मंगलवार, 9 अगस्त 2016

अब वाराणसी से हल्दिया तक चलेगा मालवाहक जहाज!

जलमार्ग से 12 अगस्त को रवाना होगा पहला जहाज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देश की 111 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने की परियोजना के तहत पहले चरण में वाराणसी से हल्दिया तक मालवाहक जहाज चलाने का रास्ता साफ हो गया है। मसलन कछुआ सेंचुरी जोन की सामने आई बाधा दूर होने के बाद अब मारूति कारो को लेकर पहला मालवाहक जहाज 12 अगस्त को रो-रो सेवा के तहत वाराणसी से कोलकाता के लिये रवाना होगा।
दरअसल वाराणसी से कोलकाता में हल्दिया तक जल परिवहन योजना का यह ट्रायल पिछले महीने जुलाई में होना था और सभी तैयारियों के तहत वाराणसी के खिड़किया घाट के किनारे पर खड़े मालवाहक जल पोत हल्दिया तक जाने के लिए जल में उतरने की बाट जोह ही रहे थे कि ट्रायल से पहले ही वाराणसी के राजघाट से लेकर अस्सी घाट तक बने कछुआ सेंचुरी जोन का हवाला देकर वन विभाग ने माल वाहक जल पोतों के जल में उतारने की मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। इस ट्रायल की राह में अचानक कछुआ अभ्यारण क्षेत्र के कांटे को निकालने के लिये केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गड़करी इतने गंभीर नजर आए कि उन्होंने वन मंत्रालय तथा यूपी के वन विभाग के अधिकारियों से कई दौर की बातचीत करके जल्द ही मंजूरी हासिल कर ली। इस मंजूरी से मिली राहत के बाद अब 12 अगस्त को वाराणसी से हल्दिया तक इस ट्रायल के तहत वीवी गिरी नामक मालवाहक जहाज 600 मारूति कारों की डिलीवरी लेकर वाराणसी से गाजीपर, बलिया, बक्सर व पटना होते हुए कोलकाता के हल्दिया तक 1620 किमी जलमार्ग का सफर तय कर सकेगा। जहाजरानी मंत्रालय के अनुसार सरकार 120 करोड़ रुपए खर्च कर रो-रो टर्मिनलों का निर्माण भी करा रही है, जिससे गंगा के दो किनारों के बीच बसे हुए दो शहरों की दूरी को कम किया जा सकेगा। इसके तहत मझुआ को जलमार्ग द्वारा बलिया और जमानिया और मिजार्पुर को मिजार्पुर-चुनार से जोड़ा जाएगा।
कछुओ व मछलियों को नहीं होगा नुकसान
सूत्रों के अनुसार मंजूरी में आड़े आई कछुओ व मछलियों को नुकसान होने की आशंका को केंद्र सरकार ने दूर करके वन विभाग को जल परिवहन परियोजना के प्रावधानों व तर्को से अवगत करा दिया है, जिनमें माल वाहक जहाजों के आवगमन कछुओं या मछलियों को कोई नुकसान नहीं होगा। सोमवार को राज्यसभा में भी नितिन गडकरी ने उठाए गये एक सवाल पर इस बात की गारंटी दी है कि जल परिवहन परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए सरकार ने गंगा में तीन मीटर पानी का स्तर तय किया है, जिसके कारण मछली या अन्य जीवों को नुकसान नहीं होगा और न ही मछुआरों के रोजगार पर कोई प्रभाव पड़ेगा, बल्कि मछुआरों के रोजगार में बढ़ोतरी ही होगी।
क्या था कछुआ अभ्यारण विवाद
