रविवार, 12 जुलाई 2015

राग दरबार: व्यापम घोटाला और पेशबंदी


व्यापक घोटाले की सीबीआई जांच
गजब की पेशबंदी। कल तक मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की मांग करने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की हामी भरने और फिर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बंगले झांकते नजर आने लगे। व्यापक घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश होने पर अब उन्हें अचानक अपने उस जमाने की याद सताने लगी, जब सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को केंद्र सरकार का तोता बताया था। ऐसे लोग अब यह कहने को मजबूर है कि सीबीआई भी निष्पक्ष जांच नहीं करेगी। पहले हाईकोर्ट की निगरानी में चल रही एसआईटी जांच को अविश्वसनीय बता दिया और अब वही दांव सीबीआई पर। लगता है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह सही कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश के कांगे्रसी राजे-महाराजे नेताओं की दिलचस्पी व्यापम का भ्रष्टाचार सामने लाने में नहीं, अपितु तीन बार पराजय का स्वाद चखा चुके शिवराज सिंह की प्रतिमा खंडित करने में अधिक है। बहरहाल यह तो अब सीबीआाई जांच के बाद ही पता लगेगा कि दोषी कौन? ऐसे में राजनीति के गलियारे में ये भी चर्चा है कि जो भी हो सामने आना चाहिए और इससे जुड़े लोगों की मौतों का सच भी उजागर होना चाहिए।
मंगलदायक कल्याण
‘राष्ट्रगान-जन गण मन अधिनायक जय हे....से अधिनायक हटा कर उसकी जगह मंगलदायक उच्चारण किया जाना चाहिए’..। यह बात राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह को बुढ़ापे में सूझी है। यही नहीं कल्याण सिंह की इस सूझ का हरियाणा राज्य सरकार के एक मंत्री ने भी समर्थन किया है। यह बात सही है कि गुरुदेव ने जन गण मन ब्रिटश राजा के स्वागत में लिखा था, क्योंकि गुलामी के भारत में जन गण मन के वही अधिनायक थे, पर अब भारत आजाद है और यहॉ प्रजातंत्र है। ऐसे में ‘जन गण का मन ही अधिनायक’ है। हमारे इस कथन की पुष्टि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी कर दी है। व्यापम के जानलेवा घोटाले को लेकर चौतरफा पड़ रहे दबाव में सारी रात करवटें बदल-बदल कर सोचते रहे और सुबह बदहवाश-सी सूरत लेकर टीवी स्क्रीन पर नमूदार हुए तो सीबीआई जॉच कराने को हाईकोर्ट सिफारिश क्या की सुप्रीम कोर्ट ने उसे तस्दीक कर दिया। चर्चा तो है कि वहीं शिवराज सिंह जिस जन मन के आगे शीश झुकाने का दावा कर रहे हैं, वही तो भारत का अधिनायक है।
बड़बोलेपन की कीमत!
पहली बार ही सांसद बनने के साथ मोदी मंत्रिमंडल के एक रसूखदार महकमें में जूनियर मंत्री बने एक नेता जी का कार्यालय शास्त्री भवन में पंचम तल से पहले तल पर आ गया है। सियासत के दंगल में पहली बार उतरे ये नेताजी अभी नौसिखिए हैं। यही कारण है कि जिन मुद्दों पर उनके सीनियर मंत्री मुंह खोलने से हिचकते हैं,उन मामलों पर ये माननीय मुंह जमकर बयानबाजी करने से नही हिचकते। नजीर के तौर पर हाल ही में एक पड़ोसी देश से जुड़े मामले पर इन नेताजी ने जो बयानबाजी की उसके कारण रक्षा मंत्रालय की ओर से भी सफाई देनी पड़ी। चर्चा ते ये भी है कि इन मंत्री महोदय के कार्यालय में हुए बदलाव का कारण भी उनका बड़बोलापन ही है। उन्हें बड़बोलेपन की कीमत चुकानी पड़ी है। क्यूंकि पहले वह अपने वरिष्ठ मंत्री के बगल वाले कार्यालय में बैठते थे। अब उनका कार्यालय वहां से हट गया।
तो खुलेगा ओआरओपी का पिटारा
वन रैंक वन पेंशन (ओआरओपी) को लागू करने को लेकर पूर्व सैनिकों द्वारा लंबे समय से उठायी जा रही मांग पर देर से ही सही रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर का हालिया आया बयान राहत के किसी पिटारे से कम नहीं है। उनका कहना था कि जल्द ही ओआरओपी को लेकर कोई अच्छी खबर दी जाएगी। पर्रिकर के इस बयान का आशय साफ है कि सरकार इस मामले में जरूरी घोषणा करने की तैयारी कर रही है। ऐसे में इस मुद्दे पर लंबे समय से देश में संघर्ष कर रहे पूर्व सैनिकों को कुछ राहत तो जरूर मिल गई है। हालांकि बीते साल मई में नई सरकार बनने से पहले और उसके बाद कई मौकों पर सत्ता पक्ष के नुमाइंदों ने ओआरओपी का क्रियान्वयन करने की प्रतिबद्धता जताई थी। जिसे अब रक्षा मंत्री की टिप्पणी यर्थाथ के धरातल पर पहुंचा सकती है। ऐसे में इसे सेना के पूर्व रणबांकुरों के लिए बड़ी राहत से कम नहीं समझा जा सकता।
--ओ.पी. पाल, अजीत पाठक, कविता जोशी
12July-2015

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