
सुप्रीम
कोर्ट भी कैदियों की भीड़ पर कर चुका है टिप्पणी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र
सरकार के देश की जेलों के आधुनिकीकरण और कैदियों की क्षमता से ज्यादा भीड़ को कम
करने के लिए चलाई जा रही योजनाओं की सुस्त चाल के कारण अपेक्षाकृत सुधार नहीं हो
पा रहा है। देशभर की जेलों में क्षमता से भी ज्यादा कैदियों पर सुप्रीम कोर्ट भी
टिप्पणी कर चुका है, लेकिन अभी भी भारत की जेलों में करीब 114 फीसदी ज्यादा कैदी
बंद हैं।
केंद्रीय
गृहमंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार लगातार जेलों के सुधार और आधुनिकीकरण के अलावा
अदालतों में लंबित मामलों के निपटारे की दिशा में फास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना और
जल्द न्याय मुहैया कराने के मकसद से कानूनी सुधार हेतु राष्ट्रीय मिशन भी शुरू
किया है। मंत्रालय का तर्क है कि संविधान के तहत जेल राज्य के अधिकार क्षेत्र में
है और जेल प्रशासन और प्रबंधन की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। केंद्र सरकार
राज्यों से आने वाले प्रस्तावों को आगे बढ़ाने और आर्थिक राशि आवंटित करता रहा है।
मंत्रालय के अनुसर पिछले पांच साल में छत्तीसगढ़ समेत कुल आठ राज्यों को जेलों के
आधुनिकीकरण के लिए 609 करोड़ की धनराशि आवंटित की जा चुकी है, लेकिन जेल सुधार की
दिशा में राज्य सरकारों की गंभीरता जरूरी है।
जेलों में 114 फीसदी ज्यादा कैदी
केंद्रीय
गृह मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी के बावजूद देश की जेलों में बंद कैदियों
के ताजा आंकड़ो की उपलब्धता पर असमर्थता जाहिर की है और एनसीआरबी के आंकड़ो का हवाला
देते हुए दिसंबर 2016 तक के आंकड़े जारी किये हैं। इन आंकड़ो के मुताबिक देशभर की
1412 जेलों में 3,80,876 कैदियों की
क्षमता के विपरीत 4.33,003 कैदी यानि 113.7 फीसदी ज्यादा बंद हैं। जबकि एक साल
पहले 1401 जेलों में 1401 जेलों में 3,66,782 कैदियों की क्षमता के मुकाबले को एक साथ
बंद करने की है। वहीं इन जेलों में 4,19,623 यानि 114.4 फीसदी कैदी बंद थे।
मंत्रालय के अनुसार पूरे देश की 149 जेलों के हालात सबसे ज्यादा बदतर हैं।
छत्तीसगढ़ में सुधरे हालात
गृहमंत्रालय
के आंकड़ों पर गौर करें तो दिसंबर 2016 की स्थिति के अनुसार छत्तीसगढ़ की 30 जेलों
में 9813 कैदियों की क्षमता के विपरीत 18631 यानि करीब 190 फीसदी ज्यादा कैदी बंद
हैं, जिनमें 17649 पुरुष और 982 महिला कैदी शामिल है। जबकि ठीक एक साल पहले की
स्थिति के अनुसार छत्तीसगढ़ की 28 जेलों में 7552 कैदियों की क्षमता की तुलना में
17662 यानि करीब 234 फीसदी ज्यादा कैदी बंद थे, जिसमें दो जेलों के विस्तार के बाद
हालात में कुछ सुधार देखा गया है। जबकि मध्य प्रदेश की 123 जेलों में 27677 की
क्षमता के विपरीत 1309 महिलाओं समेत 37,649 यानि 136 फीसदी कैदी बंद हैं। इससे एक
साल पहले मध्य प्रदेश इन जेलों की क्षमता 25857 थी, जिसके विपरीत 38458 यानि 139.8
फीसदी ज्यादा कैदी थे। इसी प्रकार हरियाणा राज्य की 19 जेलों में दिसंबर 2015 तक
15245 की क्षमता की तुलना में 18269 यानि 109 फीसदी से ज्यादा कैदी बंद थे। इसके
एक साल बाद इन जेलों के 16596 की क्षमता विस्तार के बावजूद 17654 यानि करीब 98
फीसदी ज्यादा हैं। हालांकि 2016 के आंकड़ों के मुताबिक दादरा ए वं नगर अवेली की 60
कैदियों की क्षमता वाली मात्र एक जेल में एक महिला समेत 120 यानि 200 फीसदी ज्यादा
कैदी हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की
7418 कैदी क्षमता वाली एक दर्जन जेलों में 14058 यानि 179.8 फीसदी ज्यादा कैदी बंद
हैं, जिनका प्रतिशत एक साल पहले 226 फीसदी था। मसलन देश की कोई ऐसी जेल नहीं है,
जहां क्षमता से ज्यादा कैदियों की संख्या न हो।
क्या थी सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
एक
पखवाड़ा पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने देश के विभिन्न राज्यों में क्षमता से अधिक
कैदियों और उनके मानवाधिकारों के प्रति बरती जा रही उदासीनता पर नाराजगी जाहिर की
थी। कोर्ट ने राज्यों को फटकार लगाते हुए यहां तक कहा था कि यदि कैदियों की मानवाधिकार
का रक्षा नहीं की जा सकती तो उन्हें जेलों में जानवरों की तरह कैद करने से बेहतर
होगा उन्हें छोड़ दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से जेलों की हालत एवं सुधार
की योजनाओं की जानकारियां भी तलब की हैं। सूत्रों के मुताबिक जेल में कैदियों की संख्या
तय क्षमता से अधिक होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट गत 6 मई 2016 से ही राज्यों से
भीड़ को कम करने के लिए योजना के बारे में पूछ रहा है, लेकिन किसी भी राज्य ने इस
मामले में गंभीरता नहीं दिखाई।
15Apr-2018
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