बुधवार, 16 दिसंबर 2015

राज्यों के 43 विधेयक नही बन सके कानून!

छत्तीसगढ़ के तीन व मप्र का एक लंबित बिल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार जहां संसद में महत्वपूर्ण लंबित विधेयकों को पारित कराने का प्रयास कर रही है, वहीं संसद में राज्यों के करीब चार दर्जन विधेयक कानून बनने का इंतजार कर रहे हैं। पिछले चार साल में राज्यों की विधानसभाओं में पारित होकर अनुमोदन के लिए केंद्र सरकार के पास आये 105 विधेयकों में 43 विधेयक अभी भी संसद में लंबित हैं, जो कानूनी दर्जा हासिल करने के लिए अभी केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों व विभागों की खाक छानने को मजबूर हैं।
देश की राज्यों सरकारों द्वारा विधानसभाओं में पारित ऐसे विधेयकों की संख्या भी केंद्र सरकार के पास लगातार बढ़ती जा रही है, जिन्हें राज्य में काननू का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार और और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी का बेसब्री से इंतजार है। हालांकि मौजूदा सरकार का दावा है कि उसने ज्यादातर राज्य के विधेयकों को अंतिम रूप दे दिया है। मसलन वर्ष 2014 में केंद्र के पास ऐसे 104 विधेयक लंबित थे, जिनकी संख्या घटकर 43 रह गई है। राज्य सरकारों से केंद्र की जांच पड़ताल और राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए पिछले चार साल में केंद्र के पास ऐसे 105 विधेयक लंबित थे, जिन्हें विधानसभाओं या राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद संबन्धित केंद्रीय मंत्रालय और विभागों को जांच-पड़ताल के बाद अंतिम मुहर लगने के लिए राष्ट्रपति के समक्ष भेजा गया था। गौरतलब है कि राज्यों के विधेयकों में कई ऐसे महत्वपूर्ण बिल होते हैं जिनकी केंद्र में जांच पड़ताल में होने वाले विलंब के कारण राज्यों को कभी-कभी नाजुक स्थिति के दौर से गुजरना पड़ता है।
छत्तीसगढ़ के छह विधेयकों पर मुहर
छत्तीसगढ़ वर्ष 2013 में पांच विधेयक मिले, जिनमें अभी छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्र्य (संशोधन) विधेयक-2006 तथा छत्तीसगढ़ शैक्षिक संस्थान (प्रबंधन) विधेयक-2013 को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। जबकि इसी वर्ष भेजे गये दो विधेयकों में केवल छत्तीसगढ़ विशेष न्यायालय विधेयक-2015 केंद्र के पास लंबित है। इन चार सालों में छत्तीसगढ़ से केंद्र को मिले कुल नौ विधेयकों में जिन छह विधेयकों को अंतिम रूप दिया गया है, उनमें औद्योगिक विवाद (संशोधन) विधेयक-2015, भारतीय वन (संशोधन) विधेयक-2014, छग डचच न्यायालय डिवीजन बैंच अपील (संशोधन) विधेयक-2013, सकारी समिति(संशोधन) विधेयक-2013, दंड विधि (संशोधन) विधेयक-2013 तथा कई सालों से लंबित जमाककर्ता हित संरक्षण विधेयक-2005 शामिल है।
मध्य प्रदेश को एक कानून का इंतजार
केंद्र सरकार ने पिछले चार सालों में मध्य प्रदेश से मिले चार विधेयकों में तीन विधेयकों को अंतिम रूप दे दिया है, जबकि इसी साल मिले तीन में से दंड विधि (मप्र संशोधन) विधेयक-2014 लंबित है। जबकि पंजीकरण(मप्र संशोधन) विधेयक-2014 तथा मध्य प्रदेश श्रम कानून (संशोधन) और विविध प्रावधान विधेयक-2015 को अंतिम रूप दिया जा चुका है। इससे पहले राज्य से वर्ष 2013 में भेजे गये दंड विधि (मप्र संशोधन) विधेयक-2013 को पहले ही अंतिम रूप दे दिया गया था। गृह मंत्रालय के अनुसार मध्य प्रदेश से वर्ष 2010 से लंबित विधेयकों मध्य प्रदेश स्टाम्प विधेयक-2009, मध्य प्रदेश आतंकवादी एवं उच्छेदक गतिविधियों तथा संगठित अपराध निवारण विधेयक-2010 तथा मध्य प्रदेश विधेयक कपास बीज, विक्रय का विनियमन तथा विक्रय मूल्य निर्धारण विधेयक को भी अंतिम रूप दिया जा चुका है।
हरियाणा पर मेहरबान रहा केंद्र
पिछले चार साल में केंद्र को हरियाणा से छह विधेयक मिले, जिन्हें अंतिम रूप देकर राज्य में कानून लागू करने का रास्ता साफ कर दिया गया है। इसी साल हरियाणा ने केंद्र को भारतीय दंड संहिता दंड विधि (संशोधन) विधेयक-2014, दंड प्रक्रिया संहिता (संशोधन) विधेयक-2014 तथा हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौसंवर्धन विधेयक-2015 भेजा था, जिन पर केंद्र ने मुहर लगा दी है। जबकि इससे पहले तीन सालों में केंद्र के पाले में आए इंदिरागांधी विश्वविद्यालय मीरपुर(संशोधन) विधेयक, हरियाणा वित्तीय प्रतिष्ठा जमाकर्ता हित संरक्षण विधेयक तथा दि हरियाणाा श्री दुर्गा माता श्राइन विधेयक को भी अंतिम रूप दे दिया गया है।


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