गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

न्यायिक सुधार में आगे बढ़ी सरकार!


लंबित मामलों का निपटान बड़ी चुनौती
नालसा को तर्कसंगत बनाने की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देशभर की अदालतों में अरसे से लंबित पड़े मामलों के निपटान और न्यायिक सुधार की दिशा में की जा रही कवायद को केंद्र सरकार ने तेज कर दिया है। इसी मकसद से सरकार ने राष्ट्रीय कानूनी सेवाएं प्राधिकरण यानि नालसा के कार्यकलापों को तर्कसंगत बनाने का फैसला किया, ताकि संसद में पेश किये गये न्यायायिक संबन्धी विधेयकों से न्यायिक सुधार में इजाफा हो सके।
केन्द्रीय विधि और न्याय मंत्रालय के अनुसार सरकार ने खासकर साधनहीन और असहाय वादकारियों को सुलभ न्याय दिलाने की दिशा में उनके सामने आ रही कठिनाईयों को दूर करने पर कदम आगे बढ़ाया है। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री डीवी सदानंनद गौड़ा ने संसदीय परामर्शदात्री समिति की बैठक में राष्ट्रीय कानूनी सेवाएं प्राधिकरण की समीक्षा के दौरान प्राधिकरण के कार्यकलापों को और ज्यादा प्रभावी रूप से तर्कसंगत बनाने का निर्णय लिया है। समिति में शामिल सांसद सदस्यों ने भी लंबित मामलों के निपटान में हो रहे विलंब पर चिंता व्यक्त की है। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र के दौरान लोकसभा में मध्यस्थता एवं समझौता(संशोधन) विधेयक के अलावा वाणिज्यिक अदालतों, वाणिज्यिक प्रभाग से संबन्धित उच्च न्यायालयों विधेयक में वाणिज्यिक अपीलीय डिवीजन विधेयक पेश कर दिया है। मध्यस्थता एवं समझौता (संशोधन) कानून के लागू होते ही एक करोड़ या इससे अधिक के विशेष मूल्य के लंबित वाणिज्यिक विवाद से संबंधित अपील और अर्जी की सुनवाई उच्च न्यायालय के वाणिज्यिक प्रभाग द्वारा सुने जा सकेंगे। सरकार उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायलय (सेवा व वेतन की शर्तें) संशोधन विधेयक को भी लोकसभा से पारित करा चुकी है। इस विधेयक में बार से आए न्यायधीशों के लिए पेंशन लाभ पाने की योग्यता को अभ्यास सेवा न्यूनतम दस साल करने का प्रावधान है। इसके अलावा कई अन्य अनावश्यक प्रावधानों को हटाया गया है। अधीनस्थ न्यायालयों के बुनियादी ढांचे के विकास हेतु राज्य सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी के बावजूद केन्द्र सरकार ने सभी राज्यों और केन्द्र शसित प्रदेशों को 3528 करोड़ रुपए की धनराशि मुहैया कराई है।
दिल्ली में बढ़ा न्याय क्षेत्र
मंत्रालय के अनुसार इसी तर्ज पर दिल्ली उच्च न्यायालय संशोधन अधिनियम पर लगी राष्ट्रपति की मुहर के बाद 26 अक्टूबर से ही दिल्ली के जिला अदालतों का आर्थिक न्याय क्षेत्र 20 लाख रुपए से बढ़कर दो करोड़ रुपए हो चुका है। मसलन दिल्ली की जिला अदालतों में अब दो करोड़ रुपये के लंबित मामलों का निपटान जल्द हो सकेगा। सरकार इन विधेयकों के अलावा उच्च न्यायलयों (नाम परिवर्तन) विधेयक लाने की भी तैयारी कर रही है, जिसमें संबंधित राज्य के राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायधीशों की सहमति से राष्ट्रपति के माध्यम से संबंधित उच्च न्यायलयों के नाम में बदलाव लाने का प्रावधान किया जा रहा है।
17Dec-2015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें