रविवार, 23 जून 2019

राज्यसभा में लंबित बिलों को भी निष्प्रभावी माना जाए?


सभापति का ऐसे नियम पर चर्चा करने का सदन से सुझाव             
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राज्यसभा की कार्यवाही को बेहतर बनाने की दिशा में सभापति एम. वेंकैया नायडू ने सदन के सदस्यों को महत्वपूर्ण सुझाव देते हुए कहा कि सदन को निर्विघ्न चलाने के लिए उन लंबित विधेयकों को निष्प्रभावी मानने के लिए नियमों में बदलाव की वकालत की, जो उच्च सदन में पेश होने के बाद पांच साल या उससे ज्यादा समय से लंबित पड़े हुए हैं। नायडू ने इसके लिए सदस्यों से राज्यसभा के कामकाज में बदलाव करने के लिए विचार विमर्श कर चर्चा करने का आव्हान किया है।
राज्यसभा की शुक्रवार को शुरू हुई कार्यवाही के दौरान सभापति एम वेंकैया नायडू ने सदन में कार्यवाही के बाधित होने से समय की बर्बादी पर पर चिंता जताते हुए सदन के कामकाज में बदलाव का सुझाव दिया, ताकि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर हाने से बचाया जा सके। नायडू ने कहा कि लोकसभा में पेश होने के बाद पारित बिलों के राज्यसभा में लंबित होने की स्थिति में जिस प्रकार से लोकसभा भंग होते ही वे स्वत: निष्प्रभावी मान लिये जाते हैं। इसी तर्ज पर राज्यसभा में पेश किये जाने वाले लंबित बिलों को भी निष्प्रभावी मान लिया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि राज्यसभा में पांच साल और उससे ज्यादा समय से लंबित ऐसे बिलों को निष्प्रभावी करने के लिए सदन को नियमों में बदलाव के लिए चर्चा करनी चाहिए, ताकि समय की बर्बादी और अवरोध की स्थिति से निपटा जा सके और उच्च सदन में कामकाज का माहौल कायम किया जा सके। उन्होंने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 10 का हवाला देते हुए कहा कि लोकसभा में उसके पांच साल के कार्यकाल के दौरान पारित किए गये विधेयक यदि राज्यसभा में लंबित रह जाते हैं तो वह उस लोकसभा के भंग होते ही निष्प्रभावी हो जाते हैं। जबकि राज्यसभा में पेश किये जाने वाले विधेयक सदन की संपत्ति बनकर लंबित पड़े रहते हैं। इसलिए संविधान में राज्यसभा के नियमों में बदलाव की दरकार है।
राज्यसभा में 22 बिल हुए निष्प्रभावी
उच्च सदन में सभापति नायडू ने कहा कि सोलहवीं लोकसभा के दौरान राज्यसभा के अंतिम यानि 248वें सत्र के अंत में उच्च सदन में कुल 55 विधेयकों पर विचार किया गया था, जिनमें लोकसभा से पारित 22 लंबित विधेयकों के निष्प्रभावी होने के बाद राज्यसभा में पेश किये गये 33 ऐसे विधेयक लंबित हैं। इनमें तीन विधेयक तो पिछले 20 साल से अधिक समय से ही उच्च सदन में पारित होने का इंतजार कर रहे हैं, इनमें भारतीय चिकित्सा परिषद (संशोधन) विधेयक-1987 तो राज्यसभा में 32 सालों से लंबित है। अब 16लोकसभा के लंबित 22 बिलों को नई लोकसभा को फिर से पारित करना होगा, जिसमें लंबा समय लगना तय है। राज्यसभा में लंबित होने के कारण निष्प्रभावी हुए विधेयकों में तीन तलाक विधेयक, मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक, भूमि अधिग्रहण बिल, कारखाना (संशोधन) विधेयक, उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, मध्यस्थता और सुलह विधेयक, कंपनी (संशोधन) विधेयक, अनियमित जमा योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने का विधेयक, आधार और अन्य कानून (संशोधन) विधेयक, मानव तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक और नागरिकता (संशोधन) विधेयक प्रमुख रूप से शामिल हैं।
