रविवार, 26 जुलाई 2015

राग दरबार: आंखे तो लजाएंगी जनाब

काली पट्टी बांध कर हंगामा 

कहते हैं मुंह खाता है और आंखें लजाती हैं वाली कहावत कांग्रेस पर सटीक बैठती है। यह इसलिए भी सच्च साबित हुई कि संसद के मानसून सत्र में व्यापम और ललित गेट के मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस के तरकश से तीर फेंकने का दूसरा ही दिन था तो तभी सरकार पर चलाए जा रहे कांग्रेस के तीर उनकी और उलटा रूख करते दिखाई दिये। मसलन उत्तराखंड के दारूगेट का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत खबरिया चैनलों पर सफाई देने को नमूदार तो हुए, लेकिन उनके चेहरे की रंगत रिश्वतखोरी की गवाही देती नजर आई। हालांकि इसके बावजूद एक सेक्युलर नेता ने तो यहां तक फरमाया कि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत के पीए मोहम्मद शाहिद द्वारा शराब माफिया से करोड़ों उगाही करने की बात गले नहीं उतरती। इन सियासी नेता की दलील थी कि शाहिद मुसलमान है तो शराब कारोबार से कैसे कमाई कर सकते हैं। राजनीति गलियारों में चर्चाएं परवान चढ़ती गई तो भ्रष्टाचार और घोटालों में धन को मन में समेटने तो मनाही नहीं है, जब करोड़ों की दौलत खुद चलकर आती हो, यह तो दुर्भाग्य था कि इस लेनदेन का स्टिंग हो गया, तो ऐसे में ऐसी टिप्पणियां भी सामने आई कि संसद में काली पट्टी बांध कर हंगामा करने वाले कांग्रेसी नेताओं को सरकार को घेरने के लिए अपना मुहं काला कर लेना चाहिए।
तकरार का यही समाधान
निष्पक्ष न रहता कोई है,है प्रजातंत्र निष्पक्ष कहां,चमणातुर नीति बड़ी अच्छी, चिपको देखो है भला जहां। इन पंक्तियों को किसी कवि ने फरमाया ही होगा, जो संसद में चल रहे सरकार और विपक्ष के बीच एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ की सच्चाई तो बयां करती होगी। राजनीतिक भाषा की माने तो संसद में चल रहे गतिरोध का एकमात्र समाधान-ना तू कह मेरी और ना मैं कहूं तेरी-फामूर्ला हो सकता है। क्योंकि सदन में दाएं और बाएं बाजू की कुर्सियों पर बैठने वाले कोई किसी से कम नहीं है। बात सिर्फ अवसर है। दोनों तरफ स्कैम इंडिया के चैंम्पियन विराजमान है। इसी तरह दलों के झगडने और गलबहियां करने को लेकर भी किसी पर उंगली उठाना मुनासिब नहीं लगता। एक तरफ यदि लालू-नितीश भरत मिलाप पर सवाल हैं तो दूसरी ओर भाजपा-पीडीपी निकाह को लेकर भी कानाफूसी कम नहीं।
मंत्रियों की तनातनी
सरकार के एक अहम महकमे के बड़े और छोटे मंत्रियों के बीच के ताल्लुकात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दोनों एक दूसरे की बात से नावाकिफी जताने का मौका नहीं चूकते। अब हाल ही की बात है। छोटे मंत्री जी जिनके रिश्ते मीडिया वालों से बेहतर हैं, उन्होंने कुछ पत्रकारों से आॅफ द रिकार्ड बातचीत में कहा कि जल्द ही उनके मंत्रालय से कई नई योजनाएं शुरु होंगी। अब पत्रकारों को तो अधपकी खबर हाथ लग गई। फिर क्या, खबर की हकीकत जांचने को वे पहुंच गए बड़े मंत्री के पास। बाच-बात में उन्होंने पूछ लिया कि कई नई योजनाएं शुरु होने वाली हैं। कुछ उनके बारे में बताए। अथवा कितनी योजनाएं शुरु होंगी। अब बड़े मंत्री तो बड़े ही ठहरे। एक अधिकारी को बुलाकर कहा कि, कितनी नई योजनाएं शुरु होने वाली। अधिकारी ने मंत्री और पत्रकारों के चेहरे पर एक बारगी नजर डाल..कहा कि, फिलहाल तो इधर ऐसी कोई योजना नहीं है। बड़े मंत्री ने मुस्कुराते हुए पत्रकारों से कहा..कि..भई..हमें तो नहीं पता..अब अपने सूत्र से पता करो। यह कह वे हंस पड़े। अब मंत्रियों के बीच के रिश्ते इस कदर हैं, तो मंत्रालय का कामकाज कैसा चल रहा होगा.. अंदाजौ लगाया जा सकता है।
सोशल मीडिया पर रक्षा मंत्रालय की धूम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में चल रही एनडीए सरकार में इस तथ्य से हर कोई परिचित है कि यहां सूचनाआें के आदान-प्रदान के लिए सबसे ज्यादा सोशल मीडिया के साधनों का प्रयोग प्रचलन में है। ऐसे में नई सरकार बनने के तुरंत बाद सभी मंत्रालयों ने सोशल मीडिया पर अपने अकाउंट खोलकर तुरंत अपडेट करना शुरू कर दिया। इसमें एक रोचक पहलू यह सामने आया है कि मंत्रालयों की इस अपडेट में सोशल मीडिया पर बाकी मंत्रालयों की तुलना में रक्षा मंत्रालय का प्रदर्शन शीर्ष पर काबिज हुआ है। मंत्रालय के अधिकारियों ने एक दिन में टवीट्र पर 102 ट्वीट करने के कीर्तिमान बना डाले हैं। इसके अलावा यूट्यूब और सूचना आदान प्रदान के अन्य मंचों पर भी मंत्रालय का अच्छा प्रदर्शन जारी है। इसके लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की ओर से रक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ सूचना अधिकारी को भरपूर प्रशंसा का ईनाम भी मिल गया है। अब यह देखना रोचक होगा कि रक्षा मंत्रालय भविष्य में भी अपने इस शीर्ष स्टेटस को बनाए रखता है या नहीं।
--ओ.पी. पाल, अजीत पाठक, कविता जोशी
26July-2015

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