सेक्यूलर सूरमाओं का हिंदू तुष्टिकरण
भारत की राजनीति भी गजब है, जहां सियासत के लिए राजनीतिक दल अपने सिद्धांत और मर्यादाओं को भी ताक पर रखने में पीछे नहीं रहते। बिहार में आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और धर्मनिरपेक्षता का चोला पहने सियासी दल भाजपा को सांप्रदायिक बताकर अपना उल्लू सीधा करना तो चाहते हैं, लेकिन शायद यह भाजपा का बढ़ता दबाव ही हो सकता है कि सेक्यूलर सूरमाओं को भी अब हिंदू तुष्टिकरण की जरूरत महसूस होती नजर आ रही है। बिहार के सुशासन बाबू के नाम से मशहूर होते नीतीश कुमार द्वारा सियासी जमीन का दायरा बढ़ाने की गरज में शुरू किया गया है ‘दस्तक अभियान’ और इसका आगाज करने का तरीका ही शायद उन्हें हिंदू तुष्टिकरण की तरफ खींच लाया। मसलन घर-घर दस्तक का आगाज नीतीश बाबू ने जिस तरह मत्था टेक कर नारियल फोड़ने देवी मंदिर पहुंचे, उसे देख कर तो यही कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता के सुरमाओं ने अब भाजपा की सियासी राह को पकड़ना शुरू कर दिया है। राजनीति के गलियारों में ही नहीं सोशल मीडिया में सेक्यूलर सुरमाओं के हिंदू तुष्टिकरण की याद ताजा होती नजर आ रही है। बिहार की सियासत की बात की जाए तो यूं भी कहा जा सकता है कि इस बार का बिहार चुनाव पूरी तरह मोदी और नीतीश के रंग से सराबोर होगा। इसका कारण भी साफ है कि लालू ने जैसे ही नीतीश कुमार को नेता माना वैसे ही सुशासन बाबू ने ‘बढ़ चला बिहार’ का नारा देकर पूरा चुनाव प्रचार हाइजेक कर लिया। सोशल मीडिया पर तो ऐसी टिप्पणी भी सामने आई कि बिहार में समय की पहचान अब होने लगीं हैं, तभी लालू को साथ नहीं लिया गया, कहीं भगवान जी पहचान लेंगे, तो सेक्यूलर सुरमाओं का कबाडा हो जायेगा। अब पर्चे पर चर्चा हो या दरवाजे पर दस्तक, जिधर भी निगाह पड़ेगी उधर ही नीतीश बाबू ही नजर आएंगे और बेचारे लालू तो पीछे छूट गये..। समय की पहचान अब होने लगीं हैं, तभी लालू को साथ नहीं लिया गया, कहीं भगवान जी पहचान लेंगे, तो कबाडा हो जायेगा?
भारत की राजनीति भी गजब है, जहां सियासत के लिए राजनीतिक दल अपने सिद्धांत और मर्यादाओं को भी ताक पर रखने में पीछे नहीं रहते। बिहार में आने वाले दिनों में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और धर्मनिरपेक्षता का चोला पहने सियासी दल भाजपा को सांप्रदायिक बताकर अपना उल्लू सीधा करना तो चाहते हैं, लेकिन शायद यह भाजपा का बढ़ता दबाव ही हो सकता है कि सेक्यूलर सूरमाओं को भी अब हिंदू तुष्टिकरण की जरूरत महसूस होती नजर आ रही है। बिहार के सुशासन बाबू के नाम से मशहूर होते नीतीश कुमार द्वारा सियासी जमीन का दायरा बढ़ाने की गरज में शुरू किया गया है ‘दस्तक अभियान’ और इसका आगाज करने का तरीका ही शायद उन्हें हिंदू तुष्टिकरण की तरफ खींच लाया। मसलन घर-घर दस्तक का आगाज नीतीश बाबू ने जिस तरह मत्था टेक कर नारियल फोड़ने देवी मंदिर पहुंचे, उसे देख कर तो यही कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्षता के सुरमाओं ने अब भाजपा की सियासी राह को पकड़ना शुरू कर दिया है। राजनीति के गलियारों में ही नहीं सोशल मीडिया में सेक्यूलर सुरमाओं के हिंदू तुष्टिकरण की याद ताजा होती नजर आ रही है। बिहार की सियासत की बात की जाए तो यूं भी कहा जा सकता है कि इस बार का बिहार चुनाव पूरी तरह मोदी और नीतीश के रंग से सराबोर होगा। इसका कारण भी साफ है कि लालू ने जैसे ही नीतीश कुमार को नेता माना वैसे ही सुशासन बाबू ने ‘बढ़ चला बिहार’ का नारा देकर पूरा चुनाव प्रचार हाइजेक कर लिया। सोशल मीडिया पर तो ऐसी टिप्पणी भी सामने आई कि बिहार में समय की पहचान अब होने लगीं हैं, तभी लालू को साथ नहीं लिया गया, कहीं भगवान जी पहचान लेंगे, तो सेक्यूलर सुरमाओं का कबाडा हो जायेगा। अब पर्चे पर चर्चा हो या दरवाजे पर दस्तक, जिधर भी निगाह पड़ेगी उधर ही नीतीश बाबू ही नजर आएंगे और बेचारे लालू तो पीछे छूट गये..। समय की पहचान अब होने लगीं हैं, तभी लालू को साथ नहीं लिया गया, कहीं भगवान जी पहचान लेंगे, तो कबाडा हो जायेगा?
