मंगलवार, 19 अक्तूबर 2021

चौपाल: नगाड़े की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं सुभाष नगाड़ा

लोक संगीत को समर्पित वाद्ययंत्रों के उस्ताद सुभाष नगाड़ा 
-ओ.पी. पाल 
भारतीय संस्कृति और सभ्यता में अपने हुनर से समाज को दिशा देने वाले कलाकार भी किसी धरोहर से कम नहीं हैं। इसकी मिसाल आज के आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक वाद यंत्रों के बढ़ते प्रचलन के बावजूद हरियाणा के प्रसिद्ध नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा गीत, संगीत व नृत्यों से सजे मंच पर नगाड़ा वादक के रूप में पुरानी परंपरा को जिंदा रखे हुए है। रोहतक आकाशवाणी के ए-ग्रेड के कलाकार एवं नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा ने शहनाई और नगाड़ा की पुश्तैनी कला को आगे बढ़ाने में देश में ही नहीं विश्व के कई देशों में भारतीय लोक संगीत और खासकर हरियाणवी लोककला को लोहा मनवाया है। अपनी इस कला के सफर के अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता से बेबाक बातचीत में साझा करते हुए वे कला के प्रति सरकार की बेरुखी पर सवाल खड़े करने से भी नहीं चूके। 
हरियाणा के प्रसिद्ध नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा प्रदेश के ऐसे कलाकारों में शुमार हैं, जिन्होंने अपने हुनर से लोक कला और लोक संगीत के क्षेत्र में बुलंदिया छूने का काम किया है। नगाड़ा भारत के प्राचीनतम साजों में से एक है जिनका हरियाणा क लोक संगीत में सदियों से विशेष स्थान रहा है। ऐसे समय में अब जब हरियाणा में नगाड़ा के बजाने वाले कम होते जा रहे हैं यानि यह कला लुप्त होती नजर आ रही है। ऐसे में प्रसिद्ध नगाड़ा वादक सुभाष नगाड़ा ने बचपन से ही विरासत में मिली रिद्म की कुदरती कला से हरियाणवी लोक संगीत को पुनजीर्वित करने का बीड़ा उठाया और इसी मकसद से कई वर्षो तक निरंतर रियाज व नए प्रयोग करके इस प्राचीन साज को एक नई पहचान देने में अहम योगदान दिया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने वाद यंत्र नगाड़ा बजाने की कला से भारतीय संस्कृति की छाप छोड़ने वाले सुभाष नगाड़ा ने कहा कि शहनाई और नगाड़ा बजाना उनका पुश्तैनी पेशा है, जिसमें लोक संगीत और कला विद्यमान है और उसी कला को उनका परिवारिक, सामाजिक और संस्कृति को आगे बढ़ने में जुटा हुआ है। 
विरासत में मिली कला 
रोहतक में चार अगस्त 1954 जन्मे सुभाष नगाड़ा ने महज दस साल की उम्र में ही नगाड़ा बजाना शुरू कर दिया था, जिसकी कला उन्हें दादा और पिता से विरासत में मिली है। नगाड़ा और शहनाई बजाने की कला में उन्हें प्रसिद्ध नगाड़ा व शहनाई वादक ताऊ(गुरु) माहला राम तथा धर्मचंद ने निपुण बनाया। वर्ष 1964 में जब वह सातवीं कक्षा के छात्र थे, तो पहली बार उन्होंने एक प्रोग्राम में नगाड़ा बजाया, जिसके लिए उन्हें दो रुपये मिले। इसी साल गांधी कैंप की रामलीला ने कई सप्ताह काम करके 40 रुपये कमाएं। अब उन्हें इस वाद यंत्र को बजाने के लिए दो हजार रुपये मिल रहे हैं। सबसे बड़ी बात है कि लोक संगीत में लगभग सभी वाद यंत्र इलेक्ट्रॉनिक रूप ले चुके हैं, लेकिन लोक संगीत में भारतीय संस्कृति व सभ्यता में नगाड़ा बजाने में पुरानी परंपरा को ही जिंदा रखे हुए हैं। सुभाष नगाड़ा अपनी इस सफलता का श्रेय अपने परिवार के अलावा अपने गुरु श्री कृष्ण शर्मा को देते है। 
अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक दी थाप 