सूत्रों के अनुसार वाराणसी में राजघाट के पास मालवीय पुल से लेकर अस्सी घाट के सामने रामनगर के किले तक के सात किलोमीटर के दायरे को नेशनल वाइल्ड लाइफ के तहत कछुआ सेन्चुरी के नाम पर संरक्षित है। कछुओं का प्रजनन केंद्र भी वन विभाग ने सारनाथ में बनाया है। सूत्रों के अनुसार चम्बल से ब्रीड कर कर कछुओं को यहां लाते हैं और फिर बड़ा होने के बाद इन्हें गंगा में डाल देते हैं। तकरीबन हर साल 1000 कछुओं को छोड़ने का दावा किया गया है। सूत्रों के अनुसर वर्ष 1989 में गंगा सफाई के नाम पर घाट से लग कर बहने वाले गंगा के भाग को नेशनल वाइल्ड लाइफ के तहत संरक्षित कर दिया गया था, जहां इस संरक्षित इलाके में कछुआ सेंचुरी बनाकर कछुआ पाले जाते रहेंगे।
क्या है जल परिवहन की परियोजना
मंत्रालय के अनुसार जल मार्ग विकास परियोजना के तहत 1620 किमी के राष्ट्रीय जलमार्ग (इलाहाबाद से हल्दिया तक) परियोजना के तहत तीन मीटर की जरूरी गहराई वाले जहाज के लिए रास्ता तैयार किया जा रहा है, ताकि 1500 टन के जहाजों को पानी के रास्ते चलाया जा सके। इस परियोजना के तहत ही वाराणसी में मल्टी मॉडल टर्मिनल तैयार किया गया है, जिस पर कुल 184 करोड़ रुपए खर्च होंगे। यहां पर रोड और रेल कनेक्टिविटी होगी ताकि जलपोत से सामान उतारकर अन्य मार्गों द्वारा उन्हें गंतव्य तक पहुंचाया जा सके।
बढ़ेगी जल परिवहन की हिस्सेदारी
राज्यसभा में केंद्रीय जहाजरानी मंत्री ने कहा कि देश में गंगा समेत 111 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने के प्रस्ताव के तहत शुरू की जा रही जल परिवहन परियोजना देश का एक क्रांतिकारी बदलाव का सबब बनेगा। उनका कहना है कि अभी देश में जलमार्गो की हिस्सेदारी महज 3.6 प्रतिशत की है और 2018 तक इसे सात प्रतिशत से अधिक तक ले जाने का लक्ष्य हैं। उन्होंने कहा कि चीन में जलमार्ग परिवहन की हिस्सेदारी 47 प्रतिशत और कोरिया और जापान में यह 40 प्रतिशत से अधिक है। यूरोपीय देशों में भी जलमार्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं। गंगा नदी से जुड़ी परियोजनाओं का ब्योरा देते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2020 तक जल परिवहन के जरिए 200 लाख टन माल का निर्यात करने का सरकार का लक्ष्य है। 
सकारात्मक होगी लॉजिस्टिक लागत
अंतर्देशीय जल परिवहन साधन को कम लागत, र्इंधन रक्ष, पर्यावरण् हितैषी और विशेषकर खतरनाक सामनों तथा ओवर डयमेंशनल कार्गो के लिए परिवहन का एक सुरक्षित साधन माना जाता है। एककृत राष्ट्रीय जलमार्ग परिवहन ग्रिड पर राईट्स रिपोर्ट 2014 के अनुसार रेल और सड़क परिवहन की तुलना में यह जल परिवहन साधन को महत्वपूर्ण लाभ देगा। मसलन एक लीटर र्इंधन, सड़क पर 24 टन प्रति किमी, रेल में 95 टन प्रतिकिमी और  जल परिवहन में 215 टन प्रतिकिमी का संचलन करता है। इसके अलावा जलमार्गो के विकास करने की लागत रेल और सड़क से बहुत कम है। इसी प्रकार पर्यावरणीय लाभ के रूप में प्रति टन-किमी में न्यूनतम ईंधन की खपत के अलावा अन्य साधनों की तुलना में कार्बनडाईआक्साइड का कम उत्सर्जन भी होगा। मसलन अंतर्देशीय जल परिवहन की लॉजिस्टिक लागत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ना तय है।
09Aug-2016


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