सोमवार, 4 जुलाई 2022

मंडे स्पेशल: पानी की तरह बहता पैसा भी खत्म नहीं कर पाया जलभराव

ज्यादातर जिलों में खस्ताहाल ड्रनेज सिस्टम दे गये जवाब 
मानसून ने पहली बरसात ने शहरों को क्यों बना दिया तलाब 
ओ.पी. पाल.रोहतक। मानसून की पहली बरसात ने ही प्रदेशभर में जल निकासी के दावों की हवा निकाल दी। झमाझम बरसे बदरा ने रोहतक, झज्जर, यमुनानगर, सोनीपत, जींद, कैथल और अंबाला जैसे शहरी और कस्बों को तलाब का रूप दे दिया। हालांकि बरसात से पहले अधिकारी दावा करते रहे कि बरसाती जल निकासी के व्यापक प्रबंध है। जनवरी में मुख्यमंत्री के साथ बैठक और पिछले दिनों ही मुख्य सचिव के साथ वीडियो कांफ्रेंसिग में भी जिला अधिकारियों ने जमकर दावे किए। मुख्य सचिव द्वारा 30 जून तक सभी निकासी नालों और सिवरेज की सफाई के निर्देश पर भी अफसरों ने खूब वाहवाही लूटी। पानी की तरह पैसा भी बहाया गया, लेकिन काम कितना हुआ इसका खुलासा तो पहली बरसात में ही होगा गया। अगर सरकारी आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो प्रदेश भर में अमरूत योजना के पैसे का बड़ा हिस्सा जल निकासी पर खर्च किया गया, बाढ़ बचाव के लिए सरकार ने 432 करोड़ का अलग से बजट भी ऑलाट किया। जल स्वास्थ्य महकमें को इसके लिए जो धनराशि दी गई वो भी इससे अलग। इसके बावजूद शहरों ने नदी का रूप ले लिया। विपक्ष ने जलभराव में उतरकर सरकार की खिल्ली उड़ाई, सो अलग। 
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प्रदेश में ड्रनेज सिस्टम को विकसित करने के लिए विजन-2030 में एक रोडमैप तैयार किया है और मानसून से पहले प्रदेशभर में कई योजना के तहत ड्रनेज सिस्टम को तकनीकी प्रणाली के जरिए दुरस्त करने पर हरसाल करोड़ो रुपये खर्च किये जाते हैं। प्रदेश में हर की तरह इस साल भी ड्रनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के दावे और जल निकासी की व्यवस्था दुरस्त करने के दावे किये, लेकिन मानसून की बरसात होते ही एक बार फिर इन दावों की असलियत खुलकर सामने देखी गई। जिसका खामियाजा प्रदेश के जिलों व कस्बों में ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आमजन को बरसात की पहली बारिश में भुगतने को मजबूर होना पड़ा। ऐसे में खस्ताहाल पड़े ड्रनेज सिस्टम पर ही सीधे सवाल खड़े होना स्वाभाविक है। ये हालात तब सामने आए, जब प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस साल सूखा एवं बाढ़ नियंत्रण बोर्ड की बैठक में इससे सबंन्धित 320 नई योजनाओं को मंजूरी देकर 494 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया। सरकार ने इस चालू वर्ष में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों या खेतों में बरसात के दौरान एक लाख एकड़ भूमि से जल भराव की समस्या खत्म करने का लक्ष्य निर्धारित किया। इसका मकसद प्रदेश में जल भराव की समस्या से निपटने के लिए समय रहते सभी व्यवस्थाएं पूरी करना था। यही नहीं प्रदेश सरकार ने वर्ष 2022-23 के बजट में जनस्वास्थ्य विभाग को 40 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान ड्रनेज और बाढ़ प्रोजेक्ट के लिए किया है। जबकि इससे पहले जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग वित्तवर्ष 2020-21 के दौरान 3591.27 करोड़ रुपये के आवंटन में लगभग 100 किलोमीटर नई सीवर लाइन लगाने का लक्ष्य दिया गया था। वहीं प्रदेश में जल निकासी को लेकर मुख्य सचिव ने भी जिला अधिकारियों से वीडियों कांफ्रेंस करके 30 जून तक नदी, नालों और सीवरेज की साफ सफाई और ड्रेनेज सिस्टम को सुधारने के निर्देश दिये थे, लेकिन बरसात की पहली बारिश ने इन सभी दिशानिर्देशों को धत्ता साबित कर दिया। शायद हरियाणा में एक भी जिला ऐसा नहीं रहा, जहां इस पहली बारिश के पानी से शहरों व कस्बों की सड़के, गलियों ने जलभराव के कारण नदियां न बन गई हों। 
बजट की कोई कमी नहीं 
