राग दरबार
सरकार
ने सामाजिक, आर्थिक एवं जातिगत जनगणना के आंकड़े क्या जारी कर दिये, शायद
विपक्षी दलों की आफत मोल ले ली है। मसलन ऐसी सियासी नौबत पैदा कर दी जिसमें
अब एक नया तमाशा झेलने को तैयार रहना होगा। मसलन जाति के ठेकेदार
अपनी-अपनी जाति के लोगों से अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने की अपील करेंगे।
अभी तो गाहे-बगाहे कुछ धुर कट्टरपंथियों द्वारा मुस्लिमों की बढ़ती आबादी का
हव्वा दिखा कर हिंदुओं से चार या पांच बच्चे पैदा करने की अपील सुनने को
मिल रही थी। राजनीतिकार तो यही मानकर चल रहे हैं कि यदि जातियों की राजनीति
हावी होने लगी तो आने वाले दिनों में ब्राह्मण, क्षत्रियं, वैश्य जैसी
अगड़ी जातियों में भी ज्यादा बच्चे पैदा करने का दबाव बढ़ेगा। देश की
सामाजिक-आर्थिक जनगणना के जातिगत आंकड़े जारी होने पर तो देश में ऐसा माहौल
की संभावनाएं नजर आ रही है। सरकार भी क्या करें जब इस माहौल को टालने का
प्रयास किया तो सेक्युलर होने का चोला पहले लालू यादव समेत सामाजिक न्याय
के कथित पैरोकार इसके लिए सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के मूड़ में आ गये।
चर्चा यही है कि जाति और उपजाति, वंश व गौत्र के वर्गीकरण पर यदि आंकड़े
जारी हुए तो सवर्णों को आबादी के लिहाज से अपना वजूद खतरे में लगने लगेगा?
और फिर तो जाति के ठेकेदार सक्रियता बढ़ेगी ही यानि जाति की संख्या बढ़ाने की
होड़ मचने से इंकार भी नहीं किया जा सकता। सामाजिक विशेषज्ञ भी यही कहने को
मजबूर हैं कि देश का कितना दुर्भाग्य कि राजनीति की डगर कितनी गंदगी की
तरफ है और यह तो भारत है जहां कुछ भी हो सकता है, भले ही वह जाति की
ठेकदारी ही क्यों न हो?
नीतीश-केजरीवाल का सियासी याराना
बिहार
के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल में आजकल खूब छन रही है।
राजनीति में दोस्ती सियासी नफा-नुकसान देखकर होती है और इन दोनों की
जुगलबंदी के पीछे भी ऐसे ही कयास लगाये जाते हैं। अब कुछ रोज पहले जब नीतीश
बाबू दिल्ली सचिवालय में मुख्यमंत्री केजरीवाल से मुलाकात के लिए पहुंचे
तो बातें बनने लगी। चर्चा रही कि बिहार में विधानसभा चुनाव की जंग नीतीश के
लिए ‘वाटर-लू’ साबित हो सकती है लिहाजा ‘सुशासन बाबू’ चाहते हैं कि
केजरीवाल उनकी पार्टी जदयू के पक्ष में प्रचार के लिए आयें। बात में दम है।
अगर ऐसा हुआ तो चुनावी फिजा में रंगत आ जाएगी। एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी
की गर्जना तो दूसरी तरफ अरविंद केजरीवाल के व्यंग्य बाण मुकाबले को कांटे
का बना सकते हैं। शायद नीतीश कुमार ने भी ऐसा ही कुछ सोचा हो। पर इस राह
में एक बड़ी बाधा बने हुए हैं लालू यादव। चारा घोटाला लालू का ट्रेड मार्क
बन चुका है। आम आदमी पार्टी के कुछ विचारकों का मानना है कि राजद सुप्रीमो
लालू यादव पर भ्रष्टाचार का ठप्पा लगा हुआ है। लालू-नीतीश मिलकर चुनाव लड़
रहे हैं, ऐसे में केजरीवाल ने अगर प्रचार किया तो भाजपा नेता इसे सीधे-सीधे
लालू से जोड़कर हंगामा करेंगे। कहा जा रहा है कि इसी वजह से अरविंद
केजरीवाल बिहार चुनाव से दूरी बनाने में ही भलाई समझ रहे हैं।
छोटे मंत्री..सुभान अल्ला
एक
खास तबके की बेहतरी का जिम्मा उठा रही एक मंत्री और उनके जूनियर मंत्री के
रिश्ते के चलते मंत्रालय का कामकाज तो पहले से ही ठप्प है। दोनों के तल्ख
रिश्ते चर्चा का विषय बन ही रहे थे, पर अब स्टॉफ को लेकर भी अब चर्चा आम
है। मंत्रालय के अधिकारियों के बीच भी दोनों मंत्रियों के निजी स्टॉफ की
कार्यशैली को लेकर कानाफूसी हो रही है। ऐसे ही एक अधिकारी ने अपने दूसरे
समकक्ष से चुटकी लेते हुए कहा कि आप का कामकाज तो बड़े मंत्री के मीडिया
सलाहकार की गति से चल रहा। फिर क्या, दूसरे ने पलट कर कहा कि कोई बात
नही..छोटे मंत्री की तरह आप कुछ ज्यादा ही सुर्खियों में रहने के भूखे है..
लिहाजा... मुझे कोई दिलचस्पी नहीं। ..अब ये तो वही बात हुई कि..बड़े मियां
तो बड़ा मिया..छोटे मियां ..सुभानअल्ला।
सुर्खियों में ठाकुर साहब
सुर्खियों
में रहना भला किसे अच्छा नहीं लगता..। सपा प्रमुख यूपी के वरिष्ठ आईपीएस
अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने यह बात साफगोई से स्वीकार की हो। उन्होंने यह भी
माना कि उनकी जुबान लंबी है और गलत काम देखकर खुद को बोलने से नहीं रोक
पाते। तभी तो यूपी के मुखिया के बाप से जुबान लड़ा गये। हालांकि वह फिलहाल
सियासत की राह पर जाने से इनकार कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि सियासत में
कदम-कदम पर चिरौरी करनी पड़ती है, जो उनके बूते की बात नहीं। शायद ठाकुर
साहब एक्टिविज्म जारी रखने के मूड में हैं तो चचा मुलायम की थोड़ी मीठी-थोड़ी
कड़वी, थोड़ी नसीहत और थोड़ी धमकियों के बीच उन्हें सुर्खियों में बने रहने
का मौका तो दे रही है। राजनीति गलियारें में चर्चा यही है कि सबकी नजरे इस
बात को देखने पर टिकी हैं कि जोश कितना बाजू-ए.कातिल में है?
19July-2015
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