रविवार, 20 दिसंबर 2015

राग दरबार: गिरगिट की राह पर केजरी

भ्रष्टाचार  पर क्यों पलटे केजरी
चाकू खरबूजे पर गिरे या खरबूजा चाकू पर गिरे..कटता तो खरबूजा ही है वाली कहावत वैसे तो पुरानी है, लेकिन मौजूदा राजनीति में गिरगिट की तरह रंग बदलते आप नेता अरंविद केजरीवाल पर सटीक बैठ रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ ईमानदारी का चोला पहनकर राजनीति में कूदे केजरीवाल ने दिल्ली सरकार की कमान संभालते ही ऐतिहासिक रामलीला मैदान पर कसम खाई थी और अपने विधायकोें को भी दिलवाई थी कि भ्रष्टाचार खत्म करके ही रहेंगे। लेकिन सत्ता संभालते ही उसके कई मंत्री भ्रष्टाचार और आपराधिक आचरण में जेल तक गये, लेकिन केजरीवाल स्तर पर बचाव करने की पहल होती नजर आई। हाल ही में जब सीबीआई ने सचिवालय में जब उनके करीबी नौकरशाह प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के दμतर व अन्य ठिकानों पर छापेमारी करके भ्रष्टाचार को उजागर किया, तो अपने आपको ईमानदार कहने वाले केजरीवाल ने इस कार्यवाही का स्वागत करने के बजाए केंद्र सरकार को निशाने पर लेकर तिलमिलाने की की नीति बनाई। राजनीति के गलियारों में तो चर्चा यही है कि प्रधानमंत्री को कांग्रेस के युवराज की तर्ज पर कायर और मनोरोगी जैसे अपशब्दों का प्रयोग करके केजरीवाल आपा खोते नजर आए, जबकि इसके लिए उन्हें इस मामले में सहयोग करना चाहिए था। केंद्र के साथ तल्खी के बीच कुछ भी हो सीबीआई के शिकंजे में आये इस भ्रष्टाचार मामले में उनके चेहते पर आपराधिक मामले की गाज तो गिरना उसी तरह तय है, जैसे चाकू व खरबूजे की सच्चाई है।
आईआईएमसी की जंग
इंडियन इंस्टीट्यूट आॅफ मास कम्यूनिकेशन (आईआईएमसी) जैसी प्रतिष्ठित संस्थान के लिए उच्चस्तरीय टीम ने केजी सुरेश का नाम सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को भेजा है। सूचना एवं प्रसारण सचिव सुनील अरोड़ा, वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा और स्वपन दास गुप्ता की कमेटी ने विवकानंद फाउंडेशन की वेबसाइट संचालित करने की जिम्मेदारी निभाने वाले वरिष्ठ पत्रकार केजी सुरेश को तीन सदस्यीय पैनल में सबसे उपयुक्त प्रत्याशी माना। हालांकि उम्मीद की जा रही थी कि छत्तीसगढ़ के कुशाभाऊ ठाकरे विवि के कुलपति रह चुके सच्चिदानंद जोशी की वरिष्ठता और इस क्षेत्र में किए गए काम के साथ संघ के साथ उनकी निकटता को देखते हुए बाजी उनके हाथों लगेगी, मगर ऐसा अब संभव नहीं लग रहा। जोशी के साथ पीआईबी में एडीजी अक्षय राउत भी डीजी की रेस में शािमल थे। डीओपीटी से केजी सुरेश के नाम पर मुहर लगने के बाद ही इन अटकलों पर विराम लग जाएगा। केजी सुरेश पीटीआई में बतौर चीफ पॉलिटकल कॉरस्पांडेंट लंबे समय तक कार्यरत रहे।
गोपनीय संसद से बाहर
संसदीय परिसर के बाहर संसदीय कामकाज के लिए कोई दμतर किराए पर ली जाए, इसकी जरूरत आज तक नहंी पड़ी थी। संसद एनेक्सी और उसके बाहर निमार्णाधीन बिल्डिंग के बाद भी राज्यसभा सचिवालय को कामकाज के लिए जगह कम लगी। शायद, इसी कारण से पीटीआई बिल्डिंग में संसदीय कामकाज से जुड़े गोपनीय विभाग को पीटीआई बिल्डिंग में स्थानांतरित कर दिया गया। संसद की पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था के तहत संसदीय दस्तावेज भी गोपनीयता के लिहाज से बेहद सुरक्षित माने जाते रहे हैं, लेकिन बदले हालात में संसदीय परिसर से नए किराए के दμतर में फाइलों, दस्तावेजों की आवाजाही के कारण अब वह बाहर की आवोहवा से कितनी महफूज रह जाएगी, इसकी चिंता नहीं। किराए पर दμतर बाहर क्यों गया? किसने पैरवी की? कितना किराया दिया जा रहा है? इसकी तहकीकात में कुछ खबरनवीस जुटे हैं।
हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है....
हिंदी फिल्म का ये गीत इन दिनों केंद सरकार की एक बेहद विश्वसनीय स्वायत्त संस्था पर बिलकुल सटीक बैठता हुआ नजर आ रहा है। एक ओर सरकार है कि गाहे-बगाहे जहां मौका मिले अपने चुनिंदा कदमों, नीतियों और प्रयासों के बारे में जनता जर्नादन को बताना शुरू कर देती तो है। तो इसके उलट ये संस्था आंकड़ों का ऐसा तर्कवाद प्रस्तुत कर देती है कि सबकी बोलती बंद हो जाती है। तथ्य और उनका ऐसा सटीक वर्णन इस संस्थान द्वारा प्रस्तुत किया जाता है कि जिस पर कोई चाहकर भी शक नहीं कर सकता। यहां बात भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक यानि कैग की हो रही है। सरकार चाहे कुछ भी कहे लेकिन कैग का काम तो ही है सच बोलना। कैग का ताजातरीन खुलासा एचआरडी मंत्रालय की मिड-डे-मील योजना पर किया गया है। इसमें योजना पर कटाक्ष करते हुए इसके क्रियान्वयन के दौरान साफ दिखाई दे रही कमियों का खुलासा किया गया है। इस रिपोर्ट को संसद में भी प्रस्तुत किया जा चुका है। ऐसे में कैग के लिए तो ये पंक्तियां बेहद मुफीद नजर आती हैं कि ‘हम बोलेगा तो बोलोगे कि बोलता है’।
20Dec-2015

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