गुरुवार, 23 जुलाई 2015

संसद- अलग-थलग पड़ी कांग्रेस!

कांग्रेस पर भारी भाजपा की रणनीति
विपक्षी एकजुटता में सेंध से सरकार की राह आसान 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भले ही विपक्षी दलों ने सरकार के खिलाफ संसद के मानसून सत्र के दूसरे दिन भी मोर्चा खोलते हुए हंगामा किया हो, लेकिन भाजपा की रणनीति के सामने विपक्षी की लामबंदी टूटती नजर आने से कांग्रेस अकेले खड़े रहने की स्थिति में जाती नजर आ रही है।
बुधवार को विपक्षी दल कांग्रेस ने लगातार दूसरे दिन भी ललित गेट के मुद्दे पर सुषमा स्वराज के साथ भाजपा के मुख्यमंत्रियों वसुंधरा राजे व शिवराज चौहान के इस्तीफे की मांग पर संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही न चलने दी हो, लेकिन कांग्रेस का दूसरे दिन ही सरकार के खिलाफ एक दांव उस समय उलटा पड़ गया, जिसमें किसी अन्य दल का साथ न मिलने के कारण संसद परिसर में कांग्रेस को अपना धरना स्थगित करने को मजबूर होना पड़ा। हालांकि कांग्रेस युवराज इस धरने प्रदर्शन की अगुवाई करने के इरादे से बाजुओं पर काली पट्टी बांधकर संसद पहुंचे थे। माना जा रहा है कि जब कांग्रेस को भाजपा संसदीय दल की बैठक में कांग्रेस के पुराने काले चिठ्ठे और भ्रष्टाचार व घोटालों की एक 64 पृष्ठीय पुस्तिका जारी होने की खबर मिली तो कांग्रेस बैकपुट नजर आई और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने में कांग्रेस का साथ देने के इरादे से अन्य विपक्षी दलों ने अंतिम क्षणों में कांग्रेस का साथ छोड़ दिया। ऐसे में कांग्रेस सरकार के खिलाफ इस्तीफों की मांग पर मोर्चा खोलती अकेली खड़ी नजर आने लगी। यह इत्तेफाक था कि बुधवार को ही उत्तराखंड में शराब घोटाले का स्टिंग सामने आया। ऐसे में कांग्रेस को भाजपा द्वारा पिछले एक दशक में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार में राज्यों में हुए काले कारनामों के कंकाल उखड़ते नजर आने लगे हैं। मसलन कांग्रेस का दावं भाजपा की रणनीति के सामने कमजोर पड़ने लगा है। जहां तक ललित प्रकरण और व्यापम पर संसद में चर्चा की मांग का सवाल है तो भाजपा ने भी पिछले एक दशक में हुए घोटालों और भ्रष्टाचार संबन्धी मामलों पर चर्चा कराने की सूची तैयार कर ली है। शायद यही कारण है कि कांग्रेस अब भाजपा की केंद्रीय मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्रियों के खिलाफ लाए गये प्रस्ताव के बावजूद सदन में चर्चा से दूर भागती दिख रही है, जबकि मानसून सत्र के दूसरे दिन सरकार की ओर से दोनों सदनों में इन मुद्दों पर कांग्रेस से चर्चा शुरू कराने की अपील की जाती रही है जिसके लिए सरकार पहले दिन से ही तैयार बैठी है।
सरकार को मिली राहत
मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस ने अन्य विपक्षी दलों के साथ लामबंदी करके जो रणनीति बनाई थी, उस पर भाजपा की रणनीति के सामने पानी ही फिरता नजर नहीं आ रहा, बल्कि कांग्रेस इस मामले में अलग-थलग पड़ती नजर आने लगी है। कांग्रेस के सरकार के खिलाफ तैयारी के बावजूद धरना न दिया जाना विपक्ष की एकजुटता में बिखराव की झलक साफ नजर आई, जिसमें सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव सुषमा स्वराज के खिलाफ मुखर न होने की बात पहले ही कह चुके हैं। वहीं समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल ने भी अपने नेता के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि यह कोई जरूरी नहीं है कि कांग्रेस के हर मुद्दे पर हम उसका साथ देते रहे। दरअसल भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर सोनिया के साथ सभी विपक्षी दलों ने मार्च तो किया, लेकिन सारा क्रेडिट कांग्रेस ले गई, यह भी विपक्षी दलों की एकता बिखरने का कारण बना है। इसी प्रकार राकांपा नेता डी पी त्रिपाठी ने कहा कि कांग्रेस तमाम मुद्दों पर अन्य दलों की राय नहीं ले रही है। उनका मानना तो यह भी है कि कांग्रेस विपक्षी दलों को एक जुट रखने में नाकाम रही तो इसका फायदा सरकार को आने वाले दिनों में जरूर मिलेगा। ऐसे ही कई दलों के सुर बदलते नजर आए। मसलन भूमि अधिग्रहण और जीएसटी जैसे बिल को आने वाले दिनों में सरकार पास कराने की कोशिश करेगी। भाजपा की सरकार के बचाव में तैयार की गई रणनीति ने संसद में दूसरे दिन ही सरकार के पक्ष में राहत की राह आसान की है।
23July-2015

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