सोमवार, 13 जुलाई 2015

मोदी सरकार का एक साल

मोदी सरकार: अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर
नई दिल्ली

दुनिया में सबसे तेज गति से भारत की अर्थव्यवस्था की सुनहरी तस्वीर खींचने में सफल रही नरेंद्र मोदी की सरकार का पहला साल नए सपनों की आधारशिला रखने के नाम रहा है। आम जनभावनाओं का ख्याल रखते हुए मोदी सरकार ने जिस ऊर्जा के साथ अपनी पारी की शुरुआत की थी, उसकी उमंग वर्ष भर सरकार में बरकरार रही। किंतु सपनों को हकीकत की जमीं पर उतारना उतना आसान नही, जितना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोच रहे हैं। मोदी और उनकी सरकार को भी इस बात का बखूबी इल्म है। बावजूद प्रधानमंत्री की कोशिशें उम्मीदों की दीवारों से टकराने को तैयार हैं और इस कसौटी पर मोदी सरकार देश व जनता की अपेक्षाओं पर खरी उतरेगी जिसके लिए जनमानस की उम्मीदें भी बढ़ रही हैं। लालकिले के प्राचीर से प्रधानमंत्री ने तीन दर्जन से भी ज्यादा योजनाओं की घोषणा से आमजन को सामाजिक सम्मान देने की बात कही थी। ज्यादातर योजनाओे को शुरू करके एक साल से ज्यादा समय में तेजी से निर्णय लेकर उन्हें अंजाम तक पहुंचाने की राह बनाई। राजग सरकार के स्वच्छ भारत अभियान हो या बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान या फिर जनधन योजना और बीमा योजनाओं जैसे देश के लिए जरूरी कार्यक्रमों की पहल करने में तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चैंपियन बनकर उभरे हैं।
देश में तीन दशक के गठबंधन शासन के बाद भाजपा को मिले पूर्ण बहुमत से देश व जनता को उम्मीदों के पिटारे खुलने की उम्मीद जगना स्वाभाविक था, कि मोदी सरकार तेजी से फैसले लेगी और विकास की बाधाओं को दूर करेगी और देश की तस्वीर को बदल देगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में राजग सरकार का पहला साल और बातों के अलावा उनकी अपनी सफलता का साल रहा है। भारत के नए नेता के रूप में मोदी सरकार के प्रदर्शन ने देश के विकास और अर्थव्यवस्था को ही दिशा नहीं दी, बल्कि विदेशी नेताओं और विदेशों को भारत की तरफ देखने के लिए भी मजबूर किया है। यही नहीं दुनियाभर में नरेन्द्र मोदी का रुतबा एक सुपरस्टार के रूप में उभरता नजर आ रहा है। कारण भी सकारात्मक है क्योंकि किसी भी देश में राजनेताओं की छवि और राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करने की क्षमता में लोगों की धारणा अहम भूमिका निभाती है। एक साल से कुछ ज्यादा समय पहले ही संसदीय चुनाव जीतने के लिए नरेन्द्र मोदी ने जिस राजनीति, बौद्धिक और मार्केटिंग हुनर का इस्तेमाल किया था, उसी के आधार पर मोदी सरकार को कसौटियों पर तौला जा रहा है। देश की जनता की भूमिका के कारण ही उच्च पदों पर व्यापक भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता के आरोपों के साये में यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी को दस साल के सत्ताभोग से दूर होने के लिए मजबूर होना पड़ा है। ऐसे में जनता को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार से बहुत उम्मीदें होना लाजिमी है। खासकर युवा वर्ग को जिन्हें विकास में हिस्सेदारी और अच्छी कमाई वाली नौकरी की दरकार है, तो वहीं उद्योग जगत को सरकार से प्रोत्साहन और महिलाओं को सुरक्षा की उम्मीद ही अच्छे दिनों के सपने का हिस्सा है।
सरकार के एक साल के लेखा जोखा पर नजर डाली जाए तो मोदी सरकार का प्रदर्शन, वायदों को पूरा करना, भविष्य की नींव रखने के फैसले करना और विकास को आत्मनिर्भर बनाना होता है। मसलन अभी तक के कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिन लाने और देश को पारदर्शी सुशासन देने का अपना वादा किस हद तक निभाया है, उसके लिए केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा का दावा है कि इस एक साल में देश की अर्थव्यवस्था की हालत बहुत सुधरी है। मोदी सरकार ने दौरान अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई ठोस और महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं, जिनमें ‘मेक इन इंडिया’ अभियान ने विदेशी निवेशकों में भारत के लिए दिलचस्पी पैदा करके भरोसा कायम किया है, जिसका नतीजा है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने विकास दर का अनुमान बढ़ाकर 7.5 फीसदी कर दिया। हालांकि इसके बावजूद अभी देश में नए रोजगार पैदा करने के लिए भारत को और भी इंवेस्टरफ्रेंडली होने की दरकार है। मसलन मोदी सरकार ने मजबूत नींव बनाने का काम किया है। अब सिर्फ इस नींव पर अर्थव्यवस्था के भव्य भवन के निर्माण का काम बचा है। सीएमआईई द्वारा जारी किए गए आंकड़े ने मोदी सरकार की पहल को सकारात्मक साबित करते हुए दावा किया है कि मोदी सरकार के प्रयासों से देश में विकास के लिए परियोजनाओं की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। ऐसे संकेत स्वयं आरबीर्आ के गवर्नर रघुराम राजन भी दे चुके हैं कि आर्थिक गतिविधियों में तेजी आ रही है। यही नहीं देश की अर्थव्यवस्था में योगदान देते आ रहे उद्योग जगत ने भी मोदी सरकार की नीतियों को दुनिया के सामने एक विकसित देश की सुनहरी तस्वीर करार दिया है और राष्टÑनिर्माण में मोदीर सरकार विकास और अन्य सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं में सहभागिता के लिए बढ़ चढ़कर हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया है। वहीं नीति आयोग के जरिए मोदी सरकार ने भारत में भूमि सुधार की दिशा में कदम उठाते हुए उद्योगीकरण की मदद करने के इच्छुक राज्यों को भूमि की उदार पट्टेदारी से अधिक लाभ उठाने का मौका दिया है, लेकिन राज्यों को पट्टेदारी के साथ ही कृषि भूमि का गैर कृषि उद्देश्यों के लिए उपयोग करने में उदारता बरतनी होगी।
इन उपलब्धियों ने भी जीता दिल
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के एक साल की उपलब्धियों का विश्लेषकों ने भी लोहा माना है। ऐसे विश्लेषण पर भरोसा किया जाए तो मोदी की सकारात्मक पहल के कारण देशभर में जन धन योजना के तहत 16 करोड़ से अधिक बैंक खाते खुलना, जीवन बीमा और पेंशन वाले 10 करोड़ से अधिक के डेबिट कार्ड जारी करने, रसोई गैस में नकद सब्सिडी हस्तांतरण योजना लागू करने, डीजल मूल्य को नियंत्रण मुक्त करने, बीमा और पेंशन के अलावा रक्षा क्षेत्र में विदेशी निवेश की सीमा बढ़कर 49 प्रतिशत करने के अलावा प्रौद्योगिकी हस्तांतरण मामले में यह सीमा 74 प्रतिशत करने की नीतियां किसी उपलब्धियों से कम नहीं है। यही नहीं लालकिले के प्राचीर से किये गये वादे में स्वच्छ भारत अभियान को कॉरपोरेट सेक्टर ने भी अपनाते हुए जिस तरह से समर्थन दिया है उससे राष्टÑपति महात्मा गांधी के संकल्प पर आधारित देश को स्वच्छ भारत के रूप में पहचान दिलाने की राह भी आसान हुई है। रेल अवसंरचना में विदेशी निवेश को अनुमति के अलावा कोष जुटाने के लिए बैंकों को आईपीओ/एफपीओ लाने और कर लाभ के साथ रियल एस्टेट एवं अवसंरचना निवेश ट्रस्ट की अनुमति देकर घर का सपना देखने वालों को राहत की सांस दी गई है। इसी के तहत केंद्र सरकार की देश में 100 स्मार्ट शहर परियोजनाओं की मंजूरी और 2022 तक सभी को आसियाना मुहैया कराने वाली परियोजना भी सिर चढ़कर बोल रही है। सरकार ने रेलवे में पांच साल में 130 अरब डॉलर खर्च करने का प्रस्ताव पारित करने के अलावा नमामि गंगे मिशन में 20 हजार करोड़ से ज्यादा बजट की मंजूरी देकर लोगों की आस्थाओं का सम्मान किया है। मेक इन इंडिया, डिजिटल भारत और कौशल भारत पहल शुरू करने के अलावा रक्षा, इलेक्ट्रॉनिक्स और रोजगार सृजन की दिशा में डीजिटल इंडिया अभियान चलाकर गांव-गांव को इंटरनेट संपर्क की पहल की सराहना की जा रही है। केंद्र और राज्य के बीच राजस्व बंटवारे पर 14वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू करना, इस्पात, कोयला और बिजली परियोजनाओं की मंजूरी के लिए एकल खिड़की प्रणाली शुरू करने, कृषि उत्पादों में महंगाई नियंत्रित रखने के लिए कीमत स्थिरीकरण कोष स्थापित करने, प्रधानमंत्री सिंचाई परियोजना शुरू करने, कृषि उत्पादों का भंडारण बढ़ाने के लिए पांच हजार करोड़ रुपये के भंडारण अवसंरचना कोष गठित करने जैसी योजनाएं देश में कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए दूसरी हरित क्रांति का बिगुल बजाती दिख रही है। कृषि उत्पादों के लिए एक राष्ट्रीय साझा बाजार बनाने की पहल भी उन आलोचनाओं का करारा जवाब साबित होने की तरफ है, जिसमें मोदी सरकार पर किसान विरोधी और उद्योगपतियों के हितैषी होने का विपक्षी दल आरोप लगा रहे है। सड़क संपर्क किसी भी देश के विकास की रीढ़ मानी जाती है, जिसमें एक साल में मोदी सरकार ने प्रतिदिन 30 किमी सड़क निर्माण का लक्ष्य पकड़ने का निर्णय किया है, जिसमें एक साल में दो किमी प्रतिदिन की रफ़्तार को करीब 16 किमी प्रतिदिन निर्माण पर जिस प्रकार लाकर खड़ा कर दिया है उससे उम्मीद है कि मोदी सरकार आने वाले समय में इस लक्ष्य से भी कहीं ज्यादा सड़क निर्माण कर सकेगी। देश में 101 नदियों को राष्टÑीय जलमार्ग में बदलने की योजना सरकार की सड़क व रेल परिवहन व्यवस्था का बोझ हल्का करने की पहल साबित होगी।
भूमि अधिग्रहण कानून बनेगा वरदान
मोदी सरकार ने सभी क्षेत्रों में देश के विकास की योजनाओं को पंख लगाने की दिशा में नया भूमि अधिग्रहण कानून लागू करने के इरादे से भूमि अधिग्रहण कानून-2013 में संशोधन इसीलिए किये हैं कि भूमि अधिग्रहण में आ रही दिक्कतों को दूर किया जा सके। नए कानून के अनुसार उद्योगीकरण में मदद करने के इच्छुक राज्य उदार भूमि पट्टेदारी का तभी लाभ उठा सकेंगे। इसके लिए राज्यों को पट्टेदारी के साथ-साथ उदारता पूर्वक कृषि भूमि का गैर कृषि कार्यों में उपयोग करने की अनुमति देनी होगी। नीति आयोग की माने तो मौजूदा कृषि भूमि का गैर कृषि कार्यों में उपयोग बदलने के लिए उपयुक्त प्राधिकारी से अनुमति लेने की जरूरत है, जिसमें अनेक प्रक्रियाओं के कारण लंबा समय लगता है। इसलिए भूमि कानून में संशोधनों के बाद राज्य सरकारें भूमि की गैर कृषि कार्यों में उपयोग की अनुमति देने के लिए कृषि भूमि के उपयोग को परिवर्तित करने के लिए समय सीमा में मंजूरी देने की शुरूआत कर सकेंगे। भूमि सुधार की दिशा में नया भूमि कानून देश के विकास में वरदान साबित हो सकता है। देश में उद्योगीकरण के लिए भूमि के प्रावधान, दीर्घकालीन भूमि पट्टेदारी को बढ़ावा मिलेगा, जिसमें भूमि के मालिक को अपनी भूमि का किराया मिलने के अलावा उसका मालिकाना हक भी बरकरार रखने की अनुमति रहेगी। इसके अलावा वर्तमान पट्टेदारी की समय सीमा समाप्त होने के बाद उसे पट्टेदारी की शर्तें पुन:निर्धारित करने का भी अधिकार मिलेगा। इसलिए मोदी सरकार ने भूमि सुधार में पारदर्शी भूमि पट्टेदारी कानूनों की शुरूआत करने का प्रयास किया है। नए भूमि काननू से मोदी सरकार का प्रयास है कि संभावित पट्टेदारों या बटाईदारों को एक नए सुधार में भू-मालिकों के साथ लिखित ठेके करने की अनुमति मिल सके। नीति आयोग के सूत्रों का दावा है कि नए भूमि कानून में पट्टेदार को भूमि में सुधार करने के लिए निवेश करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और जमींदार बेफिक्र होकर अपनी जमीन पट्टे पर देने में समर्थ होगा, जिसमें उसे पट्टेदार से जमीन खोने का डर भी नहीं होगा तथा सरकार अपनी नीतियां प्रभावी रूप से लागू करने में समर्थ होगी। इसी के साथ-साथ भूमि उपयोग कानूनों के उदार होने से उद्योगीकरण के लिए भूमि के प्रावधान का वैकल्पिक अवसर भी उपलब्ध होगा,जो पूर्ण रूप से सरकार के अधिकार क्षेत्र में है। सरकार की इस पहल से जमींदार को अपनी भूमि का मालिकाना अधिकार बनाए रखने की भी अनुमति दी जा रही है। सरकार का यह भी प्रयास है कि भूमि पट्टेदारी सुधार कानूनों की बाधाओं को दूर किया जाए। इसीलिए कनार्टक जैसे राज्यों में भूमि के रिकॉर्ड पूरी तरह डिजिटल बनाए गए हैं और पंजीकरण प्रणाली भी वास्तव में इस दिशा में बढ़ने की स्थिति में है। अन्य राज्यों में भी ऐसे प्रयासों को बल दिया जा रहा है। नए काननू के तहत ऐसे राज्य उद्देश्यों के लिए विनियमों के खंड में यह जोड़ सकते हैं जिसमें मालिकाना हक के हस्तांतरण के लिए राजस्व रिकार्डों में केवल पट्टेदारी स्थिति को मान्यता दी जाए। मोदी सरकार ने इस बात पर बल दिया है कि राज्य सरकारें अपने पट्टेदारी और भूमि उपयोग के कानूनों में गंभीर रूप से विचार करें और इन्हें सरल बनाएं, लेकिन उत्पादकता और समग्र कल्याण बढ़ोतरी के लिए शक्तिशाली परिवर्तन लाना जरूरी है।
मनमोहन से तुलना
यदि मोदी सरकार की तुलना मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल में पहले एक साल से की जाए तो देश में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 3.5 प्रतिशत है तो मनमोहन सरकार के समय में 10.4 प्रतिशत थी। इसी तरह जीडीपी की दर अगर 7.56 प्रतिशत है तो उस समय 8.59 प्रतिशत थी। बिजली उत्पादन और कोयला उत्पादन में मनमोहन सरकार ने क्रमश: 7.7 प्रतिशत और 8.1 प्रतिशत की दर हासिल की थी तो मोदी सरकार ने 10 प्रतिशत और 8.2 प्रतिशत की दर तक पहुंचाकर क्षमता का प्रदर्शन किया है। नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में मोदी ने निश्चित तौर पर मनमोहन सिंह के 10.6 प्रतिशत के मुकाबले बीस प्रतिशत की दोगुनी दर प्राप्त की है, जो कि मनमोहन सिंह की ही मेहनत और जोखिम का परिणाम है। भले ही उसमें मोदी की अपनी मेहनत भी शामिल है, लेकिन उसकी नींव तो मनमोहन सिंह ने ही अपनी सरकार को दांव पर रख कर डाली थी। उस समय वैश्विक आर्थिक मंदी से देश को संभाल ले जाने वाले मनमोहन सिंह सिंग इज किंग थे और आज मोदी इज किंग हैं। मोदी देश, दुनिया, कॉरपोरेट, किसान, मजदूर और मध्यवर्ग सभी को अपने शासन से प्रभावित करते नजर आ रहे हैं। विदेश नीति से लेकर किसान नीति तक हर चीज को अपने ढंग से चलाने के प्रयास में मोदी के बढ़ते कदमों से देश को बहुत सी उम्मीदें हैं।
काइजेन ने बदली कार्यशैली
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीएमओ और अन्य विभागों में काइजेन की प्रैक्टिस को लागू कर नौकरशाहों की कार्य शैली को पूरी तरह बदलते हुए उनकी जवाबदेही तय कर दी है। मोदी ने प्रधानमंत्री से जुड़े सभी विभागों में नियमित सुधार पर जोर देते हुए क्वॉलिटी मैनेजमेंट सिस्टम की अन्य जापानी प्रैक्टिस पर अमल करने का भी प्रयास किया है। इससे लाल फीताशाही कम होती है तथा कार्यालय प्रभावी, उत्तरदायी एवं सक्षम बनता है। मोदी का इस प्रयास का परिणाम यह हुआ की उनको अपनी टीम के सदस्यों से भारी संख्या में सुझाव प्राप्त हो रहे हैं। इन विचारों को लिखा जाता है, साझा किया जाता है और इस पर चर्चा भी होती है। अगर इन विचारों को मूल्यवान और व्यावहारिक पाया जाता है तो इनको पीएमओ द्वारा क्रियान्वित किया जाता है। बहुत से मामलो में इन सुझावों के आधार पर भारी परिवर्तन तो नहीं किए जा सकते हैं, लेकिन मोदी समय और खर्च की बबार्दी को रोकते हुए प्रॉडक्टिविटी, सुरक्षा और सक्षमता में सुधार के लिए नियमित रूप से बदलाव करने में विश्वास रखते हैं।
मोदी सरकार की ताकत
इस एक साल में मोदी सरकार ने अपनी जो सबसे बड़ी ताकत महसूस की है वह है बाहर-भीतर विपक्ष की कमजोर उपस्थिति। उसके सामने न तो यूपीए-एक की तरह न्यूनतम साझा कार्यक्रम है और न ही माकपा-भाकपा जैसा ब्रेक लगाने वाला सहयोगी संगठन और न ही यूपीए-दो की तरह उसके भीतर विरोध करने वाली कोई राष्ट्रीय सलाहकार समिति यानि सारा मैदान खाली है और मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के मार्ग पर अपनी गति से बढ़ रही है। उसके सामने अगर कोई चुनौती है तो राज्यसभा में ज्यादा संख्याबल के साथ उपस्थित विपक्ष और उसके बाहर स्थित गांव, देहात, किसानों और मजदूरों की बड़ी आबादी भी है। यह भी एक दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि जहां एक ओर मोदी सरकार देश को तेज गति के साथ विकास के रास्ते पर ले जाना चाहती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के तेजी से होते फैसले और योजनाओं का कार्यान्वयन सत्ता से दूर हुए विपक्षी दलों को रास नहीं आ रहे हैं, जिनके विरोध के कारण कुछ ऐसी परियोजनाएं बाधित हैं जिनमें सुशासन के लिए नई प्रशासनिक संरचनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए था, लेकिन वह नहीं हो पा रहा है। मसलन संसद में पूर्ण बहुमत में होते हुए भी संसदीय प्रणाली कमजोर पड़ती नजर आ रही है और ज्यादातर ऐसे विधेयक संसदीय समितियों के हवाले हो गये, जो देश के विकास में तेजी के साथ परियोजनाओं को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं। मोदी सरकार बीमा क्षेत्र, रक्षा क्षेत्र, खनन और रेलवे में विदेशी निवेश और आर्थिक सुधारों की राह प्रशस्त करने के बावजूद भूमि अधिग्रहण के 2013 के कानून में संसद से संशोधन नहीं करा सकी और विकास की योजनाओं को जारी रखने के लिए सरकार को तीन बार अध्यादेश का सहारा लेना पड़ा। हालांकि मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धियों में श्रम सुधारों के लिए कानून पास करना भी रहा और अभी अभी वह उद्योग अधिनियम, परिवीक्षा अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम और ठेका मजदूर अधिनियम में संशोधन करने की तैयारी में आगे बढ़ने की तैयारी में भी है।
विदेश नीति पर कूटनीति
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेश दौरों पर सवाल उठाते विपक्ष टिप्पणियां करने से नहीं चूक रहा है, लेकिन मोदी सरकार की विदेशी नीति में कूटनीतिक पहलुओं को समझने का प्रयास नहीं किया, जिनकी वजह से विदेश नीति मजबूत हो रही है और बहुत सारे देश भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के कायल ही नहीं हैं, बल्कि भारत के इस मॉडल को जानने के लिए भी आतुर हैं। मोदी की विकास यात्राओं का मकसद इसलिए भी मायने रखता है कि देश में व्याप्त समस्याओं के तात्कालिक समाधान के रूप में विकास को बढ़ावा देने के लिए मोदी सामरिक शक्ति और आर्थिक ताकत बढ़ाने का भी प्रयास कर रहे हैं। कभी चीन, कभी दक्षिण कोरिया, कभी जर्मनी, कभी फ्रांस तो कभी जापान के मॉडल को देखते और उससे सीखने की कोशिश में विश्वबंधुत्व का माहौल तैयार करने का भी प्रयास है। रूस में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से मुलाकात का भले ही विपक्षी दलों ने ऐतराज किया हो, लेकिन मोदी ने कूटनीति के साथ पाकिस्तान को मुंबई के आतंकी हमले को स्वीकार करने के लिए भी मजबूर किया है।
--ओमप्रकाश पाल

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