ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भूमि
अधिग्रहण विधेयक में संशोधनों के चौतरफा विरोध को देखते हुए ऐसी संभावना
प्रबल होती नजर आ रही है कि सरकार के विकास की राह में रोड़ा बनता आ रहा यह
विधेयक संसद के मानसून सत्र में भी अटक सकता है। भूमि बिल पर चर्चा के लिए
बुलाई गई नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक का कांग्रेस शासित राज्यों के
मुख्यमंत्रियों के बहिष्कार से ऐसे संकेत सामने आ रहे हैं। वहीं भूमि बिल
की जांच पड़ताल में जुटी संसद की संयुक्त समिति में भी विपक्षी दलों के
सदस्यों के विरोध ने मोदी सरकार को असमंजस की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया
है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में बुधवार को यहां
आयोजित नीति आयोग की संचालन परिषद की बैठक में चर्चा के लिए प्रमुख मुद्दा
भूमि अधिग्रहण पर राज्यों के सुझाव लेकर आम सहमति बनाना था, लेकिन भूमि
अधिग्रहण विधेयक पर चर्चा के नाम से बिदकती आ रही कांग्रेस शासित राज्यों
के किसी भी मुख्यमंत्री ने इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया। जबकि मोदी सरकार
के लिए आगामी 21 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में भूमि
अधिग्रहण विधेयक-2013 में किये गये संशोधनों को मंजूरी दिलाना पहली
प्राथमिकता होगी। इसका कारण साफ है कि अब सरकार भूमि विधेयक पर अध्यादेश भी
नहीं ला सकती है और इसी राजनीति का फायदा कांग्रेस व इस बिल का विरोध करने
वाले दल उठाने की तैयारी में हैं। नीति आयोग की बैठक का कांग्रेस शासित
राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ ही सपा, बीजद, तृणमूल कांग्रेस की सरकार
वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी बहानेबाजी करते हुए भूमि विधेयक को
लेकर हुई चर्चा से दूरी बनाए रखी। उधर भूमि अर्जन और पुनर्वास (संशोधन)
विधेयक जांच-पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति में शामिल ऐसे दलों के
सदस्य भी इस मुद्दे पर बिफरे हुए हैं और इन संशोधनों को खारिज करने की
सिफारिश पर बहुमत बनाने का प्रयास कर रहे हैं। जेपीसी को भूमि अधिग्रहण पर
सिफारिशों के साथ अपनी रिपोर्ट 28 जुलाई तक संसद में पेश करनी है, लेकिन
समिति में विपक्षी दलो के तेवर रिपोर्ट कराने में लेट-लतीफी करने की राह पर
हैं, तो ऐसी संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जेपीसी रिपोर्ट
तैयार करने की समय सीमा में विस्तार मांग सकती है। मसलन कांग्रेस और अन्य
दलों की लामबंदी 13 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में भूमि बिल पर ब्रेक
लगाने की रणनीति लगभग तय हो चुकी है। कांग्रेस पहले ही कसम खा चुकी है कि
भूमि अधिग्रहण विधेयक के संशोधनों को किसी भी कीमत पर पास नहीं होने दिया
जाएगा। यही नहीं जदयू-राजद भी कांग्रेस के सुर में सुर मिलाकर तय कर चुके
हैं कि किसानों की जमीन छीनने वाले इस विधेयक का संसद में पुरजोर विरोध ही
नहीं करेंगे, बल्कि बिहार के आगामी विधानसभा चुनाव में भी इसे मुद्दा बनाया
जाएगा।
सरकार का अंतिम विकल्प
सूत्रों की माने
तो मोदी सरकार की प्राथमिकता में विकास को गति देने के लिए भूमि अधिग्रहण
विधेयक संसद में पारित कराना जरूरी है। इस मुद्दे पर चौतरफा विरोध का सामना
कर रही राजग सरकार के सामने अब अध्यादेश का सहारा लेने का भी रास्ता नहीं
बचा है। सरकार के सामने अंतिम विकल्प है तो मानसून सत्र में भूमि विधेयक के
लटकने की स्थिति में वह उसके बाद संयुक्त सत्र बुलाकर इस विधेयक को अंजाम
तक पहुंचा सकती है। हालांकि सरकार ऐसी स्थिति से बचने के लिए भी रणनीति
तैयार करने में जुटी है, जिसमें संकेत मिल रहे हैं कि कुछ संशोधनों पर
सरकार वापसी भी कर सकती है, ताकि भूमि अधिग्रहण विधेयक को मानसून सत्र में
ही पारित करा लिया जाए। भाजपा के सूत्र भी बिहार विधानसभा चुनाव को देखते
हुए इस मुद्दे पर सरकार की नरमी का संकेत दे रहे हैं।
कल होगी जेपीसी की बैठक
भूमि
अधिग्रहण विधेयक में मोदी सरकार द्वारा किये गये प्रस्तावित संशोधनों पर
विचार कर रही संयुक्त संसदीय समिति के एक सदस्य ने बताया कि जेपीसी हर
सोमवार व मंगलवार को बैठक आयोजित करके विधेयक के प्रावधानों पर चर्चा करती आ
रही है, लेकिन पिछली बार तेज बारिश के कारण रद्द हुई बैठक के कारण इस पर
काम आगे नहीं बढ़ सका है। समिति ने संसद का सत्र नजदीक होने के कारण 16
जुलाई को बैठक बुलाई है, जिसमें गहन विचार विमर्श होगा। हालांकि समिति के
अधिकांश सदस्यों द्वारा पहले ही सरकार के संशोधनों पर ऐतराज जताया है। यह
भी संकेत दिये गये हैं कि यदि जांच का काम पूरा न हुआ तो समिति कार्यकाल की
समय सीमा को बढ़ाने की मांग भी कर सकती है। वहीं संयुक्त समिति की गुरुवार
को होने वाली अगली बैठक में सरकार अपना रूख भी सामने रख सकती है।
16July-2015
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