गुरुवार, 4 अगस्त 2016

देश में हर साल 25 फीसदी ई-कचरे का इजाफा

एसोचैम की अध्ययन रिपोर्ट में हुआ खुलासा
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
देश में ई-कचरे के निपटान के लिये सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयासों के बावजूद 25 प्रतिशत सालाना के हिसाब से हो रहे इजाफे को देखते हुए यह अगले दो साल में 30 लाख टन ई-कचरा नजर आएगा। फिलहाल भारत में 18.5 लाख टन ई-कचरा पैदा हो रहा है।
ऐसा अनुमान देश की प्रमुख कारोबारी संस्था एसोचैम और फ्रॉस्ट एंड सुलिवन के संयुक्त अध्ययन में लगाया गया है। इस अध्ययन
रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर साल 18.5 लाख टन ई-कचरा पैदा होता है और सालाना आधार पर ई-कचरे में 25 फीसदी बढ़ोतरी हो रही है। इस बढ़ती दर को देखते हुए आगामी वर्ष 2018 तक ई-कचरे का उत्पादन 30 लाख टन तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया है। इस अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक देश में निकलने वाले ई-कचरे में सबसे बड़ा हिस्सा मुंबई और दिल्ली-एनसीआर का है। मसलन 1.20 लाख टन के साथ ई-कचरा पैदा करने में मुंबई सबसे अव्व्ल है। जबकि 98 हजार टन ई-कचरे के साथ दिल्ली-एनसीआर को दूसरे पायदान पर रखा गया है। रिपोर्ट के अनुसार चेन्नई में हर साल 67 हजार टन, कोलकाता में 55 हजार टन, अहमदाबाद में 36 हजार टन, हैदराबाद में 32 हजार टन और पुणे में 26 हजार टन ई-कचरा पैदा हो रहा है। एसोचैम की जारी अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि खराब ढांचे, कमजोर कानून और बिना रूपरेखा की वजह से भारत में कुल ई-कचरे में से मात्र ढाई फीसदी की रिसाइक्लिंग हो पाती है। इसमें कहा गया है कि ई-कचरे की वजह से प्राकृतिक संसाधन नष्ट होते हैं, पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और साथ ही यह उद्योग में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालता है।
वैज्ञानिक तरीके से हो निपटान
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने अध्ययन रिपोर्ट के बारे में कहा देश में पैदा हो रहे ई-कचरे में करीब 95 फीसदी ई-कचरे का प्रबंधन असंगठित क्षेत्र और स्क्रैप डीलरों द्वारा किया जाता है। जबकि देश में करीब 5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न ई-कचरा गतिविधियों में जुटे हुए पाए गये हैं, जो किसी चिंता से कम नहीं है। मसलन स्क्रैप डीलरों द्वारा ई-कचरे का यह प्रबंधन अवैज्ञानिक तरीके से किया जा रहा है और इसमें कोई उचित तरीका अपनाए बिना रेडियोएक्टिव सामग्री का प्रबंधन करते आ रहे हैं।
04Aug-2016

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