संसदीय समिति ने संसाधनों पर जताई चिंता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश
में घातक बीमारियों का सबब बनते ई-कचरे के निपटान के लिए यदि जल्द ही
नियमों को संशोधित करके अंतर्राष्टीय मानकों की तर्ज पर लागू न किये गये
तो स्थिति ज्यादा भयावह हो सकती है। देश में ई-कचरे के निपटान की कछुआ चाल
और नियमों में झोल को लेकर आ रही अध्ययन रिपोर्ट केंद्र सरकार के लिए किसी
चुनौती से कम नहीं है।
दरअसल गुरुवार को संसद में एक संसदीय
समिति ने देश में बढ़ते इलेक्ट्रानिक कचरे और उसके निपटान के तौर तरीकों के
लिए नियमों में झोल होने के साथ संसाधनों की कमी पर गहरी चिंता जताई है।
देश में घातक बीमारियों से लोगों को बचाने की वकालत करते हुए सरकार से
ई-कचरे के निपटान के लिए बने लचीले नियमों में संशोधन करके उन्हें
अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाने के साथ ईकचरे के निपटान की
जिम्मेदारी इलेक्ट्रॉनिक सामानों का उत्पाद करने वालों को सौंपने की
सिफारिश भी केंद्र सरकार से की है। विभाग संबंधी समिति ने रिपोर्ट में कहा
है ई-कचरे की मात्रा दो साल पहले आठ लाख टन से अधिक हो चुकी थी, लेकिन
ई-अपशिष्ट संबंधी नियम आज भी शुरूआती अवस्था में हैं। इसलिए इन नियमों में
तत्काल संशोधन करके सख्त बनाने की जरूरत है। हालांकि मोदी सरकार ने
पर्यावरण संरक्षण की दिशा में रिसाइकिलिंग को बढ़ावा देने की योजनाओं को
शुरू किया है, लेकिन इसके लिए सख्त कानून बनाने की जरूरत पर बल दिया गया
है। समिति ने तर्क दिया कि देश में ई-कचरे की मात्रा अन्य देशों के मुकाबले
न केवल ज्यादा है, बल्कि ई-कचरे की मात्रा में निरंतर बढ़ोतरी देखी जा रही
है, जो मानव स्वस्थ्य के लिए बेहद घातक और चिंताजनक है। इस मुद्दे का
उद्देश्यात्मक एवं तत्काल आधार पर हल बेहद जरूरी है।
निपटान केंद्र की स्थिति
समिति
की रिपोर्ट के अनुसर देश में आठ लाख टन इलेक्ट्रानिक कचरा पैदा हो रहा था,
जिसके निपटान के लिए देश में महज स्थापित 126 केंद्र पर्याप्त नहीं हैं।
मसलन ई-कचरा उत्पादन और इससे निपटान की क्षमता विकास में भयानक अंतराल को
दूर करना तत्काल जरूरी है। वहीं ई-कचरे के निपटाने के लिए स्थापित मौजूदा
ई-वेस्ट रिसाइक्लर या डिस्मेंटलर संख्या ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना जरूरी है।
ई-कचरे के निपटाने के लिए देश में स्थापित 126 केंद्रों में 53 कर्नाटक, 22
महाराष्ट्र, 11 तमिलनाडु, नौ-नौ उत्तर प्रदेश और राजस्थान, सात-सात गुजरात
और हरियाणा, तीन उत्तराखंड, एक-एक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और
पश्चिम बंगाल में है। मसलन राज्यों के क्षेत्रफल को देखते हुए केंद्रों की
स्थिति इस समस्या से निजात दिलाने लायक नहीं है। यही नहीं ई-कचरे के संग्रह
के लिए बनाए गये 111 केंद्रों की संख्या भी नाकाफी बताई गई है, जिसमें
गुजरात में 29, महाराष्ट्र में 22, दिल्ली में 19, उत्तर प्रदेश में नौ,
ओडिशा में सात, राजस्थान, केरल, जम्मू कश्मीर और आंध्र प्रदेश में चार-चार,
असम तथा बिहार में दो-दो, चंडीगढ़, मध्य
प्रदेश एवं उत्तराखंड में एक-एक केंद्र हैं।
एसोचेम का खुलासा
पिछले
महीने जून में ही उद्योग संगठन भारतीय उद्योग एवं वाणिज्य मंडल यानि
एसौचेम ने पर्यावरण दिवस जारी एक रिपोर्ट में खुलासा किया था कि सुरक्षा
मानकों के अभाव के कारण ई-कचरा के निपटान में लगे कर्मचारियों में से 76
प्रतिशत लोग श्वसन संबंधी बीमारियों खांसी, दम घुटने, अस्थमा तथा कैंसर,
चिड़चिड़ेपन और आवाज में कंपन से पीड़ित है। इस उद्योग संगठन ने एक अध्ययन यह
भी कहा था कि केवल दस राज्य ई-कचरे में 70 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं
और 65 शहर 60 प्रतिशत से अधिक कचरे का उत्पादन करते हैं। ई-कचरा पैदा करने
वाले राज्यों में महाराष्ट्र पहला, तमिलनाडु दूसरा, आंध्रप्रदेश तीसरा,
उत्तर प्रदेश चौथा, दिल्ली पांचवां, गुजरात छठा, कर्नाटक सातवां और पश्चिम
बंगाल आठवां राज्य है। वहीं सरकारी और निजी कार्यालय तथा औद्योगिक संस्थान
71 प्रतिशत ई-कचरा पैदा करते हैं। घरों का ई-कचरे में योगदान महज 16
प्रतिशत है। मसलन बाकी हिस्सेदारी विनिर्माण उद्योग की है। यही नहीं इस
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि लगभग 95 प्रतिशत ई-कचरा शहरों की स्लम
बस्तियों में एकत्र किया जाता है, जो संभावित खतरों को बुलाया देने से कम
नहीं है।
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