रविवार, 22 नवंबर 2015

राग दरबार- नीतीश को लालू का सहारा

नीतीश का रिमोर्ट लालू
देश की राजनीति वाकई अजीब है..बिहार में नीतीश कुमार ने भले ही मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली हो, लेकिन राजनीतिक परिस्थितियां ठीक उसी तर्ज पर है, जिस प्रकार यूपीए की केंद्र सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन के कार्यकाल में थी। यानि बिना कांग्रेस प्रमुख के देश के यूपीए सरकार के प्रधानमंत्री एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा सकते थे। मसलन बिहार में सबसे बड़े दल के रूप में जनमत हासिल करने के बावजूद राजद ने महागठबंधन में किये गये एक कमीटमेंट के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नीतीश कुमार को जरूर बैठा दिया है, लेकिन मंत्रिमंडल में वर्चस्व राजद का नजर आ रहा है, जिसमें लालू के दोनों बेटों को महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे गये हैं। राजनीति के जानकारों की माने तो नीतीश सरकार का रिमोर्ट कंट्रोल राजद प्रमुख लालू के हाथों में रहना तय है। ऐसे में रजनीति के गलियारों में चर्चा यह भी है कि लालू यादव आखिर कब तक जहर का घूंट पीते रहेंगे, कहीं भविष्य में अपनी फितरत में पलटी मारकर लालू अपने बेटे को बिहार का ताज न सौंप दे, राजनीतिकारों ने ऐसी आशंका जाहिर ही नहीं कि बल्कि ऐसी संभावनाओं से इंकार तक नहीं किया है।
अनदाता बनाम भिखारी
प्रसिद्ध गीतकार राजेंद्र राजन का गीत स्मरण करें तो याद आएगा ‘शिकारी मेरे गांव में.....भिखारी मेरे गांव में। मसलन यूपी में ग्राम प्रधानी के चुनाव में ऐसी ही कहावतें चरितार्थ हो रही हैं। दरअसल लोकसभा और विधानसभा से भी ज्यादा सियासत गांव में विकराल रूप लेते देखी गई हैं। राजनीति करने का चस्का ही अनदाता और भिखारी की कहावत में परिवर्तित कर देता है। कहते हैं कि यदि अनदाता बनना है तो चुपचाप अपने दरवाजे पर बैठ कर आनंद लीजिए। सवाल है कि दाता बनना पसंद करेंगे या भिखारी? यदि दाता बना है तो सुबह से शाम तक एक भिखारी जरूर आएगा। याचना करेगा और उसके जाते ही दूसरा घेर लेगा। सबको भरोसा दीजिए और किसी का भिक्षा पात्र मत तोड़िए। बाकी सब कीजिए अपनी मर्जी का। इसके विपरीत यदि आपको भिखारी बनना है तो फिर आंख मंूद कर प्रधानी का चुनाव लड़ जाइए। सुबह से शाम तक दरवाजे-दरवाजे जाकर वोट की भीख मांगिए। तय आपको करना है कि दाता की भूमिका पसंद है या भिखारी की? राजनीति गलियारे में ऐसे तर्क इसलिए दिये जा रहे है कि ग्राम प्रधानी के चुनाव में खबरें डरावनी आ रहीं थी। इसका कारण गांव-गांव गुटबंदी स्थायी रंजिश का रूप लेती जा रही है। प्रधानी की पुरानी रंजिशे अभी खत्म नहीं हुईं कि नयी-नयी रंजिशे आकार लेने लगी हैं।
निमंत्रण के बाद भोज रद्द
अगर कोई निमंत्रण देकर ऐन वक्त पर भोज रद्द कर दे तो कैसा लगेगा? ऐसा ही कुछ रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय द्वारा पत्रकारों के साथ किया जा रहा है। मंत्रालय ने हाल ही में ईमेल और मैसेज के जरिए पत्रकारों को एक कार्यक्रम की सूचना दी। किंतु, कार्यक्रम का तय वक्त नजदीक आते ही मंत्रालय ने एक दूसरा मैसेज भेज कर पत्रकारों को इस बात की जानकारी दी कि अपरिहार्य कारणों से यह कार्यक्रम तय समय पर न होगा। इसके लिए जल्द ही नई तारीख और समय तय होगा। इसके पहले भी मंत्रालय द्वारा कई दफे अलग-अलग कार्यक्रम की सूचना देकर ऐन मौके पर उसे रद्द किया जा चुका है। अगर यही हाल रहा तो कार्यक्रम होने पर भी पत्रकारों का टोटा पड़ सकता है।
22Nov-2015

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