रविवार, 15 अप्रैल 2018

राग दरबारर: सियासी दलों में बढ़ी अंबेडकर भक्ति!

सियासत बनाम अंबेडकर
देश में शायद पहली बार दलितों को साधने के लिए संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर की जंयती को सियासी प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा जा रहा है। मसलन भाजपा-कांग्रेस जैसे बड़े दलों से लेकर आम आदमी पार्टी भी इस मौके पर डा. भीमराव अंबेडकर को नमन करती नजर आई और दलितों की हमदर्द बनने की सियासत में केंद्र व राज्य सरकारें अंबेडकर की जयंती पर योजनाएं भी शुरू कर रही है। कहते हैं कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में सियासत में दोस्ती व दुश्मनी का कोई मोल नहीं है, राजनीतिक दलों को केवल वोटबैंक साधने की ज्यादा फिक्र होती है, भले ही उसके लिए किसी भी रणनीति का सहारा ही क्यों न लेना पड़े। सियासी दलों में दबे-कुचलों,गरीबों, दलितों, श्रमिकों और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करने वाले डा. अंबेडकर के विचारों को लेकर विशेषज्ञों का मानना है कि यदि देश के राजनीतिक दल वास्तव में अंबेडकर के सिद्धांतों का समर्थन करते हैं तो संविधान को लेकर प्रतिस्पर्धा की सियासत करने के दूरी बनाए और देश और समाज के विकास में बेहतर योजनाओं का समर्थन करें और डा. अंबेडकर के नाम पर सियासत न करें। सियासी गलियारों में तो चर्चा है कि डा. अंबेडकर की 127वीं जयंती को राजनीतिक दलों द्वारा सोशल मीडिया और सार्वजनिक रूप से ज्यादा महत्व देने के पीछे आगामी लोकसभा चुनाव में दलितों को साधने का प्रयास है और इसके लिए तमाम सियासी दल अपनी रणनीति का तानाबाना बुनने में जुटे हुए हैं।
एक और निजता का सवाल
भारत में आधार और अन्य कई मामलों में निजता के सवाल को लेकर सियासत गरमा चुकी है, लेकिन एक बार फिर से निजता को लेकर ताजा सवाल खड़ा होने को तैयार है। फेक न्यूज के जारी आदेश वापस लेकर सुर्खियों में आई केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के सूचना एवं प्रसारण की नजर अब घरो में चलने वाले टीवी पर होगी? चर्चा है कि सरकार की नजर घरों में आम जनता के टीवी पर होगी, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कौन किस चैनल पर क्या देख रहा है। आईटी मामलों के जानकारों की माने तो सरकार यह पता लगाना चाहती है कि कौन क्या क्या देखना चाहता हैं? इसके लिए डिजिटल सैटेलाइट सर्विस प्रोवाइडर्स की तरफ से इस्तेमाल किए जाने वाले नए सेट टॉप बॉक्स में एक चिप लगाने का प्रस्ताव दिया गया है। इससे पहले भी मंत्रालय को पीएम के हस्तक्षेप से फेक न्यूज पर सख्त कार्यवाही करने का आदेश वापस लेना पड़ा है, जिसके बाद मंत्रालय के न्यूज पोर्टल पर शिकंजा कसने के लिए एक पैनल का गठन करने का निर्णय पर भी एक केंद्रीय मंत्री सवाल खड़े कर चुके हैं। सियासी गलियारों में चर्चा है कि सेट बॉक्स में ऐसी चिप लगाने पर सियासत गरमा सकती है और सरकार पर निजता को भंग करने का सवाल खड़ा किया जा सकता है। ऐसे आदेश को लेकर विशेषज्ञ भी मानते हैं कि सेट बॉक्स प्रणाली में जनता चुने हुए चैनल ही देखेगी और सरकार की चौकसी ने फिर वही सवाल सामने आएगा निजता..निजता!
‘नीम-हकीम खतरा-ए-जान’
एक पुरानी कहावत ‘नीम हकीम खतरा-ए-जान’ जैसी कहावत पहले से प्रचलित है, जो आजकल कुछ ज्यादा ही चरितार्थ होती दिखाई दे रही है। यह कहावत को दो दिन पहले ही उस समय सुर्खियों में आई, जब सुप्रीम कोर्ट ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में नीम-हकीमों के कारोबार पर चिंता जताते हुए कहा कि वे लोगों के साथ खिलवाड़ ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि आयुर्वेद का नाम लेकर हिंदुस्तान की इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति को भी धुमिल करने का काम कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने यहां तक टिप्पणी की है कि नीम-हकीमो की दवाईयां से समाज के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र के जानकार सुप्रीम कोर्ट की चिंता का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि देशभर में भारी तादाद में अयोग्य, अप्रशिक्षित नीम-हकीम संपूर्ण समाज के लिए भारी खतरा पैदा कर रहे हैं व लोगों की जान के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। लोगों के स्वास्थ्य से खेल रहे ऐसे नीम हकीमों ने सड़कों के किनारे लगे तम्बुओं से लेकर, अख़बारों के इश्तेहारों तक झोलाछाप नीम-हकीमों ने अपना डेरा जमा रखा है, इन छलबलियों द्वारा जहां अपने पेशे से खिलवाड़ करने और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बदनाम करने से वहीं पुरानी कहावत चरितार्थ करने का प्रयास किया जा रहा है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने शिकंजा करने पर जोर दिया।
और अंत में
मोदी सरकार की खेलों को प्रोत्साहन देने के लिए खिलाड़ियों की तैयारी का नतीजा आस्ट्रेलिया के गोल्डकोस्ट में हो रहे 21वें राष्ट्रमंडल खेलों में नजर आ रहा है, जहां भारतीय खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए अलग-अलग खेल स्पर्धाओं में पदक तालिका में तीसरा स्थान बनाया हुआ है और भारत 23 स्वर्ण पदक समेत पदकों का अर्द्धशतक पार कर चुका है।
15Apr-2018

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