गुरुवार, 26 सितंबर 2013

दंगों पर जारी है सियासत का दौर!


कांग्रेस व सपा में पीड़ितों का दर्द बांटने की लगी होड़!
ओ.पी.पाल 
मुजफ्फरनगर दंगों पर सियासत करने का मौका केंद्र और राज्य के सत्तारूढ़ दल गंवाना नहीं चाहते, तभी तो संवैधानिक पद का हवाला देकर अन्य किसी दल के सांसदों या जनप्रतिनिधि को दंगाग्रस्त क्षेत्र में जाने की इजाजत नहीं दी जा रही है। दंगा पीड़ितों के दर्द सुनने के बहाने दंगाग्रस्त इलाकों का दौरा करके संवैधानिक पदों पर बैठे केंद्र और यूपी के सत्तारूढ़ दलों खासकर कांग्रेस और सपा में होड़ लगी है और सियासी घोषणाओं से आगामी चुनावों के लिए जमीन तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं।
यूपी की बिगड़ती कानून व्यवस्था की परिणिती में मुजफ्फरनगर की सांप्रदायिक हिंसा से अखिलेश यादव की सरकार पर लगे दाग से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति जमीन को नफे-नुकसान की तराजू में तौलकर जिस तरह से समाजवादी पार्टी दंगा पीड़ितों के दर्द सुनने के बहाने मरहम लगाने का प्रयास कर रही है उसमें संभावित सियासी नुकसान की भरपाई करने के प्रयास में सपा की चुनावी रणनीति भी बदलती नजर आ रही है। वहीं इस इन दंगों की सियासत का लाभ केंद्र में सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस भी उठाने का प्रयास कर रही है। राजनीतिकारों का मानना है कि इसे सत्ता का दुरूपयोग कहने में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी वह संसद सदस्य पद को संवैधानिक नहीं मानती। यही कारण है कि आगामी चुनाव को देखते हुए माहौल बिगड़ने के नाम अन्य दलों के लिए दंगाग्रस्त इलाकों में जाने पर पाबंदी लगाई जा रही है। यही नहीं यह भी सियासी रणनीति ही कही जा सकती है कि दंगों के लिए भी विपक्षी दलों के खिलाफ ही कार्यवाही की जा रही है, खासकर भाजपा जिम्मेदार बताकर विपक्षी दलों के नेताओं पर कार्यवाही करने का सियासी दांव भी खेलने से सत्तारूढ़ पीछे नहीं है। खासकर भाजपा के विधायकों को निशाना बनाकर उनकी गिरफ्तारी भी की गई, लेकिन इन्हीं में कुछ ऐसे कद्दावर नेता भी हैं जिनकी गिरफ्तारी करना अखिलेश सरकार को भारी पड़ सकती है।
मुस्लिम वोटों पर है सबकी नजर 
दरअसल इन दंगों के कारण मुस्लिम समाज का सपा से नाराज नजर आया तो सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने इस तबके को मनाने की मुहिम में अपनी चुनावी रणनीति ही बदल दी यानि पश्चिम उत्तर प्रदेश में खिसकती जमीन की आशंका पर सपा ने लोकसभा के लिए पहले से घोषित उम्मीदवारों को बदलने की मुहिम चलाई। जहां गैरमुस्लिम नेताओं का इन दंगों में एक तरफा कार्यवाही से खिन्न होकर सपा से मोहभंग करना शुरू कर दिया है, तो वहीं सपा की खिसकती जमीन को कब्जाने के लिए केंद्र की सत्तारूढ़ कांग्रेस ने सियासी दांव खेलना शुरू कर दिया है। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने एक तबके के करीब पांच हजार लोग जो गांव छोड़कर शिविरों में रह रहे हैं को मरहम लगाने के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहतुल्ला, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान के अलावा एससी-एसटी आयोग को भी मुजफ्फरनगर के दंगाग्रस्त इलाकों में भेजकर अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने की मुहिम शुरू की। सत्तारूढ़ दलों कांग्रेस और सपा के संवैधानिक पदों पर बैठे इन लोगों ने खासकर मुस्लिम वर्ग में जाकर उन्हें उनके नुकसान की भरपाई करने और अखिलेश सरकार ने तो दंगा पीड़ितों के लिए पेंशन योजना का भी ऐलान करके सियासी निशाना साधा है।
रालोद प्रमुख उलझन में
राजनीतिकार मानते हैं कि इन दंगों के कारण जाट-मुस्लिम गठजोड़ टूटने से सबसे बड़ा राजनीतिक नुकसान पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय लोकदल को होता नजर आ रहा है। भाजपा द्वारा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित करने का असर भी जाट बिरादरी में फिलहाल तो दिख रहा है, जो सीधे रालोद का परंपरागत वोटबैंक माना जाता रहा है। रालोद प्रमुख यूपीए सरकार का हिस्सा है और केंद्रीय मंत्री भी हैं लेकिन उन्हें भी दंगाग्रस्त इलाके में जाने दो बार रोका गया और गिरफ्तारी की गई। चौधरी अजित सिंह को रोके जाने के मामले में यूपी शासन और प्रशासन का वह तर्क भी बेमाने हो जाता है कि उनके पास संवैधानिक पद नहीं है, जबकि प्रशासन के पास इस बात का जवाब नहीं है कि प्रधानमंत्री के साथ दंगाग्रस्त क्षेत्र में गई कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पास कौन सा संवैधानिक पद था? इस सवाल को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ ने भी मुजफ्फरनगर जाने की अनुमति न मिलने पर उठाया था।
मोदी की रैली रोकने की योजना?
सूत्रों की माने तो भाजपा में प्रधानमंत्री के उम्मीदवार घोषित होने से कांग्रेस व सपा में जिस प्रकार से विरोधी प्रचार किया जा रहा है। सपा की यूपी सरकार अगले महीने कानपुर व लखनऊ में प्रस्तावित नरेन्द्र मोदी की रैलियों को रोकने की योजना का तानाबाना बुना जा रहा है। नरेन्द्र मोदी अगले महीने यूपी में चुनावी अभियान की रणभेरी करने वाले हैं। सपा सरकार उस दौरान त्यौहरों के कारण माहौल खराब होने की आशंका जताकर भाजपा रैलियों को प्रतिबंधित कर सकती है?
26Sept-2013

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