रविवार, 10 जनवरी 2016

रागदरबार: नीतीश का राष्ट्रधर्म या सियासत

नीतीश नरम और लालू गरम 
देश की राजनीति में सेक्युलर स्यापाबाजों में भी कभी कभी विवादित मुद्दों के समाधान के लिए राष्टÑधर्म जाग ही जाता है। शायद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 36 का सियासी आंकड़ा होते हुए भाी पठानकोट एयरबेस के आतंकी हमले से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अचानक पाकिस्तान दौरे की तरफदारी करके दुनियाभर के देशों के साथ सुर में सुर मिलाया। नीतीश का राष्ट्रधर्म की भूमिका ऐसे समय सामने आई, जब पठानकोट के इस आतंकी हमले को लेकर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस और कुछ तथाकथित सेक्युलर दल पीएम की पाक से बेहतर रिश्ते कायम करने के कदम पर आगबबूला होकर तरह-तरह के सवाल खड़े करके आलोचना करने में लगे हुए है। नीतीश के पीएम के लाहौर दौरे का अच्छा कदम बताते ही महागठबंधन मे उनके प्रमुख सहयोगी राजद प्रमुख लालू यादव का पारा गरम हुआ तो उसके बाद नीतीश ने यह कहकर पिंड छुडाने की सियासत को उजागर किया कि यह उनकी निजी राय है। राजनीति गलियारों में चर्चा है कि भारत-पाक संबन्धों को बेहतर बनाने के लिए अचानक लाहौर जाकर दुनियाभर के देशों का दिल जीतने वाले पीएम नरेन्द्र मोदी ऐसे पहले नेता है, जिन्होंने 56 इंच का सीना को जोखिम उठाते हुए प्रकट किया है। आज तक आजाद भारत में इससे पहले कोई पीएम नहीं कर सका है, जहां तक आतंकी हमले का सवाल है यह इन दोनों रिश्तों में दुश्मनी परिणिती है। ऐसे में राजनीतिकारों का मानना है कि जब देश की सुरक्षा और हितों पर खतरा है तो सभी राजनीतिक दलों को एक सुर में बोलना चाहिए अथवा लोकतांत्रिक ताकतों की एकजुटता प्रकट करने के लिए नीतीश की तरह अपनी भूमिका को प्रकट करना चाहिए, भले ही उनके राष्ट्रधर्म में सियासत ही क्यों न छुपी हो...।
सन्न रह गए मंत्रीजी
एक भारी भरकम मंत्रालय के एक जूनियर मंत्री इन दिनों अपने कार्यालय में बैठकर भविष्य के सुनहरे सपने बुनने में लगे हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश से आने वाले इन मंत्रीजी को यह आभास हो रहा है कि वह 2017 के विधानसभा चुनाव बाद उत्तर प्रदेश की कमान संभालेंगे। इतना ही नही, वह क्षेत्र से आने वाले कार्यकर्त्ताओं से भी यह टोह ले रहे हैं कि यूपी में उनकी पार्टी से मुख्यमंत्री पद की दौड़ में कौन आगे निकल सकता है। कार्यकर्त्ता और क्षेत्रीय लोगों की मुलाकात में यूपी का जिक्र करने के साथ-साथ वो यह भी बताने से नही चूक रहे कि केंद्रीय नेतृत्व उनमें रूचि ले रहा है। अब इतना सुनने के बाद भई,कौन सा कार्यकर्त्ता नेताजी के प्रति मुग्ध न हो जाएगा। लेकिन इसके उलट, एक कार्यकर्त्ता ने मुंह खोल ही दिया। कारण, मंत्रीजी माह भर से उसकी बात सुनने की बजाय अपनी ही कथा सुनाते आ रहे थे। नतीजतन, कार्यकर्त्ता भी बौराए हुआ था और ज्यों ही मंत्रीजी ने फिर से अपनी कथा छेड़ी तो उसने आपने काम के बारे में सवाल दाग दिया। मंत्रीजी का गोल-गोल जवाब सुनकर उससे रहा नही गया और यह कहता हुआ कार्यालय से निकल गया कि, जो मिल गया है वही बहुत है। अगली बारलाालबत्ती तो दूर संसद की दहलीज भी नही पार कर पाएंगे। इतना सुन मंत्रीजी सन्न रह गए।
तू-तू मैं-मैं का दौर शुरू?
हमारे देश में अक्सर किसी बड़े हमले, प्राकृतिक आपदा के बाद सुरक्षा एजेंसियों के बीच तू-तू मैं-मैं का लंबा दौर शुरू हो जाता है। कोई कहता है मैं ज्यादा सक्षम हूं मुझे जिम्मेदारी मिलनी चाहिए थी। मुझे मिलती तो मैं इस अभियान को तुरंत उसके मुक्कमल अंजाम तक बिना किसी लाग लपेट के पहुंचा देता। कोई कहता है कि मैं ज्यादा बेहतर हूं। ये आपसी रस्साकसी शुरू होती है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती। इस बीच जो होना है वो हो जाता है और हम उलझे ही रह जाते हैं। शुरूआत से अंत ये ऐसी उलझन है जिसका फिलहाल किसी के पास कोई सटीक जवाब नहीं है। लेकिन फिर भी हम उलझे हुए हैं और तू-तू मैं-मैं है कि थमने का नाम ही नहीं लेती। कौन जाने कब थमेगी ये तू-तू मैं-मैं।
10Jan-2016

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