मंगलवार, 3 सितंबर 2013

रास में छाया छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा मॉडल!

 भाजपा ने की छग मॉडल को अंगीकृत करने की मांग
ओ.पी. पाल

उच्च सदन राज्यसभा में सोमवार को छत्तीसगढ़ राज्य में लागू खाद्य सुरक्षा कानून छाया रहा। मौका था लोकसभा में पारित किये जा चुके राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक पर राज्यसभा में चर्चा की शुरूआत का। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा ने छत्तीसगढ़ में लागू खाद्य सुरक्षा कानून के मुकाबले संसद में पेश किये गये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक की आंकड़ो से तुलना करते हुए छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा कानून के सामने बौना साबित करने का प्रयास किया।
केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रो. केवी थॉमस ने दोपहर को चर्चा और पारित कराने के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक को पेश किया, चर्चा की शुरूआत करते हुए प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली ने इस विधेयक की खामियां उजागर करके सरकार को चौतरफा घेरना शुरू कर दिया। जेटली ने केंद्र सरकार के तर्को को नकारते हुए जिस तरह के आंकड़े सदन में पेश किये, उसका समर्थन करीब समूचे विपक्षी दल के सदस्य करते नजर आए। जेटली ने छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा कानून मॉडल का उदाहरण देते हुए केंद्र सरकार की सदन में जमकर खिंचाई ही नहीं की, बल्कि केंद्र सरकार से मांग कर डाली कि केंद्र सरकार को इस खाद्य सुरक्षा विधेयक में छत्तीसगढ़ के खाद्य सुरक्षा कानून के प्रावधानों को अंगीकृत कर लेना चाहिए। जेटली ने छत्तीसगढ़ की डा. रमन सिंह सरकार की तारीफो के पुल बांधते हुए कहा कि खाद्य सुरक्षा को लेकर सबसे अच्छी योजना लागू कर चुके छत्तीसगढ़ के उदाहरण का केंद्र तथा सभी राज्यों को अनुसरण करने की जरूरत है। जेटली ने यूपीए सरकार के खाद्य सुरक्षा विधेयक की आंकड़ों के साथ खामियां गिनाते हुए कहा कि केंद्र सरकार के हिसाब से इस विधेयक के प्रावधानों के मुताबिक एक परिवार को औसतन 23 किलो अनाज मिलेगा, जबकि छत्तीसगढ़ की रमन सिंह सरकार अपनी खाद्य योजना में 35 किलो अनाज पहले से ही दे रही है। उन्होंने इस विधेयक के लागू होने पर छत्तीसगढ़ राज्य के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति की आशंका जताई और कहा कि केंद्र सरकार के कानून की माने तो छत्तीसगढ़ राज्य को भी अपने राशन में कटौती करनी पड़ेगी। वहीं केंद्रीय खाद्य योजना में गरीबों को दो से तीन रूपये प्रतिकिलो अनाज देने का प्राविधान है जबकि छत्तीसगढ़ सरकार गरीबों को मात्र एक रुपये प्रति किलो के हिसाब से राशन मुहैया करा रही है। उन्होंने यूपीए की इस योजना में सरकार केवल अनाज और अनाज न देने पर कैश देने की बात कर रही है, जबकि छत्तीसगढ़ सरकार पोषण का ध्यान रखते हुए अनाज के साथ चीनी, दालें, नमक और अन्य आवश्यक वस्तुएं भी सस्ते में दे रही है। भाजपा नेता ने इस विधेयक को संघीय ढांचे पर चोट करार दिया, क्योंकि ऐसी योजना चला रहे राज्यों को भी उन्हीं प्रावधानों के आधार पर योजनाएं चलाने को कहा जाएगा, जो यूपीए की योजना में हैं।
आंकड़ों से चित्त सरकार
उच्च सदन के प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली ने सरकार को आंकड़ों से ऐसा चित्त किया कि अन्य विपक्षी दलों ने मेज थपथपानी शुरू कर दी थी। उन्होंने अपने तेवरों में आंकड़ों से अपने तर्को के सहारे सरकार के दावों को कमजोर साबित करने का भी प्रयास किया। जेटली ने कहा कि सरकारी रिकार्ड में इस विधेयक में जो कहा गया है इसके दायरे में 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी गरीबों को शामिल किया जा रहा है, जिससे केवल 81.37 करोड़ गरीब ही लाभांवित होंगे। जबकि सरकारी रिकार्ड के मुताबिक गरीबों के लिए चलाई जा रही मौजूदा योजनाओं के जरिए देश के 82.90 करोड़ लोगों को फायदा हो रहा है। ऐसे में इस कानून से लाभार्थियों को भी दरकिनार करने का प्रयास है? जेटली ने सवाल उठाया कि योजना आयोग ने गरीबी के आंकड़े को घटाने की जो बाजीगरी की है उससे सरकार देश को क्या संदेश देना चाहती है?
03Sept-2013


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