सुप्रीम कोर्ट ने भी किया केंद्र का जवाब तलब
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भूमि
अधिग्रहण विधेयक में संशोधनों के चौतरफा विरोधी सुरों से घिरी मोदी सरकार
की मुश्किलों में अब सुप्रीम कोर्ट के नोटिस ने इजाफा कर दिया है। ऐसे में
सरकार के लिए संसद के मानसून सत्र में इस विधेयक को पारित करना आसान नहीं
है और इसके अटकने की संभावनाएं बढ़ गई हैं। नीति आयोग की संचालन परिषद की
बैठक का कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बहिष्कार और भूमि बिल
की जांच पड़ताल में जुटी संसद की संयुक्त समिति में विपक्षी दलों के
सदस्यों के विरोध से सरकार पहले ही असमंजस की स्थिति में फंसी हुई है।
सुप्रीम
कोर्ट द्वारा तीसरी बार लाए गये भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ एक
याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने के
लिए नोटिस जारी कर दिया है। जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में
बुधवार को बुलाई गई नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में भूमि अधिग्रहण
विधेयक पर चर्चा के नाम से बिदकी कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों
की गैरहाजिरी सरकार की मुश्किलों से कम नहीं हैं। मोदी सरकार के लिए 21
जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक-2013
में किये गये संशोधनों को मंजूरी दिलाना पहली प्राथमिकता इसलिए भी है कि अब
सरकार भूमि विधेयक पर अध्यादेश भी नहीं ला सकती है और इसी राजनीति का
फायदा कांग्रेस व इस बिल का विरोध करने वाले दल उठाने की तैयारी में हैं।
वहीं भूमि अर्जन और पुनर्वास (संशोधन) विधेयक जांच-पड़ताल कर रही संयुक्त
संसदीय समिति में शामिल ऐसे दलों के सदस्य भी इस मुद्दे पर बिफरे हुए हैं
और इन संशोधनों को खारिज करने की सिफारिश पर बहुमत बनाने का प्रयास कर रहे
हैं। जेपीसी को भूमि अधिग्रहण पर सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट 28 जुलाई
तक संसद में पेश करनी है, लेकिन समिति में विपक्षी दलो के तेवरों से हो रही
देरी से समिति कार्यकाल बढ़ाने की मांग कर रही है। मसलन कांग्रेस और अन्य
दलों की लामबंदी भी 13 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में भूमि बिल पर
ब्रेक लगाने की रणनीति लगभग तय कर चुकी है। यही नहीं जदयू-राजद भी कांग्रेस
के सुर में सुरमिलाकर तय कर चुके हैं कि किसानों की जमीन छीनने
वाले इस विधेयक का संसद में पुरजोर विरोध ही नहीं करेंगे, बल्कि बिहार के
आगामी विधानसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाया जाएगा।
सरकार का अंतिम विकल्प
मोदी
सरकार की प्राथमिकता में विकास को गति देने के लिए भूमि अधिग्रहण विधेयक
यदि मानसून सत्र में पारित नहीं होता तो उसके सामने एक अंतिम विकल्प
संयुक्त सत्र बुलाकर इस विधेयक को अंजाम तक पहुंचाने का है। हालांकि सरकार
ऐसी स्थिति से बचने के लिए भी रणनीति तैयार करने में जुटी है, जिसमें संकेत
मिल रहे हैं कि कुछ संशोधनों पर सरकार वापसी भी कर सकती है, ताकि भूमि
अधिग्रहण विधेयक को मानसून सत्र में ही पारित करा लिया जाए। भाजपा के सूत्र
भी बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस मुद्दे पर सरकार की नरमी का
संकेत दे रहे हैं।
17July-2015
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