राहुल की माया
कांग्रेस को राहुल गांधी ने एक बार फिर चौंका दिया है। कई बड़े नेता दबी जुबान में फरमा रहे हैं कि युवराज सुधरने वाले नहीं हैं। याद कीजिये बजट सत्र के पहले दौर में तमाम मुद्दों से किनारा कर कैसे राहुल अवकाश मनाने चले गये थे। कांग्रेसी हाथ मलते रह गये थे। उनको उम्मीद थी कि पार्टी के भावी अध्यक्ष लोकसभा चुनाव की हार का गम भुलाकर केन्द्र सरकार और भाजपा से लोहा लेंगे पर राहुल गांधी तो विदेश चले गये थे। कहा गया कि वे विचार-मंथन के लिए एकांतवास पर गये हैं ताकि पार्टी की भावी रणनीति का खाका तैयार कर सकें। मार्च में जब वे लौटे तो पहले नई दिल्ली में किसान रैली और फिर कई राज्यों में गांवों की पदयात्रा के जरिये कांग्रेस उपाध्यक्ष ने संदेश दिया कि अब वे सिर्फ और सिर्फ राजनीति पर ध्यान देंगे। कांग्रेसजनों में नई आशा जगी भी। सत्ताधारी भाजपा को भी राहुल गांधी की सक्रियता पर अचरज हुआ। राजनैतिक गलियारों के अलावा आम लोगों के बीच भी राहुल का नया रूप चर्चा का विषय बना। लेकिन अब एक बार फिर राहुल ने जता दिया है कि उनको अपनी मनमर्जी बहुत भाती है। देखिये, पूरे देश में ‘ललित गेट’ छाया हुआ है। कांग्रेस के बड़े नेता और प्रवक्ता हर रोज मीडिया में नये आरोपों के साथ सुषमा स्वराज ओर वसुंधरा राजे को घेरने का प्रयास कर रहे हैं लेकिन राहुल गांधी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। बताया जा रहा है कि वे दिल्ली की गर्मी से तौबा कर कुछ दिन ठंडी वादियों में बिता रहे हैं। कांग्रेस मुख्यालय में चर्चा है कि ये मौका तो बड़ा आंदोलन खड़ा करने का था लेकिन सेनापति ही गायब हैं तो क्या करें! प्रवक्ता बयान जारी कर काम चला रहे हैं।
ईरानी लेंगी बाबूओं की क्लास
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी बीते दिनों कॉमनवेल्थ देशों के शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में भाग लेने के लिए लैटिन अमेरिकी देश बहमास की यात्रा पर गई हुई थीं। उनका दौरा खत्म हो गया है और अब मंत्रालय के गलियारों में इस बात को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं कि वो स्वदेश लौटने के तुरंत बाद एचआरडी मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक करेंगी। यह दोनों वरिष्ठ अधिकारी और कोई नहीं बल्कि उच्च-शिक्षा और स्कूली शिक्षा विभाग के सचिव हैं। इस मुलाकात का सबसे रोचक तथ्य यह है कि इसमें शिक्षा सचिवों के अलावा पत्र सूचना कार्यालय यानि पीआईबी में मंत्रालय का कामकाज देखने वाले सूचना अधिकारी (आईओ) को भी बैठक में उपस्थित रहने को कहा गया है। आमतौर पर ईरानी मीडिया और खबरों के मंत्रालय से बाहर जाने को लेकर काफी संजीदा नजर आती हैं। लेकिन इस बार दोनों सचिवों के साथ बैठक में आईओ की उपस्थिति कहीं माहौल में बदलाव का संकेत तो नहीं बनेगा।-(05July-2015)
--ओ.पी. पाल, आनंद राणा, कविता जोशी
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