन ननिहाल में व्यतीत हुआ, जहां उनके नाना उन्हें रामचरित्र मानस सुनाते थे और विधवा मौसी उन्हें बचपन में ही सामाजिक विचारधारा से जोड़ने की प्रेरणा देती थी। एक तरह से बचपन में ही उन्हें कल्पना के शब्दों का ज्ञान शुरू हुआ, जब वह पांचवी कक्षा में अशिक्षित महिलाओं के अंतर्देशीय पत्रों को पढ़कर उनके जवाबों में भावनाओं के शब्दों का इस्तेमाल करने लगे। स्कूली शिक्षा गांव के ही नेहरु इंटर कालेज से हुई, जहां कवि सम्मेलन की परंपरा थी। वहीं उन्होंने राष्ट्रकवि दिनकर, बलबीर सिंह रंग, लाखनसिंह सौमित्र, नीरज जी सोम ठाकुर, उदयप्रताप सिंह जैसे कवियों से रुबरु हुए, तो उनकी रुचि सहित्य की तरफ बढ़ना शुरू हो गई। कक्षा नौ के छात्र के रूप में उन्होंने वाणी वंदना के छंद लिखे। इसके बाद वह प्रयाग विश्वविद्यालय गये, जहां उनका महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा, डा. जगदीश गुप्त, डा. मोहन अवस्थी, निराला जी के सुपुत्र पं. रामकृष्ण त्रिपाठी आदि के साथ घनिष्ठ संपर्क बना, तो कवि के बीजारोपण होना स्वाभाविक था। 1987 में नेट व जेआरएफ उत्तीर्ण करने के बाद शोध के लिए बनारस हिंदू विश्व विद्यालय गये, जहां से वह विश्वभारती शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल चले गये, जहां वर्ष 1989 से 1994 तक पीएचडी शोध कार्य पूरा किया, वहीं उन्होंने अध्यापन का कार्य भी किया। एबीवीपी से जुड़े डा. रमाकांत शर्मा 1996 से वह संस्कार भारती, भिवानी से सम्बद्ध हो गये और हलवासिया विद्या विहार, भिवानी में हिन्दी प्रवक्ता बने, जिसमें करीब पाँच वर्ष कार्यकारी प्राचार्य का दायित्व भी संभाला। इसके अलावा डा. रमाकांत ने महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक द्वारा रविवार व अवकाश के दिनों में संचालित दूरस्थ शिक्षा की एमए हिन्दी कथाओं में 12 वर्ष तक अध्यापन कार्य किया। अन्तरराष्ट्रीय संस्था हिन्दी साहित्य भारती के हरियाणा प्रांत के संयुक्त मंत्री बने। हरियाणा के भिवानी उनकी कर्मस्थली बना चुके डा. रमाकांत को एक साहित्यकार और कवि के रूप में राज्य कवि उदय भानु हंस, माधव कौशिक, डॉक्टर राम निवास मानव, मदन गोपाल शास्त्री, डॉक्टर शिवकांत शर्मा इत्यादि का विशेष सान्निध्य मिला। डा. रमाकांत ऐसे कवियों में शामिल हैं, जिन्हें भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी, राष्ट्रीय कवि श्याम नारायण पाण्डेय, राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी, महीयसी महादेवी वर्मा, पदम्भूषण गोपालदास नीरज, प्रो.सोम ठाकुर, प्रो. जगदीश गुप्त,डॉ. मोहन अवस्थी, लीलाधर वियोगी समेत अनेक वरेण्य कवियों के साथ भी काव्य पाठ करने का सौभाग्य हासिल हुआ है। 
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प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. रमाकांत शर्मा की प्रकाशित पुस्तकों में काव्य संग्रह गाँवों की ओर, उदयगान, समीक्षा के स्वर, मेरी प्रिय कविताएँ और गीत अगीत, गीतिकाव्य और राष्ट्रीयता (समीक्षा), आन्दोलनमुक्त हिन्दी कविता का शैल्पिक मूल्यांकन (शोध प्रवन्ध) सुर्खियों में हैं। उन्होंने राष्ट्रीय काव्य संकलनों समीक्षा-ग्रंथों में लेखन में प्रतिभागिता की। वहीं भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की सीनियर फेलोशिप प्राप्त कर हाल ही में रामचरित्र मानस पर ग्रंथ लेखन पूरा किया है। इसके अलावा डा. रमाकांत ने हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड की हिंदी पुस्तकों का सहसम्पादन और साल 1996 से पाठ्यक्रम चयन, सम्पादन एवं अन्य शैक्षिक गतिविधियों में हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड में सहयोग दिया। जिन्हें बोर्ड चेयरमैन द्वारा डी.एड. समिति में मनोनीत सदस्य शामिल किया गया। अरसे से राष्ट्रधर्म, पांचजन्य, सहित अनके राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओ में कविताएँ व शोध लेख प्रकाशित हो रहे हैं। वहीं उन्होंने दृष्टिपात (प्रयाग), दूर्वा (भिवानी) पत्रिकाओं का संपादन किया। 