प्रदेश में जल भराव की समस्या से निपटने के लिए जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, शहरी स्थानीय निकाय, सिंचाई एवं जल संसाधन, शहरी स्थानीय निकाय,लोक निर्माण विभाग और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने संयुक्त अभियान चलाता है और सरकार की योजनाओं में इसके लिए बजट की भी कोई कमी नहीं है। लेकिन बरसात में जल भराव की बढ़ती समस्या तो यही साबित करने को काफी है कि जल निकासी के लिए योजनाए और मास्टर प्लान तो लगातार बनाए जाते हैं, लेकिन उन्हें अमल में नहीं लाया जाता। यही नहीं राज्य सरकार के जल संबन्धी समस्याओं से निपटने के लिए केंद्र सरकार की अमरुत योजना और अटल योजना जैसी कई योजनाओं के लिए भी हर वित्तीय वर्ष में धनराशि आवंटित की जाती है। अमरुत योजना के दूसरे चरण में केंद्र सरकार ने हरियाणा को की विभिन्न योजनाओं के बजट में कम से कम चार प्रतिशत धनराशि जल निकासी के लिए ड्रनेज सिस्टम में सुधार के लिए ही निर्धारित है। इसके बावजूद पहली बारिश में ही हर साल की तरह इस साल भी ज्यादातर जिलों के शहरों व कस्बों और ग्रामीण क्षेत्रों में डिस्पोजल सेंटरों की कम क्षमता, जाम पड़े ड्रेनेज सिस्टम, नालों की अधूरी सफाई और पंप सेटों की अधूरी मरम्मत से ड्रेनेज सिस्टम जैसी सारी व्यवस्था ध्वस्त होती नजर आई। 
बढ़ता शहरीकरण भी बड़ा कारण 
प्रदेश में बढ़ते शहरीकरण भी ड्रनेज सिस्टम के हाल बेहाल होने का बड़ा कारण माना जा रहा है, जहां मास्टर प्लान बनाए जाने के बावजूद पानी के स्रोत और जल निकासी के बहाव की दिशा भी तय करने के लिए मास्टर प्लान पर गंभीरता से अमल करना जरूरी है, लेकिन मास्टर प्लान लागू करने वाले महकमें इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा पा रहे हैं। इसी कारण ज्यादातर शहरों में निचले हिस्सों और तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में आबादी या बस्तियों के पानी का निकास होना असंभव है। ऐसे में बरसात के दिनों में जल का बहाव सड़कों और रास्तों पर जलभराव के रूप में होना स्वाभाविक है। 
तीन दशक से नहीं बदली सीवरेज लाइन 
हरियाणा के हिसार जिले में 30 साल पुरानी 80 किलोमीटर लाइनें बदलने का काम अमरुत योजना के तहत होना था, जिसमें पहले चरण तो दूर इस योजयना के दूसरे चरण में लोगों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है। योजना के तहत हिसार में सीवर लाइन बदलकर ड्रनेज सिस्टम दुरुस्त करने के साथ इस योजना के तहत 3 बूस्टिंग स्टेशन का निर्माण भी अधर में लटका हुआ है। इसी प्रकार बहादुरगढ़ और कई शहरों में तीन दशक पुरानी सीवरेज लाइन बदलने का काम अधूरा पड़ा हुआ है। 
सफाई की औपचारिकता 
प्रदेश में ड्रनेज सिस्टम को दुरस्त करने के नाम पर भले ही करोड़ो रुपये बर्बाद किये जा रहे हों, लेकिन सीवरों और नालों की सफाई के लिए हो रही खानापूर्ति का खामियाजा बरसात के दिनों में जल भराव के साथ नालों के उबलने का खामियाजा जनता भुगतने को मजबूर है। दरअसल बरसाती नालों से कचरा निकालकर वहीं छोड़ दिया जाता है, जो बारिश होते ही वह वापस नालों में समा जाता है। यह तथ्य भी किसी से छिपे नहीं है कि शहरी क्षेत्रों में नालों पर लोगों के अवैध कब्जे भी जल भराव की समस्या का कारण बने हुए हैं। सरकार और संबन्धित विभाग अवैध कालोनियों को वैध घोषित करने की परंपरा को अमलीजामा पहनाते रहेंगे तो ज्यादातर ड्रेनेज सिस्टम का जवाब देना भी स्वाभाविक हैं। मानसून सीजन में भारी बारिश के दौरान जलभराव वाले क्षेत्रों में पानी की निकासी के लिए पंपसैट की पर्याप्त व्यवस्था न होने के कारण आमजनों को कई दिनों तक परेशानियों से जूझने को मजबूर होना पड़ रहा है। 
बर्बाद होती किसानों की फसलें 
प्रदेश में बरसात के पानी से लबालब खेतों में खड़ी किसानों की फसले भी बर्बाद हो रही हैं। हालांकि दिन सिंचाई के जल स्रोतों नहर, नदी और राजवाहे के ड्रनेज के नाकों के कटने से अनावश्यक रूप में खेतों में जलभराव भी किसानों की परेशानी का सबब बन रहा है। इसके पीछे ड्रेन सिस्टम की खस्ता हालत भी है, जहां अन्य दिनों में भी ड्रेन टूटने से खड़ी फसल जलमग्न हो रही हैं। बरसात के दिनों में तो ग्रामीण क्षेत्रों और खेतों में जलभराव के हालत बद से बदतर देखे गये हैँ। प्रदेश में सरकार ने जलभराव के लिए 85 गांवों को चिन्हित किया है, जहां पानी की निकासी से उस पानी को पुन: सिंचाई में उपयोग किया जा सकेगा। वहीं राज्य सरकार ने सिंचाई के जल संकट से निपटने के लिए सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली लागू की है, जिसमें करीब छह हजार रजवाहों की लाइनिंग के लिए दस वर्षीय कार्य योजना को अंजाम दिया जा रहा है। 
04July-2022

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