रविवार, 15 नवंबर 2015

राग दरबार: सियासी परीक्षा का युवराज

कांग्रेस में ऊर्जा का संचार
बिहार विधानसभा के नतीजो की पृष्ठभूमि भले ही कुछ भी रही हो और स्यापाबाज सेक्युलरिस्ट इसे मोदी मैजिक पर भले ही भारी मानकर चल रहे हों, लेकिन सूबे में नीतीश की सरकार बनने के बावजूद कांगे्रस में ऊर्जा का संचार भी हुआ है। ऐसा खुद कांग्रेस उपाध्यक्ष यानि कांग्रेस युवराज राहुल गांधी खुद महसूस करते नजर आ रहे हैं। माने भी क्यों न शायद पहली बार युवराज की मुहिम कांग्रेस में ऊर्जा लेकर आई है अन्यथा किसानों और गरीबों के घरो की खाक छानने के बावजूद 2012 के यूपी विधानसभा चुनाव या फिर 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस युवराज सियासी परीक्षा में फेल ही होते नजर आए है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा तो यही है कि कांग्रेस की सियासी परीक्षा में युवराज अच्छे अंकों से पहली बार बिहार चुनाव में पास हुए हैं, तो सूबे की सरकार में भी कांग्रेस की हिस्सेदारी तो बनती ही है। ऐसा स्वयं राहुल गांधी मीडियाकर्मियों के साथ अनोपचारिक बातचीत के दौरान भी इच्छा जताते नजर आए। सियासी परीक्षा में सफलता का गुनगान करने में कांग्रेस युवराज शायद पहली बार अपने आवास पर मीडियाकर्मियों को बुलाकर अपने मन की बात करने के लिए भी उतावले थे और उन्होंने मन की बात की भी। बकौल राहुल गांधी मानते हैं कि कांग्रेस की यही विचारधारा पार्टी में ऊर्जा का संचार करके आगे बढ़ेगी। शायद इसीलिए अब युवराज पार्टी की कमान थामने को भी तैयार नजर आ रहे हैं।
चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ
रक्षा खरीदी में बड़ा सुधार करने के बाद रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने देश की मिलिट्री में रिफॉर्म लाने में जुट गए हैं। उनकी चली तो जल्द ही चीफ आॅफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस)की नियुक्ति होगी। तीनों सेनाओं के चीफ के बाद सीडीएस चौथे फोर-स्टार वाले अधिकारी होंगे। ज्यादा उम्मीद है कि देश का पहला सीडीएस आर्मी से होगा। तय योजना के मुताबिक तीनों सेनाओं के नंबर टू माने जाने वाले थ्री-स्टार्स रक्षा अधिकारियों को वाइस चीफ आॅफ डिफेंसस्टाफ का पद मिलेगा। वे सीडीएस को खरीदी, संयुक्त योजना और प्रशिक्षण जैसी जिम्मेदारियों के निर्वहन में मदद करेंगे। बढ़ती वैश्विक चुनौतियों के मद्देजनर साइबर कमांड और स्पेस कमांड केंद्र सरकार की प्राथमिकता है। तीनों सेना प्रमुखों के साथ मिलकर सीडीएस इन बेहद महत्वपूर्ण नए कमांड्स को न सिर्फ दिशा देंगे बल्कि उसके उत्तरोतर विकास के लिए भी समय-समय पर रक्षामंत्री को योजनाओं से अवगत कराएंगे। पर्रिकर सफल हुए तो रक्षा सुधार की दिशा में इसे अबतक का सबसे ठोस कदम माना जाएगा।
मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त
बिहार विधान सभा चुनाव में एनडीए को मिली करारी शिकस्त से भले ही भाजपा व उसके घटक दल के बड़े नेता तनिक निराश हो, पर कुछ नेता काफी सुकून महसूस कर रहे हैं। ये वो नेता हैं जिनको चुनाव में किसी तरह की भूमिका नही मिली थी अथवा अगर कोई छोटा मोटा दायित्व मिला था। जबकि ये खुद को बड़ी भूमिका में देखना चाहते थे। जब से नतीजे आएं हैं तब से ये नेता ये जानने में जुट गए हैं कि पार्टी नेतृत्व क्या कदम उठा रहा है। एनडीए के एक सहयोगी दल के एक सांसद तो बस इस फिक्र में दूबले ुहए जा रहे हैं कि उनकी पार्टी के मुखिया जो खुद मंत्री हैं वे दूसरे एक नेता पर कार्रवाई कर रहे हैं कि नही। उनका तर्क है कि पार्टी नई है और अभी से अनुशासन सख्त रखना होगा। जबकि उनकी पार्टी के मुखिया इस बारे में कोई जल्दी नही दिखाना चाहते। ऐसे में ये तो वही बात हुई कि, मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त।
ऐसे भागे लंगूर कि फिर न लौटे
बंदरों के उत्पात को रोकने का रामबाण तरीका है कि उनके आस-पास लंगूरों की फौज की तैनाती कर दी जाए। लेकिन ये क्या जिसे रक्षा के लिए तैनात किया गया था वो ऐसे भागे कि फिर न लौटे। बात कुछ साल पहले की है जब राजधानी के साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय के कार्यालय में बंदरों के आतंक पर रोक लगाने के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी ने लंगूरों की तैनाती की थी। कुछ दिन तक तो सबकुछ ठीकठाक रहा। मंत्रालय के कर्मचारियों से लेकर बाहरी आंगतुकों ने मंत्रालय आते-जाते वक्त राहत की सांस ली। लेकिन फिर एक दिन अचानक माहौल गरमा गया और बंदर फिर अपनी पुरानी फॉर्म में वापस लौट आए। इसके पीछे कारण था वन्यजीवों के अधिकारों की रक्षा करने वाली मेनका गांधी का बंदरों को समर्थन मिलना। मेनका ने पत्र लिखकर तत्कालीन रक्षा मंत्री से लंगूरों को तुरंत आजाद करने को कहा । साथ ही उन्होंने कहा बंदरों के आतंक से मुक्ति पाने के लिए लंगूरों को बांधकर रखना उचित नहीं है। उनके पत्र के बाद हुआ भी कुछ ऐसा ही कि लंगूर एक बार साउथ ब्लॉक के गलियारों से गए कि फिर आजतक वापस नहीं लौटे हैं।
15Nov-2015

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