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पुरस्कार/सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2021 के लिए ढाई लाख रुपये की राशि के प्रतिष्ठित पण्डित माधव प्रसाद मिश्र सम्मान पाने वाले साहित्यकार डॉक्टर रमाकांत शर्मा को इससे पहले साल 2010-11 में हरियाणा साहित्य अकादमी के श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा सरस्वती साधना परिषद् मैनपुरी का पं. अवधेश दुबे स्मृति सम्मान, अखिल भारतीय निबंध लेखन प्रतियोगिता में दो बार प्रथम स्थान, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा का 'कार्यनिष्ठ कार्यकर्ता सम्मान', संस्कार भारती का 'साहित्य कला सम्मान, प्रयाग की संस्था प्रयोग का प्रथम महादेवी स्मृति सम्मान, अवन्तिका (दिल्ली) का शांकुतलम् सम्मान, मानव भारती(हिसार) का साहित्य शिरोमणि सम्मान, हरियाणा अणुव्रत प्रादेशिक समिति का विशिष्ट साहित्य सम्मान, सांस्कृतिक मंच, भिवानी का राजेश चेतन काव्य पुरस्कार, भिवानी परिवार मैत्री संघ, दिल्ली द्वारा 'मधुपकाव्य सम्मान', साहित्य कला संगम हिसार का उदयभानु हंस कविता पुरस्कार, मंदाकिनी संस्था बरेली का साहित्य सम्मान, साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा राजस्थान की ओर से हिन्दी काव्य भूषण सम्मान, शहीद स्मृति सभा भिवानी द्वारा सम्मान और रोटरी क्लब भिवानी द्वारा 'नेशनल बिल्डर अवार्ड' तथा स्वतंत्रता सेनानी पं.नेकीराम शर्मा ट्रस्ट भिवानी द्वारा सम्मान से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें द अमेरिकन बायोग्रेफिकल सोसायटी द्वारा मैन ऑफ द ईयर 2005 एवं गोल्ड मेडल फॉर इण्डिया 2011 के लिए नामित किया गया। ---- 
फैलोशिप की उपलब्धि 
साहित्यकार डा. रमाकांत ने वर्ष 1987 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा उत्तीर्ण कर फैलोशिप हासिल की। वहीं उन्होंने वर्ष 2000-02 के दौरान भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय की कनिष्ठ फैलोशिप प्राप्त कर 'गीतों में राष्ट्रीयता' विषय पर प्रकल्प लेखन किया। यहीं नहीं वर्ष 2015-16 में केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय से ही सीनियर फैलोशिप लेकर 'रामचरितमानस में संबंध-संस्कृति और भारतीय समाज' विषय पर प्रकल्प लेखन करने की उपलब्धि हासिल की। अखिल भारतीय निबंध लेखन प्रतियोगिता में दो बार प्रथम स्थान हासिल करने पर उन्हें दो बार संसद भवन में सम्मानित किया गया। 
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सांगठनिक दायित्व 
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा के दौरान उन्होंने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के कार्यकर्ता के रूप में सदस्यता ली और आचार्य विष्णुकांत शास्त्री (पूर्व राज्यपाल हिमाचल एवं उत्तर प्रदेश) के आदेशानुसार विश्व भारती शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् का दायित्व संभाला। वर्ष 1996 से परिषद् की भिवानी (हरियाणा) शाखा में सक्रिय हुए और संस्कार भारती, भिवानी से सम्बद्ध होकर अन्तरराष्ट्रीय संस्था हिन्दी साहित्य भारती के हरियाणा प्रांत के संयुक्त मंत्री के अलावा 15 वर्षों तक महामंत्री एवं 08 वर्ष हरियाणा प्रांत के सहसंगठन व संगठन मंत्री का दायित्व संभाला। अनेक बार प्रांतीय कार्यशालाओं एवं प्रांतीय अधिवेशनों का आयोजन कराया और मासिक गोष्ठियों का संचालन-संयोजन भी किया। 
-संपर्क : डी-2, रापल रेजीडेन्सी, बजरंग बली फॉलोनी, निकट केशव धाम, अपसेन चौक, भिवानी (हरि) 127021, मोबाइल: 9416855016 
18July-2022

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपका आभार. वैसे इस समय मैं पूर्व प्राचार्य हो गया हूँ. आभार हरिभूमि.

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  2. बहुत खूब, ऐसे ही मां हिन्दी की पूरी निष्ठा के साथ सेवा करते रहिए

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