रविवार, 14 अगस्त 2016

राग दरबार: कब सुधरेगा पाकिस्तान...

पाक है कि सुधरने को नही तैयार.
भारत के खिलाफ हमेशा साजिश रचने में व्यस्त पाकिस्तान आखिर कब सुधरेगा..। कश्मीर घाटी में पाक की ऐसी ही साजिश से बिगड़े हालातो के मद्देनजर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समूचे सियासी दलो और संसद में पारित संकल्प के साथ जैसे ही पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके)को भारत का अभिन्न हिस्सा करार दिया, तो पड़ोसी देश पाकिस्तान बौखलाता नजर आया। आतंकवाद और कश्मीर मामले पर पूरे भारत की एकजुटता के बावजूद पाक के गृहमंत्री चौधरी निसार अली खान की इतनी हिम्मत करते हुए भारतीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से पूछा है कि भारत हमें यानि पाक को कौन सा पाठ पढ़ाना चाहता है। पाक के बौखलाने की वजह साफ है, जो भारत के आंतरिक मामलों मे दखलंदाजी न करने की नसीहत देते हुए राजनाथ सिंह के साथ ही विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पाकिस्तान को दो टूक चेतावनी देते आ रहे है। फिर भी सुधरने का नाम न लेने वाले पाकिस्तान के लिए ‘जमीन में दबी कुत्ते की टेढ़ी पूंछ सौ साल बाद भी सीधी नही निकलती’ जैसी कहावत चरितार्थ होती आ तही है। आतंकवाद और पाकिस्तान मामलों के जानकारों की मानें तो,भारत को दुश्मन मानते हुए पाक की जमीन से पैदा हो रहे आतंकवाद को लेकर दुनियाभर में दीन-ए-इस्लाम के तमाम आलिम, राजनेता और मीडिया यह मानती आ रही है कि दहशतगर्दी का ना तो कोई रंग है और ना ही मजहब, बल्कि मुट्ठी भर सिरफिरे बेगुनाहों और मासूमों का कत्ल कर इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं, जबकि इस्लाम ऐसा करने की इजाजत नहीं देता। खुद भी पाकिस्तान आतंकवाद में दुबला हो रहा है फिर भी पडोसी पाक है कि सुधरने को नही तैयार..।
गदगद हैं नजीब
दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग आजकल गदगद हैं। दिल्ली हाईकोर्ट से अधिकारों की लड़ाई में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जोरदार पटकनी देने के बाद से वे उत्साहित हैं। हालांकि इस बीच उनमें एक नया बदलाव भी देखने को मिला है। उपराज्यपाल अब सार्वजनिक तौर पर कह रहे हैं कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया बढ़िया काम कर रहे हैं। दरअसल जंग साहब अपरोक्ष तौर पर फरमा रहे हैं कि केजरीवाल के मुकाबले सिसोदिया बेहतर प्रशासक हैं। चर्चा है कि नजीब जंग किसी भी मसले पर केजरीवाल की बजाय मनीष सिसोदिया से विचार-विमर्श करने को तरजीह देते हैं। केजरीवाल का आक्रामक रूख उनको नहीं सुहाता है। हालांकि अधिकारों के केस में हाईकोर्ट से पराजित होने के बाद दिल्ली सरकार अब सुप्रीम कोर्ट का रूख करने जा रही है। पर इस बीच उपराज्यपाल लगातार दिल्ली सरकार के नौकरशाहों को यह बताने में जुटे हैं कि कोई भी महत्त्वपूर्ण फैसला उनकी सहमति के बिना नहीं लिया जाए। देखना ये है कि जंग हाईकोर्ट से मिली जीत के बल पर दिल्ली सरकार पर रौब बढ़ाते हैं या सिसोदिया उनको थोड़ा लचीला रवैया अपनाने के लिए मना लेते हैं।
गडकरी नहीं रोडकरी
अगले चुनावों में जीत के लिए क्षेत्र का विकास सांसदों की हमेशा प्राथमिक्ता रहती है। इसके लिए वो मंत्रियों की चापलूसी भी करते हैं अनुनय विनय भी करते हैं। गुरूवार को लोकसभा में ऐसा ही दिलचस्प नजारा दिखा। कर्नाटक के भाजपा सांसद प्रहलाद जोशी ने प्रश्न पूछने से पहले परिवहन, राजपथ एवं जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी को नई उपाधि से नवाज दिया। उन्होंने कहा कि पूरे सेक्टर में गडकरी के लीडरशिप में क्रांति आ गई है। पूरे देश में नितिन गडकरी नितिन रोडकरी बन गए हैं। वे इतने रोड सबको दे रहे है कि वे गडकरी से रोडकरी बन गए हैं। इतना सुनना था कि पूरे सदन में हंसी छूट गई। अध्यक्ष ने भी हंसते हुए कहा गडकरी अब पोर्टकरी भी हो जाएंगे।
फेसबुक पर चमकेंगे केंद्रीय मंत्रालय
कें द्र सरकार के कामकाज में सोशल मीडिया किस तरह से घुलमिल गया है। इसकी बानगी कभी ट्वीटर तो कभी इससे जुड़े अन्य माध्यमों पर देखने को मिल जाती है। लेकिन अब सत्ता पक्ष की मंशा फेसबुक पर सभी मंत्रालयों और उनसे संबंधित विभागों की सक्रियता बढ़ाने की दिखाई पड़ रही है। इसके पीछे फेसबुक पर भेजे जाने वाले संदेश, उनकी शब्द संख्या, फोटो और बड़े वीडियो अपलोड़ करने का आॅप्शन रहना वजह है। स्वतंत्रता दिवस समारोह खत्म होने के बाद तमाम विभागों से इस पर माथापच्ची होगी और फिर सभी केंद्रीय मंत्रालय एक साथ फेसबुक पर चमकने लगेंगे।
किरकरी भूली नहीं
बजट सत्र में एक बार रेलवे का प्रश्न आने में न ही बड़े मंत्री सदन में थे और न ही छोटे मंत्री मनोज सिन्हा। उसके बाद तो विपक्ष ने बवाल काट दिया। संसदीय कार्य मंत्री को भी आनन फानन में बड़े मंत्री को बुलवाना पड़ा। वह किरकिरी लगता है रेलमंत्री सुरेश प्रभु को अभी तक याद है। गुरूवार को जब प्रश्नकाल समाप्त होने को था और लग रहा था कि रेलवे का प्रश्न नहीं आएगा तो वो सदन से जाने लगे। पर जाते जाते वो मनोज सिन्हा को सदन में रहने की हिदायत भी देते गए। सिन्हा के पास वर्तमान में रेल का राज्य मंत्री का प्रभार तो है साथ ही संचार के राज्य मंत्री का स्वतंत्र प्रभार भी है। वे सदन में अपने प्रश्न के संदर्भ में उपस्थित थे।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा, अरूण व कविता जोशी
14Aug-2016

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