रविवार, 23 जून 2019

राग दरबार: मुश्किल में किंगमेकर


मुश्किल में किंगमेकर
आजकल तेदेपा के लिए सियासी संकट को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि दूसरों के लि गड्ढा खोदना, अपने लिए मुसीबत मोल लेना है और कुछ ऐसा ही तेलगु देशम पार्टी के चार राज्यसभा सदस्यों के भाजपा का दामन थामने से चरितार्थ होता नजर आ रहा है। दरअसल हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के दौरान राजग से अलग होकर मोदी और भाजपा को केंद्र की सत्ता से बेदखल करने के मकसद से विपक्षी दलों की महागठबंधन वाली कवायद में सबसे लंबी उछल-कूद तेदेपा प्रमुख चन्द्रबाबू नायडू ही कर रहे थे। जब चुनाव परिणाम सामने आए तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर मोदी की जगह किसे बैठाना है उसके तानाबाना बुनने के लिए सक्रिय रहे नायडू के लिए सबसे बड़ा सियासी संकट आया, जो केंद्र सरकार बदलने के फेर में अपनी आंध्र प्रदेश की सत्ता ही गंवा बैठे। सियासी गलियारों की बात करें तो लोकसभा चुनाव में केंद्र की सत्ता के किंगमेकर की भूमिका निभाने के फेर में खुद बड़े सियासी संकट के मक्कड़जाल में फंस गये हैं। ऐसे में मसलन तेदेपा प्रमुख के लिए यह सियासी संकट को लेकर 'धोबी का कुत्ता घर का न घाट का' कहावत चरितार्थ हो रही है।
भाई सुनता नहीं
देश की सियासत के स्वार्थ में कब किसका भतीजा और कौन किसकी बुआ या कौन किसका भाई बन जाए, इसका कोई समय नहीं है। यूपी के कन्नौज से लोकसभा चुनाव हारने की टीस शायद सपा प्रमुख अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को सता रही है। जिस कांग्रेस को सपा-बसपा के गठबंधन का लाभ लेने के स्वार्थ में दरकिनार करके सपा बड़े सपने संजो रही थी, वहीं सपा सियासी नुकसान के रूप में खामियाजा भुगतने के बाद कांग्रेस की यादों को पकाने में लगी है। संसद में आने से चूकने पर आजकल डिंपल यादव ट्रिवटर पर खूब सक्रिय है और सप्ताह में कम से कम दो बार उनका ट्रिविट यही दोहराया मिलता है कि ‘भाई राहुल जी अखिलेश और आपको मिलकर कर देश को आगे ले जाना है मोदी जी ने देश को विकास से दूर कर दिया है अब देश को आपकी और अखिलेश जी की जरूरत है इसलिए समाजवादी और कॉग्रेस के सभी कार्यकर्ताओं से मेरी अपील है कि सभी मुझे फॉलो करें’! इसके बावजूद कांग्रेस प्रमुख राहुल ही जब फॉलो नहीं करते तो कांग्रेस कार्यकर्ता क्या फॉलो करेंगे।
23June
ममता की हठ
देश की राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी कोई मायने नहीं रखती, लेकिन इस बार हुए आम चुनाव की सियासत में यह परंपरा या कहावत इतिहास बनती नजर आई। मसलन लोकसभा चुनाव के दौरान पीएम मोदी और भाजपा प्रमुख शाह के खिलाफ विपक्ष एकजुट होरक उन पर न जाने कैसे-कैसे जहरीले शब्दबाण चलाता रहा। अक्सर चुनावी सियासत में इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप एक प्रचलित कहावत ‘रात गई, बात गई’ की तर्ज पर नतीजों के बाद विराम लेती रही हैं, लेकिन चुनावी महासंग्राम के दौरान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों में यह बात कई बार दोहरा चुके है कि वे मोदी व शाह से नफरत करते हैं। लेकिन चुनावी नतीजों के बाद प्रचंड बहुमत में आए भाजपानीत राजग पर तमाम विपक्षी दल चुनावी प्रचार के आरोप-प्रत्यारोप भूलकर बधाई देते नजर आए। राष्ट्रपति भवन में पीएम मोदी व उनके मंत्रिमंडल के शपथ ग्रहण समारोह में न्यौते पर ज्यादातर राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल हुए, जिसमें दिल्ली के सीएम केजरीवाल भी मनीष सिसौदिया के साथ पहुंचे, लेकिन तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी शपथ ग्रहण के लिए मिले न्यौते को ठुकराकर देश की सियासत में दोस्ती और दुश्मनी के मायनों को ही बदलकर दुश्मनी सियासत को अपनाकर अपनी हठ को सर्वोपरि रखा, जिसे सियासी गलियारों में लोकतंत्र की सेहत के लिए जहर करार दिया जा रहा है।
कांग्रेस का भूचाल