हरियाणा में ही नहीं, बल्कि देश-विदेश के अग्रणी नगाड़ा वादक के रूप में सुभाष नगाड़ा अपनी पहचान बना चुके हैं। हरियाणा के इस नगाड़ा वादक सुभाष अपनी इस कला का प्रदर्शन अमेरिका, कनाड़ा, रूस, दुबई, न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, हांगकांग आदि कई देशों में आयोजित विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी करके हुनर दिखा चुके हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय लोक संगीत और कला का लोहा मनवाया चुके हैं। वहीं मुम्बई की फिल्मों में, प्रतिष्ठित संगीतकारों के ऑकेस्ट्रा में उन्होंने नगाड़े का इलैक्ट्रोनिक साज़ों के साथ समन्वय करके नए प्रयोग भी किए हैं। फिल्मों और नामचीन संगीतकारों सोनू निगम, अनुराधा पोडवाल, नरेन्द्र चंचल, पंजाबी संगीतकार और म्यूजिक डारेक्टर चरणजीत आहुजा, हंसराज हंसी, जसबीर जस्सी, गुरुदास मान, श्याम बटेजा के अलावा आकाशवाणी रेडिया के संयोजक श्रीकृष्ण शर्मा के साथ भी इस कला क्षेत्र में काम किया है। इससे पहले वर्ष 1964 से 1975 तक रामलीला के मंच पर नगाड़ा बजाने की कला में काम किया। इसके बाद जागरण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, होली, विवाह और लोक उत्सवों में नगाड़ा बजाकर अपनी कला का प्रदर्शन करते आ रहे हैं। सरकार के कार्यक्रमों में भी उन्हें नगाड़ा की कला के लिए कई मौके मिले हैं। सुभाष नगाड़ा का आज भव्य ऑकेस्ट्रा के साथ-साथ अब रामलीला, माता जागरण और प्रचार गीतों में भी स्थान बना चुका है 
कई दर्जन नगाड़ा वादक किये तैयार 
हरियाणा के नगाड़ा वादक सुभाष ने पिछले 20 साल में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन नॉर्थ जोन कल्चर सेंटर पटियाला और उत्तर मध्य क्षेत्र संस्कृति केंद्र इलाहाबाद सांस्कृतिक कार्यक्रम के रूप में आयोजित होती रही नगाड़ा कार्यशालाओं में पांच-पांच बच्चों को नगाड़ा की कला सिखाई है, जिसके तहत वे करीब 60 नगाड़ा के कलाकार तैयार कर चुके हैं। इसके अलावा हरियाणा की हुड्डा सरकार के दौरान उन्हें वर्ष 2009 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में बच्चों को नगाड़ा और शहनाई की कला में शिक्षित करने के लिए एक प्रशिक्षक के रूप में नौकरी दी गई, जो 2015 तक रही। इसके बाद सरकार ने हरियाणवी लोक कला के प्रति जिस तरह की बेरुखी दिखाई है, वह प्रदेश के कलाकारों के मनोबल को तोड़ने से कम नहीं है। जबकि कलाकार समाज को नई दिशा देने में अपना योगदान देता आ रहा है। 
नए कलाकारों को प्रशिक्षण 
लोक कलाकार सुभाष नगाड़ा ने बताया कि आजकल वे हरियाणा में नई पीढ़ी को नगाड़ा वादन सिखाकर उनको इस कला के लिए प्रोत्साहन देने के कार्य में जुटे हुए हैं। इस कला व साज़ को हरियाणा के लोक संगीत की धड़कन बताते हुए उनक कहना है कि लोकगीतों व सांग की रागनियों की तो नगाड़ा जान है, जो ऊर्जा व जोश का ऐसा संगीत है, जिसके बिना नर्तक के पैर उठते ही नहीं। उन्होंने महिलाओं के एक विवाह गीत के बोल का जिक्र करते हुए कहा कि 'बाज्या हे नगाड़ा रणजीत का, म्हारे ब्याहवण आए'। नगाड़ा की इस कलो के बेहतर प्रदर्शन व हुनर को देखते हुए उन्हें कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी हो चुके हैं। 
क्या है नगाड़ा या 'नक्कारा' 
भारतीय संस्कृति में नगाड़ा या 'नक्कारा' प्राचीन समय से ही प्रमुख वाद्य यंत्र रहा है। इसे लोक उत्सवों के अवसर पर बजाया जाता है। होली के अवसर पर गाये जाने वाले गीतों में इसका विशेष प्रयोग होता है। नगाड़े में जोड़े अलग-अलग होते हैं, जिसमें एक की आवाज़ पतली तथा दूसरे की आवाज़ मोटी होती है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। निचली सतह पर नगाड़ा पकी हुई मिट्टी का बना होता है। यह भारत का बहुत ही लोकप्रिय वाद्य है। यह दो प्रकार छोटा व बड़ा होता है और छोटे नगाड़े के साथ एक नगाड़ी भी होती है। बड़ा नगाड़ा नौबत की तरह ही होता है। यह बड़े व भारी डंडों से बजाया जाने वाला कढाई के आकार का लोहे का एक बडा नगाडा होता है। इसे 'बम, दमाम या टापक' भी कहते हैं। इसे बजाने के लिए वादक लकड़ी के दो डंडे का प्रयोग करते हैं। नगाड़े को लोकनाट्यों व विवाह व मांगलिक उत्सव में शहनाई के साथ बजाया जाता है। 18Oct-2021

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