राज्यसभा में लंबित रहे 33 विधेयक
इसके अलावा राज्यसभा में पेश किये गये 33 विधेयकों में तीन विधेयक 20 से अधिक साल, छह बिल 10-20 साल के बीच, 14 विधेयक 5-10 साल से लंबित हैं। जबकि पिछले पांच साल मे राज्यसभा में पेश किये गये 10 विधेयक भी पारित नहीं हो सके हैं। इनमें प्रमुख रूप से संविधान (79 वाँ संशोधन) विधेयक, नगरपालिकाओं का प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों के लिए विस्तार) संशोधन विधेयक, सीड्स विधेयक, द पेस्टिसाइड्स मैनेजमेंट बिल, खान (संशोधन) विधेयक, अंतर्राज्यीय प्रवासी कामगार (संशोधन) विधेयक, महिलाओं का निषेध प्रतिनिधित्व (निषेध) संशोधन विधेयक, भवन और अन्य निर्माण श्रमिक संबंधित कानून (संशोधन) विधेयक, वक़्फ़ गुण (अनधिकृत व्यवसायों का प्रमाण) विधेयक आदि शामिल हैं।
राज्यसभा में बिहार में बुखार से बच्चों की मौत समेत केई मामले उठे
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
बिहार में चमकी बुखार के कारण हो रही बच्चों की मौत का मामला शुक्रवार को यहां राज्यसभा में जोरशोर से गूंजा। इसके अलावा सांसदों ने अन्य मुद्दे भी उठाए।
सत्रहवीं लोकसभा के पहले संसद सत्र में में शुक्रवार को शुरू हुई राज्यसभा की कार्यवाही में शून्यकाल के दौरान बिहार में चमकी नाम बुखार के कारण अब तक सैकड़ों बच्चों की हुई मौत का मामला जोर शोर से उठा और मुआवजे की मांग की। कई दलों के सदस्य द्वारा उठाए गये इस मुद्दे पर सदस्यों ने तत्काल प्रभाव से केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करके ठोस उपाय करने के सथ इस मामले पर सदन में चर्चा की मांग की। इस मुद्दे पर सभापति एम. वेंकैया नायडू और सदस्यों ने बच्चों की मौत पर श्रद्धांजलि दी। सदन में सदस्यों ने बच्चों के कुपोषण का मामला उठाते हुए कहा कि देश में हर साल करीब 24 लाख बच्चों की कुपोषण के कारण मौत हो रही है। इसके सुधार की मांग करते हुए सरकार से मांग की गई कि कुपोषण की स्थिति में सुधार के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं तथा कुपोषण के शिकार बच्चों की मौत पर उनके परिजनों मुआवजा दिया जाए। वहीं इससे पहले सबसे पहले सभापति एम. वेंकैया नायडू ने उन दस पूर्व सांसदों के निधन की सूचना दी जो पिछले संसद सत्र के बाद स्वर्ग सिधार गये हैं। इनमें गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पार्रिकर, वीरेन्द्र कटारिया, द्रुपद बरबोंहाई, देवी प्रसाद सिंह, चौधरी मुन्नवर सलीम, का.रा. सुब्बैया, श्रीमती वसंती स्टान्ली, विश्वनाथ मेनन, राजनाथ सिंह सूर्य, और एस. शिवा सुब्रह्मण्यम शामिल हैं,जिन्हें दो मिनट का मौन रखकर सदन ने श्रद्धांजलि दी। वहीं इस दौरान सभापति ने न्यूजीलैंड और कोलंबो में पिछले दिनों हुए आतंकवादी हमलों का भी जिक्र करते हुए मारे गये लोगों के प्रति श्रद्धांजलि दी। इसके बाद आवश्यक दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाए गये। 
22June-2019

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