देश के बड़े दल कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी पीएम मोदी को यह चुनौती देते देखे जा चुके हैं कि संसद में यदि उन्हें 15 मिनट बोलने का मौका दिया जाए तो भूचाल आ जाएगा और पीएम मोदी उनके सामने टिक नहीं पाएंगे। कांग्रेस प्रमुख की 17वीं लोकसभा के चुनाव में भी लगातार मोदी पर लगातार हमलों के दौरान इससे भी बड़ी बड़ी चुनौतियां दी गई, लेकिन जब चुनावी नतीजे आए तो ये चुनौतियां कांग्रेस प्रमुख के ही गले की फांस के रूप में सामने आई और लोकसभा में लगातार दूसरी बार विपक्ष के दर्जे को खो चुकी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी करारी हार की जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफे की पेशकश क्या कर दी, कि पूरी पार्टी में भूचाल जैसे हालात पैदा हो गये। कांग्रेस के छोटे-बड़े सभी नेता राहुल को मनाने के प्रयास में नतमस्तक हैं और ऐसा माहौल बनाने की कोशिश हो रही है कि मानों राहुल गांधी ने इस्तीफा वापस नहीं लिया तो देश की सबसे बुजुर्ग कांग्रेस टूटकर खत्म हो जाएगी। कांग्रेस ही नहीं अन्य दलों के गैर भाजपाई नेता भी कुछ ऐसा ही मानकर चल रहे हैं। सोशल मीडिया पर ट्रेंड होती टिप्पणियों ने राहुल को मझधार में डाल रखा है, जिसमें यहां तक स्थिति आ गई कि कांग्रेस के तमाम प्रमुखों की चुनावी सफलता के मुकाबले राहुल गांधी की जीत का रिकॉर्ड बेहद खराब है और संगठनात्मक रूप से भी राहुल के कार्यकाल में कांग्रेस क मजोर साबित हो रही है।
01june
शॉटगन का पश्चाताप..
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक महत्ती जगह मिली है, जिसमें कोई भी किसी के प्रति कैसी भी टिप्पणी कर देता है। खासकर देश की सियासत में तो दोस्ती और दुश्मनी दोनों के ही कोई मायने नहीं हैं? ऐसा ही आजकल भाजपा से बगावत करके कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव हारकर खामोश हुए शॉटगन के नाम से मशहूर फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा के बदलते सुर ऐसा इशारा करते नजर आ रहे है जैसे मानों उनसे घोर पाप हो गया हो? शायद इसीलिए चुनाव में खामोश होते ही मोदी और शाह की जोड़ी का बेजोड़ राजनीतिज्ञ करार देने के अलावा दोबारा सत्ता में आई मोदी सरकार की योजनाओं की भी तारीफ भी कर रहे हैं। दरअसल 16वीं लोकसभा तक भाजपा सांसद रहे शॉटगन को  पिछली मोदी सरकार में कोई तरजीह नहीं मिली तो उनकी सांसदी का पूरा कार्यकाल मोदी सरकार और भाजपा के खिलाफ बगावती तेवरों से लबरेज रहा हैं और इस बार भाजपा को चुनौती देने के फेर में वह सपत्नीक सियासी जंग हार गये। शायद पश्चाताप करके फिर से घर वापसी करने के मकसद से ही देश में फिर से सत्ता संभालने वाले पीएम मोदी और भाजपा अध्यक्ष शाह के प्रति उनके हृदय परिवर्तन का कारण हो सकता है। उनके मोदी व शाह के प्रति मोह के संकेतों से तो शॉटगन के लिए यही प्रचलित कहावत चरितार्थ होती नजर आ रही कि ‘अब पछताए काहे हो, जब चिड़िया चुग गई खेत..!
शक्तिमान कौन
केंद्र में मोदी-2 सरकार ने देश में जल संबन्धी मुद्दों को एकीकृत करके उनके लिए जल संसाधन तथा पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को मर्ज करके जलशक्ति मंत्रालय का गठन किया है। केंद्र सरकार के इस निर्णय के बाद दोनों मंत्रालय के सचिवों के बीच इस बात को लेकर संशय बना हुआ है कि नए मंत्रालय के सचिव पद पर कौन तैनात रहेगा। दरअसल हाल ही देश में 14 करोड़ घरों तक शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के लक्ष्य के लिए बनाई जा रही योजना को लेकर मंथन के लिए केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र शेखावत ने सभी राज्यों के संबन्धित मंत्रालयों और सचिवों की बैठक बुलाई, जिसमें केंद्रीय मंत्री के साथ जल संसाधन मंत्रालय के सचिव यूपी सिंह और पेयजल व स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेश्वरन अय्यर समानांतर मंच पर रहे, लेकिन दोनों विभागों के सचिवों में कौन जल शक्ति मंत्रालय का सचिव होगा इसके लिए दोनों सचिवों में जल संबन्धी योजनाओं की फाइलों को निपटाने की होड सी लगी हुई है। इसका असर जल मुद्दे पर हुए राज्यों के मंत्रियों के सम्मेलन में भी देखने को मिली, जिसमें दोनों ही नौकरशाह अपने-अपने विभागों की परियोजनाओं के कार्यो की उपलब्धियों का गुणगान करते भी नजर आए। अब देखना है कि जलशक्ति मंत्रालय के सचिव की बागडौर किसे हाथ आएगी या दोनों को मंत्रालय में समानांतर रूप से अलग अलग परियोजनाओं का भार सौंपा जाएगा? 16JUne

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