रविवार, 27 दिसंबर 2015

राग दरबार: सियासत की शिकार संसद

कांग्रेस के योजनाकारों की कार्यकर्दगी
सूत न कपास, जुलाहो में लट्ठिम-लट्ठा’ वाली कहावत संसद में शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष खासकर कांग्रेस पर सटीक बैठती है। संसद में सरकार के काम का विरोध करने वाली कांग्रेस के योजनाकारों की कार्यकर्दगी कुछ इसी तरह की देखने को मिली। मसलन संसद के हाल ही में संपन्न हुए शीतकालीन सत्र में कभी आमसहमति और कभी तल्खी की सियासत में कांग्रेस ने उच्च सदन में तो हंगामा करते हुए देश की आर्थिक व्यवस्था के सुधार वाले कामों को किसी न किसी बहाने से लटका ही दिये। अंतिम दिनों में सहमति बनाई गई तो भी चर्चा से भागती रही कांग्रेस ने कुछ बिलों को झटपट निपटाकर हंगामे को ही प्राथमिकता पर रखा। राजनीतिकारों की माने तो देश के विकास और समाज की हितैषी कहने का दम भरने वाली कांग्रेस ने केंद्र सरकार के इस दिशा में उठाए गये कदमों की अड़चन बनकर अपने ही पैरो में कुल्हाड़ी मारने का काम किया है। राजनीति के गलियारों और सोशल मीडिया पर कांग्रेस की संसद में इस कारगुजारी वाली रणनीति पर ऐसी ही टिप्पणी मिल रही है, कि कांग्रेस को जब बिना चर्चा के ही बिलों को पास कराना था तो संसद सत्र के शुरूआत से ही सरकार का सहयोग करती तो महत्वपूर्ण विधेयकों को भी कानून का दर्जा मिल जाता और देश के विकास व आर्थिक सुधार को एक दशा मिलती और कांग्रेस को देश हितैषी होने का खिताब भी...।
रास नहीं आई गांधीगिरी
संसद के दोनों सदनों में शीतकालीन सत्र के दौरान कोई भी दिन ऐसा रहा होगा, जिस दिन किसी न किसी मुद्दे पर कांग्रेस के सांसदों ने आसन के करीब आकर हंगामा न किया हो। इसके बावजूद दिल्ली सचिवालय में सीबीआई छापे के विरोध में हंगामा करते आप के एक सदस्य को गला रूंधने पर जब स्वयं प्रधानमंत्री ने पानी पिलाया, तो उच्च सदन में भी सरकार की ओर से ऐसी सहानुभूति कांग्रेस सदस्यों पर भी आजमाई गई। मसलन राज्यसभा में आसन के करीब जोर-जोर से नारे लगाते कांग्रेस सदस्यों की आवाजे रूंधती नजर आई तो संसदीय कार्य मामलों के एक मंत्री ने कहा कि सरकार ने उनके लिए जूस और दवाई का इंतजाम किया है, जरूरत है तो मांग की जा सकती है, लेकिन कांग्रेस को सरकार की यह गांधीगिरी रास नहीं आई और उनकी हंगामे की रणनीति जारी रही, जिसमें विपक्ष के इस दल का मकसद सरकार के कामकाज को सदन में रोकना था?
जंग के मैदान में तब्दील होता सोशल मीडिया का हीरो
सोशल मीडिया का सबसे सशक्त माध्यम कहें या हीरो, ‘ट्वीटर’ इन दिनों जहां भारत में लगभग हर तबके के बीच तेजी से पॉपुलर हो रहा है। वहीं कई बार संचार के इस सबसे सशक्त माध्यम पर हालात बड़े उग्र और बेकाबू हो जाते हैं। लोग किसी टिप्पणी, तर्क, आपसी वाद-विवाद या बातचीत में कुछ यूं उलझ जाते हैं कि संचार और संवाद का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। लेकिन जब हम ट्विटर के शुरूआती दौर को देखते हैं तो ये लोगों के बीच आपसी बातचीत या संवाद के अच्छे माध्यम के रूप नजर आ रहा था। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ी और अब देखें तो हालात कुछ ऐसे नजर आते हैं कि जिसे देखो अपने मन की भड़ास निकालनी हो, किसी का विरोध करना हो या किसी से वाद-विवाद। आ जाओ ट्विटर पर एक सेकेंड़ में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। अब ऐसे में तो ये ही कहेंगे न कि जिस माध्यम की शुरूआत तो आपसी संवाद के लिए हुई थी लेकिन अब हालात ये हैं कि वो जंग के मैदान में तब्दील होता जा रहा है।
काम कम,चर्चा ज्यादा
सरकार के कामकाज और उपलब्धियों के बारे में मीडिया के साथ सूचना साझा करने का जिम्मा संभाल रहे एक खास मंत्रालय के आला अधिकारी इन दिनों काफी परेशान हैं। उनकी परेशानी की वजह है काम का बोझ। अब जबकि 2015 का आखिरी माह भी खत्म होने जा रहा है, इन अधिकारी महोदय को मंत्रालय की नई योजनाओं और उपलब्धियों पर साल भर की रिपोर्ट तैयार करनी है। इसके अलावा अखबारों में मंत्रालय के बारे में क्या छपा, कितना छपा इस पर भी अलग से रिपोर्ट तैयार करनी है। लिहाजा, वह इस काम के बोझ से खुद को दबा महसूस कर रहे। इतना ही नही, कार्यालय में आने वाले हर पत्रकार से इसका रोना भी रो रहे। उनके इस काम के बोझ से दबे होने की गाथा सुनने के बारद एक पत्रकार को रहा नही गया और उसने अधिकारी महोदय के सामने ही कह डाला कि, ये तो वही बात हुई कि काम कम, काम की चर्चा ज्यादा हो रही है। बेचारे अधिकारी महोदय अपना सा मुंह लेकर रह गए।
27Dec-2015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें