मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

साक्षात्कार :साहित्यकार को सृजन ही नहीं, सर्जन की भी भूमिका निभानी होगी

साक्षात्कार:ओ.पी. पाल 
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व्यक्तिगत परिचय नाम: डा. ज्ञानी देवी जन्म: 7 मार्च 1962 
जन्म स्थान: गांव खनौदा, जिला कैथल(हरियाणा) शिक्षा: एम.ए. (हिन्दी) एम.फिल, हिन्दी, पी.एचडी. (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र) डी० लिट् (मानद) भागलपुर विश्वविद्यालय बिहार 
भाषा ज्ञान: हिन्दी व अंग्रेजी। 
सम्प्रति:- प्राचार्या, राजकीय कन्या महाविद्यालय, जूण्डला, करनाल
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हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा करनाल की सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी को वर्ष 2019 के श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान का पुरस्कार दिया है। समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य को जरिया मानने वाली साहित्यकार ने सामाजिक बेड़ियों और परिवारिक बंधनों के संघर्ष के बीच साहित्य के क्षेत्र में जिन बुलंदियों को छुआ है, उसके लिए वे साहित्य जगत और समाज में वो किसी पहचान की मोहताज नहीं है। साहित्य की विभिन्न विधाओं के माध्यम से समाज के हर क्षेत्र पर अपनी लेखनी से आवाज उठाई है। नारी विमर्श पर विस्तार से विवेचन करने वाली डा. ज्ञानीदेवी ने अपने सामाजिक संर्घष से वर्तमान साहित्य सेवा तक के सफर का हरिभूमि संवाददाता से हुई विशेष बातचीत के दौरान विस्तार से उल्लेख किया है। हरियाणा के करनाल जिले में राजकीय कन्या महाविद्यालय जूण्डला में प्राचार्या के पद से हाल ही में सेवानिवृत्त महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी का मानना है कि साहित्य, समाज का केवल दर्पण नहीं हो सकता है और साहित्यकार केवल मूकदर्शक नहीं हो सकता, बल्कि उसे सर्जन की भूमिका निभानी होगी। साहित्यकार को समाज रूपी गूमड़े से लेखनी रूपी औजार की सहायता से चीरकर सामाजिक विसंगति, विद्रूपता, असमानता, धार्मिक पाखण्ड, छल-छद्म, द्वेष, ईर्ष्या, भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी चापलूसी , आलस व अकर्मण्यता जैसी महामारी रूपी मवाद साफ करके स्वस्थ, स्वच्छ समाज के निर्माण की राह भी प्रशस्त करनी होगी। उसे राजनीति के दबाव और आर्थिक मोह से निडर और निर्लिप्त रहकर साहस के साथ समाज के प्रति प्रतिबद्धता निभानी होगी, तभी साहित्य और साहित्यकार की सार्थकता सिद्ध होती है। उनका कहना है कि कविता या साहित्य वह मशाल है जो अतीत के गौरवमयी ईंधन से जलती है और वर्तमान का कोहरा फोड़ भविष्य को राह दिखाती है। कविता वह जरिया है जो गुम हुए जीवन मूल्यों को तलाशकर लाती है और कविता वह रेशमी नाजुक बंधन है जो देशकाल से ऊपर उठकर मानव से मानव को जोड़ता है। कविता वह आंदोलन है जो मानव में मानवता जगाती है। हरियाणा के बाल विवाह का विरोध करने वाली तथा महिलाओं के सम्मान के लिए समाज को जागरूक करती आ रही महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी का जीवन बेहद संघर्षशील रहा है। इसी संघर्ष ने उन्हें समाज में प्रोफेसर, प्राचार्या, साहित्यकार एवं समाजसेविका के रूप में पहचान दिलाई है। रोढ बिरादरी के अखिल भारतीय रोढ महासभा ने उनकी योग्यता, क्षमता और संघर्षशील व प्रगतिशील सोच के चलते उन्हें अपने समाज में तमाम समाजिक कुरीतियों को दूर करने और सामाजिक जागरूकता फैलाने हेतु एक महिला संगठन तैयार करने की जिम्मेदारी सौँपी हैं। कैथल जिले के खनौदा गांव में जन्मी डा. ज्ञानीदेवी को अपनी शिक्षा प्राप्त करने के लिए गांव में स्कूल न होने की वजह से दूर दराज के गांव में अकेले कई कई किमी तक पैदल जाना पड़ता था। उन्हें बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई को अपने जीवन से उदाहरण देकर बीडा उठाया। वह गांव से अकेले ही 9-10 किमी आत्मनिर्भरता और नीडरता के साथ जंगलों की पगडंडी के रास्ते स्कूल व कालेज जाती रही। उनके इसी संघर्ष का नतीजा है कि समूची रोड़ बिरादरी में पहली महिला पीएचडी और राजकीय कालेज में प्राचार्या, प्रोफेसर और साहित्कार बनकर एक ऐसी मिसाल बनी, कि उन्हें देखकर आस पास के गांव में लडकियों को पढ़ाना शुरू किया। आज समाज ही जागरूक नहीं हुआ, बल्कि समाज में उनका सम्मान भी बढ़ा है। उन्होने अपनी अनुभवजन्य सच्चाइयों के आधार पर ही साहित्य के ज़रिए समाज के केवल निम्नवर्ग या मध्यमवर्ग का ही नही बल्कि उच्चवर्गीय जीवन का घोर यधार्ध बेनकाब करने की हिम्मत दिखाई हैऔर ये भारतीय संस्कृति के उच्च आदर्शों को स्थापित करने की वकालत करती नज़र आती है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा की प्रसिद्ध साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी के साहित्यिक रचनाओं के संसार में समीक्षात्मक पुस्तकों के साथ उपन्यास, लघुकथा, नाटक, कहानी संग्रह, काव्य संग्रह, व्यंग्य संग्रह जैसी विधाओं में गद्य और पद्य की सृजनात्मकता के दर्शन होते हैं। उनकी अब तक प्रकाशित करीब डेढ़ दर्जन पुस्तकों में यू.एस. लाइबेरी न्यूयॉर्क, अमेरिका के लिए चयनित ‘प्रगतिशील उपन्यासों में सामाजिक संघर्ष’ तथा भीष्म साहनी के उपन्यासों में ‘सामाजिक चेतना’ जैसी समीक्षात्मक पुस्तके हैं। वहीं हरियाणा सहित्य अकादमी पंचकुला के अनुदान से प्रकाशित ‘ मै दोपदी नहीं हूँ’ और ‘तमाशा’ के अलावा ‘सात फेरों का कर्ज’ और मुहावरे- लोकोक्तियाँ जीती माएँ जैसे कहानी संग्रह सुर्खियों में हैं। हरियाणवी नाटक ‘ये बड्डी मछलियां’ और हरियाणा साहित्य अकादमी से श्रेष्ठ कृति पुरस्कार प्राप्त नाटक ‘दर्द नै ए दवा बणा’ डा. ज्ञानीदेवी के सृजनात्मक गद्य की उपलब्धियां हैं। यही नहीं उनकी सूखती नदी में खिलता कमल (उपन्यास), बौने होते किरदार (लघुकथा) और तर्पण (व्यंग्य संग्रह) भी उनकी लिखित पुस्तकों में शामिल है। महिला साहित्यकार ज्ञानी देवी के काव्य संग्रह में काव्यांजलि, अभिमन्यु का संकल्प, बोलता आईना, मैं जिन्दा हूं, क्योंकि…, दर्द की कहानी वक्त की जुबानी और मुजरिम हाजिर है नामक पुस्तके शामिल हैं।
पुरस्कार एवं सम्मान 
महिला साहित्यकार डा. ज्ञानीदेवी की समाज को समर्पित साहित्य के रूप में योगदान के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए दो लाख रुपये के ‘श्रेष्ठ महिला रचनाकार सम्मान’ के पुरस्कार से नवाजा है। हरियाणा साहित्य अकादमी वर्ष 2008 में उन्हें कहानी पुरस्कार से भी सम्मानित कर चुकी है। वहीं श्री सुधाओम ढींगरा (यूएसए) से साहित्य सुरभि अंतर्राष्ट्रीय सम्मान, प्रगति मैदान दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले में ‘साहित्य सागर सम्मान’, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के विशिष्ट सम्मान, केंद्र सरकार के विशिष्ट साहित्य सेवा पुरस्कार, भारतीय वाडमय पीठ, कोलकाता के भारत गौरव सारस्वत सम्मान, नेशनल फाईन आर्टस एंड कल्चर एसोसिएशन के प्राईड ऑफ करनाल, हरियाणा सरकार से क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ संघर्षशील बालिका पुरस्कार और पं. रामचंद्र स्मृति सम्मान हासिल करने का गौरव भी डा. ज्ञानीदेवी को गौरव हासिल है। इसी प्रकार उत्कृष्ट समाज सेविका पुरस्कार कैथल, अखिल परिषद करनाल के साहित्य शिरोमणि पुरस्कार, विकास क्लब कुंजपुरा करनाल के विशिष्ट सम्मान, रोहतक के प्रज्ञा सम्मान, यू.एच.सी. फाउंडेशन घरौंदा हरियाणा के हिन्दी रत्न के अलावा भाषा भूषण मुरादाबाद और विक्रमशीला हिंदी विद्यापीठ बिहार की विद्यासागर मानद उपाधि का सम्मान भी उनकी बड़ी उपलब्धि है। 
शोध कार्य
हिंदी साहित्य क्षेत्र में डा. ज्ञानीदेवी के सृजनात्मक साहित्य की मौलिक रचनाओं में सामाजिक दृष्टि से भावनात्मक और रचनात्मकता परोसने का ही नतीजा है कि उनके साहित्य पर शोध कार्य भी हो रहे हैं। डॉ. ज्ञानी देवी के ‘काव्य यात्रा' शोधार्थी कुमारी निशा गुप्ता ने विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र से एमफिल, कहानी संग्रह ‘सात फेरों का कर्ज’ में नारी विमर्श पर कुमारी रत्ना गौडा और ‘मैं द्रोपदी नहीं हूँ’ में चित्रित यथार्थ' पर बी मंजुला ने उच्च शिक्षा और शोध संस्थान दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा हैदराबाद ने एमफिल, साहित्य में ‘सामाजिक चेतना' के शोध पर दिनेश कुमार ने धारवाड, कर्नाटक से पी.एचडी के लिए शोध कार्य किया है। यही नहीं निदेशक कुशल के निर्देशन में 'मैं द्रौपदी नही हूँ' कहानी पर बना नाटक प्रथम स्थान के लिए पुरस्कृत किया गया है। प्रकाशित शोधपत्र
महिला साहित्यकार के साहित्य पर विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रोफेसर्स एवं शोधार्थियों द्वारा करीब दो दर्जन शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इन पत्रिकाओं में संस्कार चेतना, सृवति दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा हैदराबाद, हिमाक्षरा' भारतीय वाडमय पीठ, कोलकाता, परिषद् पत्रिका राष्ट्र भाषा परिषद पटना, विहार, संकल्प हिन्दी अकादमी हैदराबाद, युद्धरत आम आदमी (दिल्ली), 'शोधपथ मेरठ यूपी, हरिगन्धा (हरियाणा साहित्य अकादमी) पंचकुला, रोड चेतना करनाल शामिल हैं। इसके अलावा डा. ज्ञानी देवी की रचनाएं व पुस्तके विभिन्न आलोचनात्मक पुस्तकों में भी शामिल की गई है। इनमें मै द्रोपदी नहीं हूं कहानी को डॉ ज्ञान प्रकाश विवेक के हरियाणा की समकालीन कहानी, डॉ. शालिनी की 21वीं सदी की हिन्दी कहानी में सामाजिक न्याय और डॉ. कुणा कुमार की 21वीं सदी की कहानी' में दृष्टि और सरोकार में शामिल की गई है। वहीं काव्यांजलि और अभिमन्यु का संकल्प अरविंद कुमार के आधुनिक कविताओं के छंद विधान, हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला हरियाणा की ‘कथा यात्रा एवं उत्सव’ में उनकी कहानियां सम्मिलित हुई। जबकि असम के डा. हरकिरत हीर की संपादित पुस्तक मां की पुकार में भी डा. ज्ञानीदेवीकी कविताएं सम्मिलित हैं। हरियाणा की साहित्यकार डा. शील कौशिक की पुस्तक 'हरियाणा की महिला रचनाकार: विविधआयाम में उनके साहित्य को शामिल किया गया है। 11Oct-2021

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