शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

न्यायिक नियुक्तियां आयोग के गठन का रास्ता साफ

राज्यसभा में पास हुआ संविधान(संशोधन) विधेयक  
न्यायिक व्यवस्था पर हुई सार्थक चर्चा
राज्यसभा में गूंजा अदालतों में भ्रष्टाचार का मुद्दा
ओ. पी. पाल 
राज्यसभा में न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए पेश किये गये संविधान(120वें संशोधन)विधेयक पर सार्थक चर्चा देखने को मिली और ज्यादातर दलों के सदस्यों ने इस विधेयक को पास कराने में जल्दबाजी न करने का आग्रह किया और इस विधेयक में न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिए विशेषज्ञों की राय जानने के लिए इस विधेयक को संसदीय समिति को सौंपने की मांग उठाई। सदन में देर रात तक चली चर्चा में यह विधेयक पारित कर दिया गया, लेकिन न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के मामले पर लगभग समूचे सदन में सवाल उठाये।
राज्यसभा में गुरूवार को देर रात हालांकि यह विधेयक पारित हो गया, लेकिन दोपहर बाद इस विधेयक पर शुरू हुई चर्चा में न्यायपालिका में भ्रष्टाचार का मुद्दा ज्यादातर विद्वान सदस्यों की जुबान पर रहा और इस पर लगाम कसने पर जोर दिया। केंद्रीय कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने सदन में संविधान(१२०वेंसंशोधन )विधेयक-2013 पेश करते हुए इसे न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए जरूरी करार देते हुए पारित कराने का भी प्रस्ताव किया। इस विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए प्रतिपक्ष नेता अरूण जेटली ने न्यायपालिका की ओर से पिछले कुछ सालों से राजनीतिक व्यवस्था को आहात करने का जिक्र करते हुए कहा कि जिस तरह की अराजकता का माहौल है उसे देखते हुए इस विधेयक में और ऐसे प्रावधान करने की जरूरत है जिसमें संसदीय सर्वोच्चता भी बरकरार रहे और राजनीतिक व्यवस्था पर भी कुठाराघात न हो सके। जेटली ने खासकर राजनीतिक व्यवस्था की उच्चतम न्यायालय द्वारा की जा रही समीक्षा पर सवाल उठाये और कहा कि जब देश में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार काम कर रही है तो सरकार द्वारा लिये जाने वाले निर्णय सुप्रीम कोर्ट से किये जा रहे हैं जो दुर्भाग्यपूर्ण है। जेटली ने न्यायाधीधों की नियुक्तियों के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्तियां आयोग गठित करने की हो रही कवायद का भी समर्थन किया और कहा कि इसके लिए लाए जा रहे विधेयक व संविधान संशोधन विधेयक में वह कोई खास अंतर नहीं समझते। इस लिए न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए न्यायाधीधों के बने क्लोजियम में नियुक्तियों की प्रक्रिया जिस तरह से हो रही है वह सभी के सामने हैं और सर्वोत्तम न्यायाधीश आगे नहीं बढ़ पाते। जेटली ने विधेयक के प्रावधानों को न्यायिक प्रणाली में सुधार के लिए और अधिक बेहतर बनाने के लिए सरकार को सुझाव दिया कि विधि विशेषज्ञों की राय जाने लिए इस विधेयक को मौजूदा सत्र में पारित कराने की जल्दबाजी न करें और इसे न्याय संबन्धी संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया जाए और आगामी संसद के सत्र में पहले ही दिन पेश करके पास कराये, जिसके लिए उनकी पार्टी भाजपा पूर्णत: समर्थन करके पास कराएगी। इस विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए जद-यू के एनके सिंह, बसपा के सतीश मिश्रा, वामदल के बाल गोपाल, शिवसेना के भरत राउत, सपा के मुन्नवर सलीम, रामजेठ मलानी आदि सभी दलों ने न्यायपालिका पर संदेह की उंगली उठाई और इसे दुरस्त करने पर बल दिया।
सरकारी कामकाज बाधित करना दुर्भाग्यपूर्ण
केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री राजीव शुक्ला ने न्यायपालिका में और पारदर्शिता लाने की वकालत करते हुए कहा कि न्यायपालिका सर्वोपरि है, लेकिन कई मौकों पर न्यायपालिका के कदम सरकारी काम-काज को बाधित करता है। शुक्ला ने कहा कि जब भी कोई नया चीफ जस्टिस शपथ लेता है तो सबसे पहली बात वो कहता है कि न्यायपालिका में करप्शन खत्म करना है। इसी से जाहिर होता है कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार है। हालांकि उन्होंने अपने बयान में कहा कि 80 फीसदी से ज्यादा जज ईमानदारी से फैसले देते हैं, जिनपर कतई शक नहीं किया जा सकता। राजीव शुक्ला की मानें तो हमारे देश में 5 फीसदी वकीलों की कमाई असीमित है, जबकि बाकी वकीलों की आर्थिक हालात सही नहीं है। इससे साफ होता है कि सिस्टम में कुछ कमी है।
उच्च न्यायालयों की स्वतंत्रता बाधित नहीं होने देंगे
उच्च न्यायपालिकाओं में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यकारी की व्यवस्था मुहैया कराने के लिए लाए गए 120वें संविधान संशोधन विधेयक 2013 को पेश करते हुए कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में संतुलन बहाल करने की जरूरत है और न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यकारी की व्यवस्था होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा कि सदन में संविधान संशोधन विधेयक इसलिए पेश किया जा रहा है क्योंकि 'मौजूदा प्रणाली काम नहीं कर रही है। सिब्बल ने कहा कि उच्च न्यायालयों की न्यायपालिका का 'नाजुक स्वतंत्रता संतुलन' सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम से विक्षुब्ध है। देश के प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली कॉलेजियम में शीर्ष अदालत के वरिष्ठ न्यायाधीश शामिल होते हैं। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालयों को सर्वोच्च न्यायालय से स्वतंत्र माना जाता है, सहयोगी नहीं। अब उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश अपनी नियुक्ति के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की तरफ देखते हैं। इससे देश में उच्च न्यायालयों की नाजुक स्वतंत्रता बाधित होती है।
न्यायिक नियुक्तियां आयोग विधेयक को संसदीय स्थायी समिति को
राज्यसभा में इस विधेयक पर चर्चा के दौरान विपक्षी दलों की मांग को देखते हुए सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए कॉलेजियम को खत्म करने के इरादे से न्यायिक नियुक्तियां आयोग गठित करने की कवायद में लाए गये न्यायिक नियुक्तियां आयोग विधेयक को विभाग संबन्धित संसदीय स्थायी समिति को भेज दिया है। 
06Sept-2013

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