सोमवार, 30 नवंबर 2015

राग दरबार: संविधान पर हक की राजनीति

संसद में संविधान पर माथापच्‍ची
लोकतं में संविधान पर देश या जनता का हक या राजनीतिक दलों का..। शायद इस मकसद से तो संसद में संविधान निर्माता डा. भीमराव अम्बेडकर की 125वीं जन्मशती पर चर्चा की पहल नहीं की गई होगी। आज की राजनीति में असहिष्णुता और धर्मनिरपेक्षता पर तेज होती बहस के बीच संविधान के प्रति प्रतिबद्धतता को जाहिर करने की जरूरत ज्यादा है। मोदी सरकार ने देश में पहली बार 26 नवंबर को ‘संविधान दिवस’ के रूप में मनाकर संविधान निर्माताओं को सम्मान देने की पहल की है तो पिछले 65 साल से इस मौके को गंवा चुके राजनीतिक दलों को टीस तो होगी ही। तभी तो संविधान पर कांग्रेस का हक जमाने जैसी बात कांग्रेस ने उठाई और संविधान निर्मार्ताओं को सम्मान देने वाली सत्ताधारी पार्टी पर न जाने कैसे कटाक्ष किये। कांग्रेस में तो संविधान में आस्था की दुहाई देने वाली कांग्रेस ने प. नेहरू को अनदेखा करने का भी आरोप लगाया। ऐसे तो संविधान मसौदा समिति में 26 से भी ज्यादा नेता शामिल थे, एक-एक करके सभी इसी बात को कहकर संविधान पर अपना हक जमाने का प्रयास करेंगे। मसलन यह कि देश के लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए संविधान पर राजनीति करने वालों को इस बात का इल्म नहीं है कि संविधान पूरे देश और जनता को लोकतंत्र में अपने अधिकारों के लिए बनाया गया है। राजनीतिक गलियारों में संसद में संविधान को लेकर हो रही चर्चा पर सवाल होते नजर आ रहे हैं कि देश में संविधान को भी राजनीति का हिस्सा बनाने का प्रयास क्योें हो रहा है? जबकि संविधान का निर्माण करने वाले महापुरुषों ने ऐसी कल्पना भी नहीं की होगी। खैर जब संसद में संविधान की प्रतिबद्धता पर चर्चा हो रही है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि दो दिन की इस बहस से सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों को यह सद्बुद्धि मिले कि संसद बहस और विधायी कार्यों का मंच है और राजनीति खुले मैदान की चीज है।
यूं ढीली पड़ी ‘पर्रिकर की चाल’
26 नवंबर को नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित एनडीए सरकार ने अपने कार्यकाल के 18 महीने पूरे कर लिए। इस उपलक्ष्य में सरकार के विभिन्न विभागों को इस दौरान जो उपलब्धियां रही उन्हें सार्वजनिक करने की योजना बनाई गई। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आई एंड बी)की ओर से सभी केंद्रीय मंत्रालयों को बृहस्पतिवार सुबह बीते 18 महीने की उपलब्धियों के बारे में विस्तार से जानकारी देने को फरमान सुनाया गया। इस काम को पूरा करने के लिए सुबह 11 बजे से लेकर शाम 4 बजे तक का समय दिया गया। आदेश के बाद सारे विभागों के अधिकारी इस काम में जुट गए। लेकिन इसमें एक मंत्रालय ऐसा भी दिखा जहां इस टास्क को लेकर ढीला-ढाला रवैया नजर आया। ये था ‘रक्षा मंत्रालय’ जहां अधिकारियों ने इस कार्य के लिए ठेठ सरकारी बाबुआें वाली अदा दिखाई और 11 से 4 बजे की आई एंड बी मंत्रालय की डेडलाइन के क्र ॉस हो जाने के बाद भी काम पूरा नहीं किया। समयसीमा पूरी होने के बाद जब मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी इस बाबत जवाब तलब करने लगे तब उपलब्धियां तैयार करने वालों ने क हा कि अभी दो घंटे का वक्त और लगेगा। इतना आसान काम नहीं है 18 महीनों का पूरा ब्यौरा एक साथ देना। इसे देखकर यही कहेंगे कि आई एंड बी के आदेश पर ढीली पड़ गई पर्रिकर की चाल।
चिट्ठी ने उड़ाई नींद
पीएमओ से आए एक पत्र ने इन दिनों रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधिकारियों की नींद हराम कर दी है। अधिकारी ये नही समझ पा रहे कि वह पत्र का क्या जवाब दें। दरअसल, पत्र में मंत्रालय से पूछा गया है कि उसने अब तक कौन-कौन से महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं और उन पर कितना अमल हुआहै। साथ ही जनता के कल्याण से जुड़े फैसलों को कितना व किस स्तर पर प्रचारित प्रसारित किया गया है। अब अधिकारी इस बात को लेकर माथापच्ची में जुटे हैं कि वह क्या जवाब दें। क्योंकि, जो फैसले हुए हैं उनको अभी अमली जामा पहनाने का काम भी शुरु नही हो पाया है। जबकि जिन फैसलों पर मंत्रालय ने काम शुरु भी किया है तो व्यावहारिक अड़चनों के कारण वह ठप्प पड़ गए हैं। ऐसे में क्या जवाब दिया जाए।
29Nov-2015

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