रविवार, 5 जुलाई 2015

तो भीख मांगकर पेट पालते है 6.68 लाख परिवार।

भीख निरोधक कानून भी भिक्षावृत्ति में नाकाम
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
वैश्वि स्तर पर सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाले देश के रूप में देखे जा रहे भारत में भिक्षावृत्ति अभी भी अभिशाप बनी हुई, जिसमें बकौल सरकार 6.68 लाख परिवार आज भी भीख मांग कर अपना गुजारा करने के लिए मजबूर हैं। हालांकि यूनिसेफ और सामाजिक संस्थाओं के अध्ययन रिपोर्टो के अनुसार देश में भीखारियों का आंकड़ा सरकारी आंकड़े से कहीं ज्यादा है।
हाल ही में केंद्र सरकार ने आजाद भारत में पहली बार सामाजिक, आर्थिक एवं जातीय जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक किये हैं, जिसके अनुसार देश में अभी भी 6.68 लाख परिवार भीख मांगकर अपना पेट पालने को मजबूर हैं। सरकार के जारी आंकड़ों के अनुसार सामाजिक, आर्थिक एवं जातीय जनगणना के तहत देश में कुल 24 करोड़ 39 लाख परिवार हैं, जिनमें ग्रामीण परिवारों की संख्या 17 करोड़ 91 लाख है। इन परिवारों में 6.68 लाख यानि 0.37 प्रतिशत परिवार भीख मांगकर और 4.08 लाख यानि 0.23 प्रतिशत परिवार कूड़ा इकट्ठा कर अपनी रोजीरोटी चला रहे हैँ। सरकार ने कूड़ा बीनने वालों के लिए राष्‍ट्रीय स्वच्छता अभियान के मद्देनजर राष्‍ट्रीय पुरस्कार की घोषणा की है, लेकिन भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए किसी योजना का जिक्र नहीं किया। देश में भिक्षावृत्ति के खात्मे की दिशा में केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा उनके पुनर्वास संबन्धी अनेक सामाजिक परियोजनाएं भी चलाई जा रही है, लेकिन कोई असर सामने आता नजर नहीं आया। हालांकि देश में भीख निरोधक कानून-1959 के तहत भीख मांगना कानूनी अपराध माना जाता है, लेकिन रोजाना इस कानून का उल्लंघन देखते ही बनता है।
यूनिसेफ की पिछले दिनों सामने आई एक अध्ययन रिपोर्ट पर विश्वास करें तो दुनिया में करीब 4.40 करोड़ भिखारियों में से भारत में करीब 1.80 करोड़ लाख भिखारी खासकर बच्चे सड़को के किनारे भीख मांगते देखे जा सकते हैं, जिनमें से रोजना 36 लाख भिखारी महानगरों की लाल बत्तियों पर हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगते हैं। अकेले दिल्ली व आसपास के इलाकों में ही भीख मांगनें वालों की संख्या डेढ़ लाख आंकी गई है।
दिल्ली का सुरते हाल
दिल्ली जैसे महानगर में हर किसी ट्रैफिक सिग्नल पर यह रोज के नजारा है, जहां लालबत्ती होते ही वाहनों की खिड़की के शीशे पर दस्तक होती है। दिल्ली स्कूल आॅफ सोशल वर्क के और दिल्ली के समाज कल्याण विभाग मुताबिक अकेले दिल्ली में ही करीब 70 हजार भिखारी हैं। इनमें कोई अपाहिज, दीन-हीन बुजुर्ग महिला या कोई फटेहाल बच्चा हाथ फैलाता नजर आ जाता है। डीएसएसडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार इनमें कई ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट भिखारी भी शामिल हैं। एक अध्ययन के अनुसार दिल्ली के 71 फीसद भिखारी गरीबी की वजह से भीख मांग रहे हैं, किंतु 66 प्रतिशत भिखारी शारीरिक रूप से तंदुरूस्त हैं। कई भिखारी तो ऐसे हैं, जो अब भिक्षावृत्ति को मजदूरी के विकल्प के तौर पर या इसे बेहतर मानकर अपनाए पड़े हैं। समाजिक शास्त्र से जुड़े विशेषज्ञ प्रो. तेजबहादुर सिंह का कहना है कि भीख मांगने की प्रवृत्ति देश और समाज के हित में नहीं है, जिसे रोकने के लिए सरकार को सख्त कानून बनाकर भीख मांगने वालों के हितों में ऐसी योजनाएं बनाने की जरूरत हैं, जिनसे उन्हें मनोवैज्ञानिक और आर्थिक रूप से विकसित किया जा सके। यह सरकार का दायित्व है कि ऐसे लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए ऐसे परिवारों और उनके बच्चों की शिक्षा और आत्मसम्मान को प्रोत्साहित करने वाली योजनाएं लागे करे, ताकि उनमें आर्थिक स्वावलंबन का जुनून भी पैदा हो सके।
05July-2015


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