जजों की नियुक्ति की रार का नतीजा
कॉलेजियम प्रणाली के मसौदा प्रक्रिया ज्ञापन पर उठे सवाल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश
में न्यायिक सुधार की दिशा में केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट
में जजो की नियुक्ति के लिए सरकार द्वारा गठित किये गये राष्ट्रीय न्यायिक
नियुक्ति आयोग को शीर्ष अदालत द्वारा असंवैधानिक करार देने के बाद कॉलेजियम
प्रणाली को बहाल करने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट से लेकर अधीनस्थ अदालतों
में जजों की नियुक्तियों की चाल धीमी होने के कारण देश में लंबित मामलों का
अंबार लगने लगा है।
दरअसल उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों
में न्यायाधीशों की नियुक्तियों में पैदा हुई गतिरोध की स्थिति पर मंगलवार
को राज्यसभा में मध्य प्रदेश से कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा द्वारा नियम
180 के तहत एक ध्यानाकर्षण प्रस्ताव पेश किया। सदन में हुई चर्चा में
केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर न्यायपालिका से गतिरोध की बात को स्वीकार
किया ओर कहा कि भारत का संविधान लागू होने के बाद जजों की नियुक्ति के लिए
नया प्रक्रिया ज्ञापन तैयार किया गया, जिसमें 1971 और 1983 में संशोधन किये
गये गये हैं। इस दौरान केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री रविशंकर ने सदन को
अपने वक्तव्य में बताया कि न्यायिक सुधार के लिये संविधान संशोधन
अधिनियम-2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम-2014 को भारत के
उच्चतम न्यायालय ने गत 16 अक्टूबर को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त कर
दिया था और सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्टो में जजों की नियुक्ति के लिए फिर से
कॉलेजियम प्रणाली लागू कर दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम प्रणाली में
सुधार के बारे में केंद्र सरकार को सुझावों के साथ मसौदा प्रक्रिया ज्ञापन
तैयार करने की जिम्मेदारी दी थी, लेकिन जिसमें कुछ प्रस्तावों को उच्चतम
न्यायाल स्वीकार करने को तैयार नहीं है। हालांकि इसके बाद अब तक वर्ष 2016
में 110 अपर न्यायाधीशों को स्थायी किया गया और 52 न्यायाधीशों की नई
नियुक्तियां की गई है।
बढ़ते लंबित मामलो पर चिंता
उच्च
सदन में इस दौरान जजो की नियुक्तियों और इनमें आरक्षण की व्यवस्था करने
जैसी प्रक्रिया को लेकर विभिन्न दलों के सदस्यों ने इस बात पर चिंता जताई
कि उच्चतम न्यायालय के अलावा देश के दो दर्जन उच्च न्यायालयों में लगातार
होती जा रही जजों की कमी के कारण लंबित मामलों की संख्या में भी तेजी से
इजाफा हो रहा है, ऐसे में कॉलेजियम प्रणाली के मसौदा प्रक्रिया ज्ञापन पर
सवाल उठाते हुए सांसदों ने सरकार से मांग की है कि यदि यही हालत रही तो
संसद के अधिकार छीन जाएंगे और लोगों को अदालतों में न्याय मिलने की
प्रक्रिया भी कठिन हो जाएगी। इसलिए सरकार को इस दिशा में ठोस कार्यवाही अमल
में लाने पर विचार करना चाहिए। देश में सुप्रीम कोर्ट से लेकर जिला और
अधीनस्थ अलादतों में जजों नियुक्ति में हो रही देरी के कारण ताजा आंकड़ो के
अनुसार अदालतों मे करीब 3.25 करोड़ मामले लंबित हो चुके हैं और यदि यही
स्थिति रही तो इस साल के अंत तक यह चार करोड़ तक पहुंच सकती है।
विधि
एवं न्याय मंत्रालय के ताजे आंकड़ों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में स्वीकृत
31 जजों के मुकाबले 28 जज ही कार्यरत हैं, जबकि देश के 24 उच्च न्यायालयों
में स्वीकृत 1079 जजों के पदों के बावजूद 601 जज ही कार्यरत हैं यानि 478
जजों की रिक्तियां भरने की दरकार है। इलाहाबाद में सबसे ज्यादा 82 जजों के
पद खाली हैं, जहां 160 पद स्वीकृत हैं। जबकि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में स्वीकृत
22 जजों के मुकाबले केवल आठ न्यायाधीश ही कार्य कर रहे है यानि 50 प्रतिशत
से भी ज्यादा 14 जजों के पद रिक्त पड़े हुए हैं। इसी प्रकार मध्य प्रदेश
उच्च न्यायालय स्वीकृत 53 जजों के पदों में से 19 जजोें की नियुक्तियों की
बाट जोह रहा है, जहां केवल 34 जज ही कार्यरत हैं। पंजाब व हरियाणा उच्च
न्यायालय में भी 41 जजों की नियुक्ति होने का इंतजार हैं, जहां स्वीकृत 85
में से केवल 44 जज ही कार्यरत हैं।
जिला एवं अधीनस्थ अदालतों का सुरतेहाल
देश
के 33 राज्यों की जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में स्वीककृत 20502 जजों के
मुकाबले 16070 जज ही कार्यरत हैं। मसलन निचली अदालतें भी 4432 जजों की
रिक्तियां भरे जाने की बाट जो रही है। छत्तीसगढ़ राज्य में 385 जजों के
मुकाबले 341 कार्यरत हैं,जहां 44 जजों की नियुक्तियां होनी हैं। मध्य
प्रदेश में 3150 जजों के मुकाबले 1132 कार्यरत हैं और 218 पद रिक्त पड़े हुए
हैं। जबकि हरियाणा में जजों के 644 पर स्वीकृत हैं, लेकिन निचली अदालतों
में 474 जज ही कार्य कर रहे हैं, जहां 170 पद अभी तक रिक्त पड़े हुए हैं।
जबकि उत्तर प्रदेश में स्वीकृत 2104 पदों में से 1827 कार्यरत हैं और 277
जजों की रिक्तियां हैं। इसके अलावा उत्तराखंड में 74, राजस्थान में 206,
पंजाब में 182, हिमाचल प्रदेश में 18, गुजरात में 769 बिहार में 660 दिल्ली
में 303, महाराष्टÑ में 334 जजों की स्वीकृत संख्या के मुकाबले कमी है।
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देश को तत्काल चाहिए 44 हजार जज
देश
में जजों की नियुक्तियों को लेकर विधायिका और न्यायपालिका के बीच जारी
संवैधानिक तकरार के बीच ही खुद भारत के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ठाकुर कह
चुके हैं कि देशभर की अदालतों में लंबित पड़े मामलों के निपटान के लिए जहां
उच्च न्यायालयों में तत्काल सभी रिक्तियों को भरा जाना जरूरी है, वहीं विधि
आयोग की सिफारिश के आधार पर लंबित मामलों के प्रभावी तरीके से निपटान के
लिए 44 हजार जजों की जरूरत है, जबकि देश में स्वीकृत 21612 न्यायाधीशों के
विपरीत केवल करीब 18 हजार जज ही कार्य कर रहे हैं, यह स्थिति पिछले तीन दशक
से कायम है। हालांकि विधि मंत्रालय के ताजा आंकड़ो के मुताबिक सुप्रीम
कोर्ट से लेकर निचली अदालतोें में फिलहाल 16699 जज ही कार्यरत हैं।
10Aug-2016
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